क्या है लोकतंत्र में चुनावों का महत्त्व

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नेहा पाण्डेय

चुनाव किसी भी लोकतांत्रिक देश में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और क्योंकि भारत को दुनिया में सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भी जाना जाता है, भारत में चुनावों को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। स्वतंत्रता के बाद से भारत में कई बार चुनाव हुए हैं और उन्होंने देश के विकास को गति देने के लिए एक महत्वपूर्ण कार्य किया है। यह स्वयं चुनाव प्रक्रिया है जिसके कारण भारत में सुशासन, कानून व्यवस्था और पारदर्शिता जैसी चीजों को बढ़ावा दिया गया है।

एक तरह से लोकतंत्र और चुनाव को एक-दूसरे का पूरक माना जा सकता है। चुनावों में अपने मतदान की शक्ति का प्रयोग करके एक नागरिक कई बड़े परिवर्तन ला सकता है और इसी के कारण लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति को उन्नति का समान अवसर प्राप्त होता है।लोकतंत्र में चुनाव की अहम भूमिका होती है क्योंकि इसके बिना स्वस्थ और स्वच्छ लोकतंत्र का निर्माण संभव नहीं है क्योंकि नियमित अंतराल पर होने वाले निष्पक्ष चुनाव ही लोकतंत्र को और भी मजबूत बनाने का काम करते हैं।

भारत एक लोकतांत्रिक देश होने के कारण यहां के लोग अपने सांसदों, विधायकों और न्यायपालिका का चुनाव कर सकते हैं। भारत का प्रत्येक नागरिक जो 18 वर्ष से अधिक आयु का है, अपनी मतदान शक्ति का प्रयोग कर सकता है और चुनाव में वह अपनी पसंद के उम्मीदवार के लिए मतदान कर सकता है, जिसे लोकतंत्र का त्योहार माना जाता है।कई बार यह सवाल कई लोगों द्वारा पूछा जाता है कि चुनाव की आवश्यकता क्या है, यदि देश में चुनाव न हो तो क्या देश में शासन चलाया जा सकता है। इसका उत्तर है नहीं।

इतिहास गवाह है कि जहाँ भी शासक, नेता या उत्तराधिकारी चुनने में भेदभाव और ज़बरदस्ती हुई है, वह देश या स्थान कभी विकसित नहीं हो पाया है और न ही विघटित हुआ है। यह इस कारण से था कि राजशाही प्रणालियों में भी, राजा के लिए केवल सबसे योग्य पुत्र का ही चयन किया जाता था।वास्तव में चुनाव हमें विकल्प देते है कि हम किसी चीज में बेहतर विकल्प को चुन सके। यदि चुनाव ना हों तो समाज में निरंकुशता और तानाशाही का बोलबाला हो जायेगा। जिसके परिणाम सदैव ही विध्वंसक रहे है। जिन देशों में लोगों को अपने नेताओं को चुनने की आजादी होती है, वह सदैव ही प्रगति करते है। यहीं कारण है कि चुनाव इतने महत्वपूर्ण और आवश्यक है।

लोकतंत्र में चुनाव प्रक्रिया एक सामान्य नागरिक को भी विशेष अधिकार प्रदान करती है क्योंकि चुनाव में मतदान करके वह सत्ता और शासन के संचालन में हिस्सेदार बन सकता है।कई बार चुनावों के दौरान नेताओं द्वारा लुभावने वादे या फिर उन्मादी बातें करकर जनता का वोट हांसिल करने का प्रयास किया जाता है। हमें इस बात को लेकर सजग रहना चाहिए कि हम चुनावों के दौरान ऐसे झांसो में ना आये और साफ-सुधरे तथा ईमानदार छवि वालें लोगों को राजनैतिक पदों के लिए चुनें क्योंकि चुनाव के दौरान अपने मत का जागरुक रुप से प्रयोग करना ही चुनाव के सार्थकता का प्रतीक है।

लोकतंत्र की सफलता के लिए यह काफी आवश्यक है कि राजनीतिक शासकीय पदों पर स्वच्छ तथा ईमानदार छवि के लोग चुनकर जायें, जोकि सिर्फ जनता के बहुमूल्य वोटों के ताकत द्वारा ही संभव है। इसलिए हमें हमेशा इस बात का प्रयास करना चाहिए कि हम अपने वोट का सही उपयोग करें और कभी भी जाति-धर्म या फिर लोकलुभावन वादों को देखते हुए चुनावों में मतदान ना करें क्योंकि यह लोकतंत्र के लिए हितकर नही है। जब शासकीय पदों पर सही लोग चुनकर जायेंगे तभी किसी भी देश का विकास संभव है और ऐसा होने पर ही चुनाव का वास्तविक अर्थ सार्थक हो पायेगा।

चुनाव दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र भारत का आधार बनाते हैं। आजादी के बाद से अब तक चुनाव के माध्यम से लोकसभाओं का गठन किया गया है। सबसे पहली लोकसभा का गठन 1951-52 में किया गया था। चुनाव की कार्यप्रणाली का आयोजन सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के माध्यम से किया जाता है, जिसके द्वारा संविधान की नजर में 18 वर्ष से अधिक आयु का हर भारतीय नागरिक एक योग्य मतदाता होता है।