आज का युवा भौतिक सुख सुविधाओं की खोज में…

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नेहा पाण्डेय 

आज का युवा अपने आप में ही भौतिक सुख सुविधाओं की खोज में रहता है। आलीशान कारें, महंगे जूते, महंगा मोबाइल फ़ोन, चमकदार कपड़े, अपने आप में ही आज कि पीढ़ी को दर्शाता है।अगर हम अपने आस पास दृष्टि डाले तो क्या हमें आज के दौर में श्रावण कुमार जैसा पुत्र मिलेगा? क्या हमे माता पिता के आज्ञाकारी राम जैसे पुत्र मिलेंगे? क्या हमे कोई युवक एकलव्य जैसा मिलेगा? किसी से पूछा जाए तो उसका उत्तर होगा – नहीं। 

आज कि युवा पीढ़ी ने इन सब मूल्यों को किनारे कर दिया है। भौतिक सुख सुविधाओं में चूर आज कि पीढ़ी सिर्फ  महंगी नई मशीन,  मोबाईल फ़ोन, दुर्लभ कपड़े, या महंगी कारों तक ही सीमित रह गई है। आज के दौर में हमे नाम मात्र ही ऐसे युवक मिलेंगे जिन्होंने भौतिकवाद की ओर झुकते हुए भी अपने जीवन मूल्यों का त्याग नहीं किया है।हमे नैतिक मूल्यों की आवश्कता क्यों है? 

मैं यह नहीं कहती की भैतिक सुख सुविधाओं को अपनाना हानिकारक है, मगर जीवन के मूल्यों और नैतिकता को भुला कर सिर्फ भौतिक सुख सुविधाओं को जोड़ते रहना भी ग़लत है। जो लोग भौतिकवादी जीवन का समर्थन करते है, उनका मानना है कि हमें अपने जीवन में परिवर्तन करते रहना चाहिए। और बदलते समय के साथ चलना चाहिए, तो क्या ऐसा हम अपने जीवन मूल्यों को और नैतिकता को भुला कर ही कर सकते है? जो लोग बुजुर्ग हो गए है या चालीस वर्ष की आयु को पार कर चुके है, वह तो अपना जीवन जी चुके मगर अब यह युवा पीढ़ी ही है जिसे अपना जीवन सही तरीके से जीना है।

क्या इन सुख सुविधाओं के बिना मनुष्य ने प्रगति नहीं की ? क्या इन सभ्यता को विकास भौतिकवाद को अपनाकर हुआ था – नहीं, बल्कि लोगों ने कठिन और कठोर परिश्रम किया। अपने जीवन मूल्यों को त्यागा नहीं बल्कि उन्ही का सहारा लेकर परिश्रम कर विकास किया। क्या रामचंद्र जी ने सफलता नहीं प्राप्त की थी जबकि उनके पास युद्ध लड़ने लायक शायद ही कुछ था, उनके पास थे तो उनके जीवन मूल्य, चारित्रिक विशेषताओ  का विश्वास, तभी उन्होंने मायावी राक्षसों का संहार किया। आज अगर बड़े या छोटे कॉलेजों को देखा जाए तो शायद ही कोई विद्यार्थी होगा जिसने महंगा मोबाइल फ़ोन या महंगे जूते ना पहने हो।

यह सच है कि युवा पीढी में दिखावे की प्रवृत्ति बढ रही है। इसके लिए काफी हद तक हालात भी जिम्मेदार हैं। आर्थिक उदारीकरण और देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगमन के बाद युवा पीढी की जीवनशैली में बहुत बडा बदलाव आया। जहां एक ओर अच्छी तनख्वाह से उनकी क्रय-शक्ति में इजाफा हुआ है, वहीं दूसरी ओर ईएमआइ पर लोन चुकाने की सुविधा ने उनके जीवन को और भी आसान बना दिया। नतीजतन उनके सामने नई जरूरतें भी पैदा होने लगीं।

आज चारों ओर कडी प्रतिस्पर्धा का माहौल है। आज के युवा अपने स्टेटस को लेकर अनावश्यक रूप से सजग हैं। शॉपिंग करते समय वे अपनी जरूरत के बजाय ब्रैंड को ज्यादा अहमियत देते हैं। युवाओं में अंधानुकरण की प्रवृत्ति तेजी से बढ रही है। इसमें फिल्मों और टीवी का भी बडा योगदान है। मेरा मानना है कि दूसरों के सामने अपनी संपन्नता का झूठा प्रदर्शन करने के बजाय उन्हें अपनी प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए सोच-समझकर खर्च करना चाहिए।

यह सब तो आज कल का फैशन बन गया है। आज के समय की यह गुहार है कि युवा जो देश का कर्णधार है उन्हे भौतिक जीवन की बाहों से बाहर आकर अपने चरित्र के विकास पर ज़ोर देना चाहिए। नैतिक जीवन को अपनाना चाहिए और धरती मां कि गोद में वापस लौट जाना चाहिए। 
आज आवश्कता है उन भरत,एकलव्य और राम जैसे युवकों की को सिर्फ भौतिकता का ही सहारा ना ले बल्कि जीवन मूल्यों और चारित्रिक विशेषताओ का विकास करना सीखे।