अयोध्या,मथुरा,काशी के धार्मिक स्थलों से अजमेर की ख्वाजा साहब की दरगाह से तुलना नहीं

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अयोध्या, मथुरा, काशी (बनारस) के धार्मिक स्थलों से अजमेर की ख्वाजा साहब की दरगाह से तुलना नहीं की जा सकती।अंतिम हिन्दू सम्राट माने जाने वाले पृथ्वीराज चौहान के समय 12वीं शताब्दी में ही ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ईरान से अजमेर आ गए थे।यह एक मात्र दरगाह है जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सूफी परंपरा का निर्वाह करते हैं।दरगाह में 70 प्रतिशत हिन्दू समुदाय के लोग आते हैं-दरगाह के खादिम।

एस0 पी0 मित्तल

अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह देश विदेश में साम्प्रदायिक सद्भावना का स्थल माना जाता है। लेकिन 26 मई को महाराणा प्रताप सेना नाम के एक सामाजिक संगठन ने यह कह कर हलचल मचा दी है कि ख्वाजा साहब की दरगाह तो प्राचीन हिन्दू मंदिर है। सेना ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखकर दरगाह परिसर का सर्वे कराने की मांग की है। सेना का यह बयान तब आया है, जब मथुरा में श्रीकृष्ण जन्म भूमि और बनारस में बाबा विश्वनाथ के मंदिर परिसरों में बनी मस्जिदों का मामला सुर्खियों में है। न्यायिक प्रक्रिया से गुजरने के बाद अयोध्या में अब भगवान राम का भव्य मंदिर भी बन रहा है। यह सही है कि आक्रांता मुगल शासकों ने हिन्दू धर्म स्थलों को तोड़ कर मस्जिदों का निर्माण करवाया। इसका सबसे बड़ा सबूत बनारस में बाबा विश्वनाथ मंदिर परिसर में बनी ज्ञानवापी मस्जिद में हुए सर्वे से पता चलता है। लेकिन अजमेर में ख्वाजा साहब की दरगाह के मामले में अयोध्या मथुरा और काशी के प्रकरण से नहीं जोड़ा जा सकता। इतिहासकार मानते हैं कि पृथ्वीराज चौहान भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट थे। ऐसा नहीं कि पृथ्वीराज के बाद कोई हिन्दू शासक नहीं हुआ, लेकिन जितना बड़ा साम्राज्य पृथ्वीराज का रहा, उनका 12वीं शताब्दी के बाद किसी हिन्दू राजा का नहीं रहा। पृथ्वीराज की वीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने तब मुस्लिम आक्रांता मोहम्मद गौरी को 17 बार हराया। 18वीं बार गोरी ने धोखे से पृथ्वीराज को कैद कर लिया। मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के संघर्ष के दिनों में ही ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ईरान से अजमेर पहुंचे। उस समय पूरे हिंदुस्तान पर मुगलों का शासन नहीं था। यानी मुगलों के शासन से पहले ही ख्वाजा साहब अजमेर आ गए थे।

12वीं शताब्दी में जिस स्थान पर ख्वाजा साहब का इंतकाल हुआ, उसी स्थान पर उनकी मजार और दरगाह है। अयोध्या, मथुरा और काशी में हिन्दू धार्मिक स्थलों को तोड़ मस्जिद बनाने की घटनाएं बहुत बाद की है। अयोध्या में भगवान राम का जन्म स्थल, मथुरा में श्रीकृष्ण की जन्म भूमि तथा बनारस में भगवान शंकर का शिवलिंग का इतिहास भारत की सनातन संस्कृति से जुड़ा है, लेकिन अजमेर में ऐसी किसी बड़े हिन्दू धार्मिक स्थल का उल्लेख नहीं है। सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी ने भी पुष्कर में यज्ञ किया था। आज इसी यज्ञ स्थल पर पवित्र सरोवर बना हुआ है। लेकिन पुष्कर से दरगाह की दूरी 15 किलोमीटर की है। यह सही है कि 12वीं शताब्दी में जब ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेर आए, तब सबसे पहले हिन्दू समुदाय के लोग ही उनके मुरी बने। ख्वाजा साहब के इंतकाल के बाद भी उनकी मजार की देखभाल हिन्दू समुदाय के लोगों ने ही की। इनमें भील जाति के आदिवासी भी शामिल है। स्वयं मुस्लिम इतिहासकार मानते हैं कि ख्वाजा साहब अकेले ही ईरान से हिंदुस्तान आए थे। स्वाभाविक है कि उनके आने के बाद ही उनके चाहने वालों की संख्या बढ़ी। ख्वाजा साहब की दरगाह एक मात्र ऐसी दरगाह है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी प्रति वर्ष सूफी परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं। ख्वाजा साहब के सालाना उर्स में पीएम मोदी की ओर से प्रतिवर्ष सूफी परंपरा के अनुरूप चादर भेजी जाती है।

मोदी देश के प्रधानमंत्री की हैसियत से संदेश भी जारी करते हैं। अपने संदेश में ख्वाजा साहब की दरगाह को कौमी एकता का प्रतीक भी बताया जाता है। मोदी समय समय पर दरगाह से जुड़े मुस्लिम प्रतिनिधियों से मिलते रहे हैं। मुस्लिम प्रतिनिधि भी मोदी की प्रशंसा करते हैं। मोदी द्वारा उर्स में भेजी गई चादर को खादिम समुदाय बड़ी अकीदत के साथ मजार शरीफ पर पेश करता है। महाराणा प्रताप सेना द्वारा उठाए गए हिन्दू मंदिर के दावे के बाद खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान के अध्यक्ष मोइन हसन चिश्ती और सचिव वाहिद हुसैन अंगारा शाह ने कहा कि आज दरगाह में 70 प्रतिशत हिन्दू समुदाय के लोग ही जियारत के लिए आते हैं। संपूर्ण दरगाह परिसर में ऐसा कोई चिन्ह नहीं है जो किसी हिन्दू धर्म स्थल का हो। मुस्लिम समुदाय का खानपान कुछ भी हो, लेकिन दरगाह के दोनों देगो में जो तबर्रुख तैयार होता है, उसमें प्याज तक नहीं डाला जाता। चावल, घी, काजू, बादाम आदि से तबर्रुख तैयार होता है। इसी तबर्रुख (प्रसाद) को मुस्लिम जायरीन भी बड़ी अकीदत (श्रद्धा) के साथ ग्रहण करता है। खादिम समुदाय का कहना है कि यदि किसी हिन्दू धर्म स्थल पर दरगाह बनाई जाती तो आज इतनी बड़ी संख्या में हिन्दू समुदाय के लोग जियारत के लिए नहीं आते।

अजमेर में चल रहे हैं जयंती के कार्यक्रम-

ख्वाजा साहब की दरगाह का विवाद सुर्खियों उस समय आया है, जब तारागढ़ की तलहटी में बने पृथ्वीराज चौहान स्मारक पर जयंती के कार्यक्रम चल रहे हैं। चौहान का स्मारक 25 वर्ष पूर्व 1996 में तब बनवाया गया, जब ओंकार सिंह लखावत अजमेर नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष थे। तभी से स्मारक पर प्रतिवर्ष पृथ्वीराज चौहान की जयंती मनाई जाती है। लखावत का कहना है कि तारागढ़ की तलहटी पर हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान का स्मारक बनाना चुनौतीपूर्ण काम था, लेकिन उन्होंने इस इस चुनौती को स्वीकार किया और यह स्मारक पर्यटन स्थल बन गया है। उन्हें संतोष है कि अजमेर के लोग प्रतिवर्ष पृथ्वीराज चौहान की जयंती के समारोह में शरीक होते हैं। जयंती के विभिन्न कार्यक्रमों की जानकारी मोबाइल नंबर 9829070059 पर कंवल प्रकाश किशनानी से ली जा सकती है।