अखण्ड भारत- संभल लो संभल जाओ..

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भास्कर चतुर्वेदी

अखंड बोलना इसलिए पड़ता है क्योंकि सबकुछ खंड-खंड हो चला है। जम्बूद्वीप से छोटा है भारतवर्ष। भारतवर्ष में ही आर्यावर्त स्थित था। आज न जम्बूद्वीप है न भारतवर्ष और न आर्यावर्त। आज सिर्फ हिंदुस्तान है और सच कहें तो यह भी नहीं।

गुल तो खिले है करोड़ो..
गुलिसताँ कौन खिलाएगा..
कौन होगा वो फरिश्ता जो..
इस बिखरे हुए हिंदुस्तान अखण्ड भारत बनाएगा..!

वो तो शरहद की रक्षा कर रहे है..
घर को कौन बचाएगा..
ऐसे ही आपस में लड़ोगे मरोगे..
तो दुश्मन घर में घुस आएगा..!

संभल लो संभल जाओ..
नही संभले तो मिट जाओगे..
तुम्हें बचाने के लिए कोई..
अवतार लेके नही आएगा..!

धर्म और जाति के नाम पे..
दंगे क्यू करते हो..
इंसान की पैदाइश हो..
फिर जानवर तुम क्यू बनते हो..!

जब एक रंग है खून का..
तो एक बनके क्यू नही रहते..
धर्म और जाति के नाम पे..
भारत देश के टुकडे न करो..!

जय हिंद….. जय हिंद….. जय हिंद…..