गज़ब है देश की जनता…!

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ये राजनीति भी गज़ब है. उससे गज़ब हैं राजनीतिज्ञ. उससे गज़ब है देश की जनता. एक और वर्ग गज़ब है समर्थक, उसकी चर्चा के बिना कोई चर्चा अंज़ाम तक नहीं पहुंच सकती. कारण मात्र इतना है कि उसका काम भी केवल चर्चा करके अपने राजनीतिक आकाओं के लिए मौका बनाना है. और वो इस काम में सदैव लगे रहता है. ये इतने गज़ब होते हैं कि समर्थन में जिसे टट्टी जैसा कह चुके होते हैं, विरोध में आने पर उसे खाद की विशेषताओं से नवाज देते हैं.

एक और वर्ग है, इसी राजनीति की परिधि में घूमता रहता है. पत्रकार कहते हैं उसको. इस कदर सत्ता के केन्द्र में जाने को लालायित रहता है कि लोग पूछने लगे हैं कि किस पार्टी के पत्रकार हो. बेशर्मी की इंतेहा इतनी की, पूरी ठसक के साथ बताते हैं कि हम समाजवादी पत्रकार हैं. राष्ट्रवादी पत्रकार हैं. साम्यवादी पत्रकार हैं. कांग्रेसी पत्रकार हैं. फलाना ढिमका पत्रकार हैं. और तो और अब तो बिना पूछे ही सगर्व बताने लगते हैं कि फलाने वाले पत्रकार हैं.

अब पत्रकारों के जिम्मे ये काम ही नहीं रहा कि तथ्य ढूंढे और जनहित में उसे सामने रखे. वो बस अपनी राजनीतिक निष्ठाओं को केन्द्र में रखकर तथ्य संयोजित करता है. प्रॉपर्टी डीलर से लेकर राजनीतिक दलों के पदाधिकारी तक पत्रकार बन जब पत्रकारिता की दुहाई देते हैं तो कुछ लोग कटकर रह जाते हैं. अफ़सोस कलम वाले भी हिस्सों में बंटकर चंदबरदाई की परंपरा निभाये जा रहे हैं. सस्ते और सतही लोग बदसूरत दिखने लगे हैं, लेकिन ये ख़बर उनतक अभी पहुंची नहीं है.

बाकी भारतीय राजनेता दोगलेपन में विश्व मानचित्र पर सबसे मज़बूत दख़ल रखते हैं. मुद्दों की रेसिपी को कब वायदों के चूल्हे पर पकाना है और कब सियासी बाज़ार में बेच देना है, ये भारतीय नेता बख़ूबी जानता है. बाकी उपहास करना, सोशल मीडिया के दौर में ट्रोलिंग कहना ज़्यादा सही होगा, राजनीति में नया नहीं है. कांग्रेसी बस्ती में जन्मी और पली बढ़ी ट्रोलिंग भाजपा के राज में जवान हो गई है. और ये जवानी अनगाइडेड मिसाइल की तरह कहीं भी हमला कर रही है. ट्रोलिंग अब गौरव का विषय है. साहेब भी ट्रोलिंग अच्छी कर लेते हैं.

वो कितना बदसूरत हो गया है, बस उसको ये ख़बर नहीं है.

गज़ब की फकीरी है भाई, देश महामारी से जूझ रहा है.