सी-2 अब मेरा ना रहा दिनेश गर्ग

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वर्ष 1997 में मुझे आवास संख्या सी 2 दिलकुशा कालोनी आबंटित हुआ था । सितंबर 1997 में वहां रहने आया तो फिर इसी आवास में अब तक रह गया । तत्कालीन निदेशक सूचना आदरणीय रोहित नन्दन सर आईएएस और राज्य संपत्ति अधिकारी मेरे शुभचिन्तक थे । रोहित सर ने मुझे सचिवालय के निकट रहने हेतु माननीय मुख्यमंत्री मायावती जी से अनुरोधकर यह आवास आबंटित कराया था जबकि राज्य संपत्ति अधिकारी एम ए सिद्दीकी साहब आई ए एस ने व्यक्तिगत रुचि लेकर हाथों-हाथ न केवल आवास आबंटन आदेश पारित किया बल्कि आबंटित आवास का अच्छे से मेन्टेनेंस भी करवा दिया । मैं दोनों अधिकारियों का आभारी हूं ।


सी 2 दिलकुशा का आवास इतना बडा रहा कि 1998 में जब मेरे पिता जी प्रातः स्मरणीय आचार्य पण्डित रमाकांत शुक्ल किडनी फेल्योर और मेरुदंड के कैंसर से लगभग मृतप्राय हो इलाज के लिए पीजीआई लखनऊ आये तो उनकी परिचर्या के लिए साथ में आया 6 लोगों का समूह भी इस आवास में आधे वर्ष तक रहा , बार बार वे आते और लम्बे समय तक इलाज के लिए आते पर हमें व बच्चों को कहीं भी स्थान की संकीर्णता नजर नहीं आयी ।
वर्ष 2919 के अक्तूबर में रिटायर होने के बाद मैंने सोचा था कि यहीं से अपने निजी आवास में जाऊंगा , मकान मालिकों की रोक-टोक, दखलंदाजी से बचकर निकल सकूंगा , पर वही होता है जो ” मंजूरे खुदा ” होता है । खुदा को मेरी योजना मंजूर नहीं थी । मैंने लगभग ढाई वर्ष तक सी 2 में पेनाल्टी देकर रहते अपने आवास की प्रतीक्षा की लेकिन बिल्डर जैसा कि प्रसिद्ध है खून के ऑसू रुलाते हैं तब भी जरूरी नही की फ्लैट आपके हाथों सौंप ही दें , उसे सच करते हुए मुझे मेरा फ्लैट नहीं दे सका ।


सूचना विभाग के वर्तमान निदेशक श्री शिशिर जी आई ए एस व श्री हेमंत कुमार सिंह संयुक्त निदेशक की शुभेच्छाएं मेरे लिए रहीं , उन्होंने प्रयास किया कि मैं अपने आवास जिसके इस वर्ष दिसम्बर तक मिलने की सम्भावना रेरा के अनुसार थी , तक सरकारी आवास पर रह सकूं पर वैसा हो न सका । मुझे पता चला कि एक बहुत उच्च पदस्थ अधिकारी को सी 2 दिलकुशा आबंटित हो चुका है , और इसलिए आवास की खोज कर ही रहा था कि आबंटी महोदय एक दिन मेरे घर आ ही गए और मुझसे कहा कि आप शीघ्र रिक्त कर दीजिये , उन्हे आवास के लिए माननीय विधायक जी के आवास पर रहना पड रहा है । परेशानी जायज थी , इसबीच मेरे सहपाठी और रिश्तेदार श्री अखिलेश कुमार ने मेरी परेशानी का निराकरण करते हुए मुझे अपने आवास का ग्राउण्ड फ्लोर का आफर कर दिया । भूखे को चाहिए क्या- भात । मैंने अखिलेश जी के प्रस्ताव को तत्काल लपक लिया । वह मकान-मालिक होंगे और रोकेंगे-टोकेंगे, हस्तक्षेप करेंगे तो पीडा नहीं होगी , जैसे घर के लोगों से कभी पीडा नहीं होती।


सो मित्रों 25 वर्ष एक ऐसे मकान में रहा जो अपना नहीं था , पर अपने की तरह था । मेरी जवानी वहां बीती , मेरे माता-पिता का वार्धक्य वहीं बीता , मारे बच्चों का बचपन, पढाई-लिखाई वहीं हुई, दोनों लडकों का कैरियर/नौकरी वहीं शुरू हुई, मेरी बडी बहू मानवी वहीं आई और मेरा पौत्र रोसो उसी घर में आया , बढकर दो साल का हुआ । हम चार पीढियों का जीवन उस आवास से आबद्ध रहा । अब वह अपना नहीं है । राज्य संपत्ति अधिकारी डाॅ वीके सिंह की कलम की एक हरकत से मैं छत विहीन हो गया । मानवों के लिए निर्मित नियमों में मानवीयता नहीं होती । इस बात का मुझे कोई रंज भी नहीं बस चार पीढियों की स्मृतियां ही मेरी ऑखों को नम करे देती हैं और मेरे दिल में टीस रही हैं ।
चलते चलते : मेरे शुभेच्छु रोहित नन्दन सर , सिद्दीकी सर मेरी तरह ही इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के रहे जबकि शिशिर सर बलिया और हेमन्त सर वाराणसी के खानदानी परिवार के रहे । हम सभी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र भी रहे । यह अद्भुत संयोग रहा । सचिवालय के कार्यकाल में मैने अनुभव किया कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुरा छात्रों की बराबरी में कोई टिकता नहीं था । पता नही उस विश्वविद्यालय की हवा में ऐसा क्या है ।