चौरी चौरा काण्ड.. एक जन क्रांति

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केवल प्रसाद सत्यम

सत्यम साहित्य संस्थान, लखनऊ के तत्वावधान में 75वें स्वतंत्रता वर्ष के ’अमृत महोत्सव पर्व’ पर एक दिवसीय वार्षिक काव्य समारोह में पुस्तक ”चौरी चौरा काण्ड… एक जन–क्रांति” का लोकार्पण एवं २७ सुधि साहित्यकारों को साहित्य रत्न और साहित्य श्री सम्मान से सम्मानित किए जाने का आयोजन 26 जून को स्थानीय डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ लखनऊ में सम्पन्न हुआ।

यह आयोजन दो सत्र में–
प्रथम सत्र में, अध्यक्ष साहित्य भूषण मधुकर अस्थाना, मुख्य अतिथि आत्म प्रकाश मिश्र, सहायक निदेशक लखनऊ दूरदर्शन, अति विशिष्ट अतिथि डा. दिनेश चन्द्र अवस्थी, विशिष्ट अतिथि डा. सुलतान शाकिर हाशमी व स्माइल मैन सर्वेश अस्थाना, मुख्य वक्ता डा. गोपाल नारायण श्रीवास्तव और कुमार तरल तथा कार्यक्रम का संचालक शायर आलोक रावत ’आहत लखनवी’ एवं लेखक केवल प्रसाद सत्यम की उपस्थिति में पुस्तक चौरी चौरा काण्ड… एक जन–क्रांति” को लोकार्पित किया गया। इस अवसर पर लखनऊ के सुधि साहित्यकारों एवं प्रदेश के अन्य जनपदों से आए हुए कलमकारों की उपस्थिति ने इस आजादी का अमृत महोत्सव पर्व के आयोजन को भव्यता प्रदान किया।

प्रथम व मुख्य वक्ता के रूप में डा. गोपाल नारायण श्रीवास्तव ने कहा कि यह कृति विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए उपयोगी है जो प्रमाणिक और ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर पुष्ट अभिलेख ही है। इसकी भाषा शैली और कथ्य बहुत ही सरल, स्पष्ट तथा पठनीय है। इसमें भारत देश की एकात्मकता, सामाजिकता, राष्ट्र–धर्म, देश–प्रेम और विश्वबंधुता की भावना को चिरस्थाई रूप में प्राथमिकता से उल्लेख किया गया है।
अगले वक्ता के रूप में वरिष्ठ समीक्षक कुमार तरल ने कहा कि सत्यम सदैव सामाजिक हितों के पक्ष में अपनी कलम चलाते रहते हैं। इस पुस्तक में भी ऐतिहासिक तथ्यों को सामाजिक एकता की भावना में पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में बांधते हुए देश के दुश्मनों (अंग्रेजों की) क्रूर विचारों को स्पष्ट किया है।

इस श्रृंखला के विशेष अतिथि सम्मान में अनिल कुमार वर्मा उपाध्यक्ष, डाॅ सुभाष चन्द्र गुरूदेव, के.के. अस्थाना अतिथि, संध्या सिंह, अतिथि, अनिल कुमार पाण्डेय पुरोहित को सम्मानित किया गया।द्वितीय श्रृंखला में साहित्य रत्न में डाॅ. नीलम रावत, सुनील त्रिपाठी, मनोज शुक्ला मनुज, मनमोहन बारकोटी, महेश चन्द्र गुप्त ‘महेश’ अलका अस्थाना ‘अमृतमयी’ व कु.सौम्या तिवारी को सम्मानित किया गया।तृतीय श्रृंखला में साहित्य सम्मान में राम किशोरर त्रिवेदी , अनीता सिन्हा, उमाशंकर तिवारी , आर.बी शर्मा राम प्रसाद श्यामल अमेठी, इन्द्रसन इन्दु योगेश शुक्ला-योगी, दिनेश चन्द्र प्रखर उन्नाव अनुराम मिश्र संजीव तिवारी , उन्नाव जहां आरा जी को सम्मानित किया गया।

स्माइल मैन सर्वेश अस्थाना ने कहा कि सृजन का उद्देश्य ऐतिहासिक तथ्यों पर लिखना और प्रचार करना बहुत ही कठिन कार्य है। इतिहास के विषय में पठनीयता का संकट रहता है। इसलिए पुस्तक का कंटेंट रुचिकर होना आवश्यक है। जिसका सत्यम ने पूरा ध्यान रखते हुए बड़ी सहजता और रोचकता से तथ्यों को प्रस्तुत किया है। जो भी पाठक इस पुस्तक के पाँच –दस पृष्ठ पढ़ लेगा, वह पूरी किताब पढ़कर ही चैन से बैठ सकेगा। गलत का प्रतिकार और सत्य का अंगीकार करने वाला व्यक्ति ही सत्यम हो सकता है। यह सच ही है कि स्वतंत्रता संग्राम में दोनों ही पक्ष में भारतीय लोग ही थे। अत: दोनों ही पक्षों को शहीद का दर्जा दिया जाना औचित्य पूर्ण और आवश्यक हो जाता है। आगे कहा कि इस पुस्तक की सामाजिकता, राष्ट्रवाद और आपसी भाईचारा और गंभीरता में संवेदना की प्रकृति को सरकार द्वारा लिया जाना चाहिए और इस पुस्तक को भारतीय विद्यार्थियों के पाठ्यक्रमों में भी जोड़ा जाना चाहिए।

डा. दिनेश चन्द्र अवस्थी जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि प्रस्तुत कृति शोधपरक, गहन अध्ययन करके इस पुस्तक की रचना की है। कथानक और घटनाएं यथार्थ तथ्यजनक और सजीव चिरतात्मक वर्णन है। सहायक निदेशक लखनऊ दूरदर्शन ने अपने वक्तव्य में स्पष्ट किया कि चौरी चौरा की घटना काण्ड नहीं बल्कि एक जन आक्रोश और प्रतिकार में अभिव्यक्ति की मूर्त रूप चेतना ही थी। इसका सीधा सा अर्थ यह है कि जब तक input नहीं होगा तब तक out put नहीं होगा। संस्था के अध्यक्ष ने कहा कि चौरी चौरा एक ऐसी घटना थी जो देशवासियों की अंतरात्मा से निकले जागरूकता के भाव थे। हमारे मनोभाव तब तक जाग्रत नहीं होते जन तक हमारी संस्कृति को चोट नहीं पहुंचती है।

“भावना आहत हुई बढ़ने लगी संवेदना, और उसके बाद फिर देखी गई उत्तेजना।
जब कोई घटना कभी झकझोर देती है हमें, तब कहीं जाकर दिलों में जागती है वेदना। “

डा. सुलतान शाकिर हाशमी जी ने स्पष्ट किया कि पुस्तक के मुख्य आवरण पर “चौरी चौरा काण्ड.. एक जन क्रांति” शीर्षक से यह अर्थ निकलता है कि कथित घटना जन समूह के सामूहिक आक्रोश का प्रतिफल अर्थात जनक्रांति ही थी। आगे यह भी बताया कि उन्होंने चौरी चौरा घटना को अपनी पुस्तक ’The Golden Chapter of Indian’ में ’मुसाकर’ लिखा है। काकोरी में राजकीय कोष क्षति को बचाने के लिए उसे ’एक बड़ी घटना’ लिखा है। भारत के इतिहास में बहुत सी ऐसी घटनाएं घटी हैं। खुशी इस बात की है कि आज के परिवेश में जिस प्रकार की सार्थक और सकारात्मक चर्चा हुई है, इसका दिल से स्वागत है। वास्तव में सत्यम जी के गंभीर और सकारात्मक लेखन को देखते हुए यह कहना उचित ही है कि यह किताब कोई मामूली किताब नहीं है बल्कि यह साहित्यिक, अभिलेखीय और भाषगत देश का महत्वपूर्ण इतिहास है। इस पुस्तक में शब्दों को चुन चुन कर बड़ी परिश्रम से जनाक्रोश को अभिव्यक्ति किया गया है। यह पुस्तक हिंदी साहित्य में ही नहीं बल्कि भारत के इतिहास में भी एक मील का पत्थर साबित होगी। मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास भी है कि भविष्य में इसे भारतीय छात्रों के पाठ्यक्रम में भी जोड़ा जा सकता है। आजादी के अमृत महोत्सव पर्व में इस पुस्तक के माध्यम से पंडित मदन मोहन मालवीय जी को याद करके उनके द्वारा १५१ निर्दोष लोगों को फांसी की सजा से बचा लेना उनकी बौद्धिकता, भारतीयता, देशप्रेम और श्रेष्ठ विचार के द्योतक हैं। लखनऊ समझौता का उल्लेख भी इस पुस्तक में हुआ है जो क़ौमी एकता और आपसी भाईचारा का वृहद तथ्य प्रस्तुत करने में सफल है। यह जन क्रांति किसी जाति, धर्म, वंश और समुदाय का नहीं बल्कि एक हिंदुस्तानी लोगों का असहयोग आंदोलन था। जिसे अंग्रेजी सरकार नेस्त नाबूत करना चाहती थी।


“हिन्दू दिखाई दे कि मुसलमां दिखाई दे,आंखे तरस रहीं हैं कि इंसा दिखाई दे।”


आगे कहा कि यदि सन 1916 का लखनऊ समझौता पर स्थाई रूप से अमल हुआ होता तो भारत का विभाजन कभी न हुआ होता। भारतीय जनमानस में सर्वदा से राष्ट्रवाद था। देश में पहली बार इस पुस्तक में स्पष्ट किया गया कि जब छुआछूत अपने चरम पर था तब चौरी चौरा के लोग एक साथ मिलकर जिस तरह का जनांदोलन को रूप दिया वह अदभुत और अकल्पनीय ही था। इस पुस्तक ने आपसी भाईचारा और राष्ट्रवाद के स्वरूप को बड़ी गंभीरता और संवेदना से समाज के सम्मुख रखा है।

साहित्य भूषण मधुकर अष्ठाना ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि आज इस सभागार में श्रेष्ठतम विद्वान उपस्थित हैं।सत्यम जी सिर्फ सत्यम ही नहीं हैं वे शिवम् और सुंदर भी हैं। बिना शिवम् और सुंदर के सत्यम हो ही नहीं सकता है। वास्तव में सत्यम जी के इस पुस्तक में अंग्रेजो द्वारा भारत देश में रॉलेट एक्ट को लागू किया जाना ही जालियांवाला बाग का नरसंहार और चौरी चौरा जनक्रांति का स्वरूप भारतीय इतिहास में आया। इसके जिम्मेदार भी अंग्रेज लोग ही थे। आगे उन्होंने कहा कि यद्यपि कि इतिहास शुष्क और नीरस होता है फिर भी सत्यम जी ने इसमें पठनीयता का रस भर दिया है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने कहा है कि यदि समाज में रस(आनंद) ही नहीं होगा तो आप कैसे प्रगति करेंगे। इसी तरह यदि साहित्य में रस न हो तो आप कैसे पढ़ेंगे। इस पुस्तक ने राष्ट्रीय, सामाजिक एकता और भाईचारा के रस से अपने पाठकों को आकर्षित कर रहा है। भारत देश से पहले और विश्व में पहली बार रूस की क्रांति हुई थी जिसकी तुलना विदेशी विद्वानों द्वारा चौरी चौरा जनक्रांति से की जाती रही है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सत्यम जी की यह पुस्तक सामाजिकता, राष्ट्रीयता और मानवता के लिए एक सद्ग्रंथ है। जिसका हर ओर स्वागत किया जाना चाहिए।

इसके बाद दोपहर के भोजन के बाद आए हुए सभी कवियों का सुमधुर और सादर काव्यपाठ हुआ। जिसके अध्यक्ष साहित्य भूषण कमलेश मौर्य मृदु जी सहित मधुकर अष्ठाना, डा.सुभाष चंद्र गुरुदेव, डा. गोपाल नारायण श्रीवास्तव, अनिल कुमार कौशल, सुनील बाजपेई मंच पर उपस्थित थे। सभागार में हुए काव्यपाठ की सभी श्रोताओं ने भूरि भूरि सराहना के साथ अपना आशीर्वाद दिया। अन्त में धन्यवाद ज्ञापन संस्था के कर्मठ सदस्य मनमोहन बाराकोटी जी के किया।