डराने लगा है मुख्य सचिव का 5 जुलाई का आदेश…

77

50 वर्ष पूरे कर चुके सरकारी कर्मचारियों के अनिवार्य सेवानिवृत्ति का जिन्न  बोतल से फिर बाहर आया।डराने लगा है मुख्य सचिव का 5 जुलाई का आदेश। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने मुख्य सचिव को याद दिलाया पहले के नियम।

 अजय सिंह

लखनऊ। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जे एन तिवारी ने एक प्रेस विज्ञप्ति में अवगत कराया है कि सरकारी कर्मचारियों को डराने के लिए सरकार समय-समय पर कोई न कोई आदेश प्रसारित करती रहती है। हड़ताल पर प्रतिबंध के लिए एस्मा पहले से प्रभावी है, धरना जुलूस प्रदर्शन पर भी रोक लगी है। अब 50 वर्ष सेवा पूरी कर चुके सरकारी कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति का जिन्न बोतल से फिर बाहर ला दिया गया है ताकि सरकारी कर्मचारी डरे रहे तथा अपनी मांगों के लिए आवाज न उठा सक एक तरफ विभागों में रिक्त पद सिर्फ कागजों पर भरे जा रहे हैं दूसरी तरफ 50 वर्ष से अधिक के कर्मचारी जबरिया सेवा से हटा दिए जाएंगे तो सरकारी सेवाओं पर इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा।

 जे एन तिवारी ने बताया है कि वित्तीय हस्त पुस्तिका खंड 2 भाग 2 से 4 के मूल नियम 56 के अंतर्गत पहले से ही यह प्रावधान किया गया है कि नियुक्ति अधिकारी 3 महीने की नोटिस देकर किसी भी कर्मचारी को जो 50 वर्ष की सेवा पूरी कर चुका है सेवा से बाहर कर सकते हैं। यह प्रावधान कर्मचारियों पर अंकुश लगाने के लिए काफी था लेकिन समय-समय पर  इस संबंध में अनेकों शासनादेश जारी कर सरकार कर्मचारियों को डराती रही  है। 

50 वर्ष के कर्मचारियों को सेवानिवृत्त करने के लिए वित्तीय हस्त पुस्तिका के मूल नियम 56 का जब दुरुपयोग होने लगा तब कर्मचारियों की मांग पर 1985 में एक स्क्रीनिंग कमेटी का गठन किया गया। यह कमेटी 50 वर्ष की सेवा पूरी कर चुके कर्मचारियों के प्रकरणों पर विचार करती है तथा सेवा के अयोग्य पाए जाने वाले कर्मचारियों को सेवा से बाहर करने के लिए 3 माह की नोटिस देती है। इसमें यह भी प्रावधान है कि यदि एक बार किसी कर्मचारी को स्क्रीनिंग कमेटी सेवा में रखे जाने का निर्णय ले लेती है तो उसे उसकी अधिवर्षता तक सेवा से निकाला नहीं जाएगा लेकिन मुख्य सचिव का यह आदेश जिसमें 31 जुलाई 2022 तक कार्यवाही की जानकारी मांगी गई है अपने आप में सवाल खड़ा कर रहा है।  50 वर्ष की सेवा पर स्क्रीनिंग की कार्यवाही के लिए पूर्व से ही 3 महीने की नोटिस का समय निर्धारित है। अब 5 जुलाई के आदेश पर 31 जुलाई तक अनुपालन कैसे संभव हो सकता है?

इसमें विधिक समस्या होगी तथा कर्मचारी न्यायालय की शरण में भी जा सकते हैं। कर्मचारियों की स्क्रीन के लिए पूर्व में भी 1989, 1996 ,2,000, 2007 एवं 2017 में आदेश जारी हो चुके हैं। यह सभी आदेश सरकारी सेवाओं में दक्षता सुनिश्चित करने के लिए सरकारी कर्मचारियों की अनिवार्य सेवानिवृत्ति हेतु स्क्रीनिंग से संबंधित है। यदि 50 वर्ष के बाद भी कर्मचारी सरकारी सेवाओं में दक्षता पूर्ण कार्य कर रहा है तो उसको निकाले जाने के लिए स्क्रीनिंग कमेटी में भेजने का कोई औचित्य नहीं है। अधिकतर मामलों में स्क्रीनिंग कमेटी निष्पक्ष होकर काम नहीं करती है। कर्मचारी समस्याओं के खिलाफ आवाज उठाने वाले कर्मचारियों  को स्क्रीनिंग कमेटी का कोप भाजन  होना पड़ता है, जबकि कमेटी केअधिकारियों के चहेते, चाहे उनकी दक्षता हो या ना हो वह ऐश करते हैं। इस शासनादेश का भी इसी प्रकार का अगर दुरुपयोग हुआ तो कर्मचारियों में असंतोष बढ़ेगा। मौजूदा हालात में इसकी संभावना बहुत अधिक है।जे एन तिवारी ने मुख्य सचिव से अनुरोध किया है कि स्क्रीनिंग से संबंधित 1985 के आदेश का ही अनुपालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। दो वर्ष बाद ही 2024 में लोकसभा चुनाव है यदि इसी तरह कर्मचारियों पर उत्पीड़न की कार्यवाही होती रही तो उत्तर प्रदेश में सरकार के लिए चुनाव भारी पड़ सकते हैं।