तनी हुई मूंछ रखने पर दलित की गोली मारकर हत्या..!

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जब मुस्लिम-दलित विवाद होता है तो ये हिन्दू सवर्ण आंदोलन छेड़ देते हैं और जब खुद ज़ुल्म करते हैं तो सांप सूंघ जाता है..!

राकेश कुमार सिंह

—– ऐसा क्यों….?? —–

यह पहला मौका नहीं है जब गुजरात में किसी दलित व्यक्ति को मूंछ रखने के लिए मारा, पीटा गया हो बल्कि इससे पहले भी जान से मारे गए हैं। अजीब सी खबरें लगती है न मूछ रखी और मार दिया। जहां ऐसी इस तरह की मान्यता नहीं होगी वे विश्वास नहीं करते और फिर खुद के हिसाब से कहानी भी बना लेते हैं।

हमारे देश में ऐसा ही होता है कहीं मूंछ रखने के लिए मार पड़ती है, कहीं जय भीम रिंगटोन रखने पर मार देते हैं, कहीं घोड़ी चढ़ने पर हत्याएं होती है, कहीं मन्दिर प्रवेश पर, कहीं खाना छूने पर, कहीं अंतरजातीय विवाह पर, कहीं कुर्सी में बैठने पर तो कहीं कुछ न कुछ है जो हत्या, मारपीट, भेदभाव की वजह है।

हर दिन असंख्य घटनाएं होती है और हम भी आदि हो गये। दोष किसी को नहीं दे सकते क्योंकि व्यवस्था में भागीदारी भी सभी की है और अव्यवस्था के दोषी भी सभी हैं। सभी की जागरूकता और सहयोग से ही यह बदलाव सम्भव है। मुझे समस्या केवल इस बात की है जब लोग समस्याओं को नकारते हैं या एक घटना की तुलना दुसरी से करते हैं।

कल्पना कीजिए मूंछ रखने पर,घोड़ी चढ़ने पर, मन्दिर जाने पर कोई किसी को मार दे और व्यवस्था के बहुसंख्यक उसपर आक्रोश जाहिर करने की बजाय हजार कुतर्क करें यह दुखदाई होता है। हमारे वाट्सएप में हमारे मतलब की खबरे आसानी से पहुंचती है इसका मतलब यह कतई नहीं होता है कि बाक़ी सब बेमतलब है।

सुरेश मूछ भी रखेगा, दाड़ी भी। सुरेश चश्मे भी रखेगा और गाड़ी भी। सुरेश कोट, पैंट भी पहनेगा, सुरेश क्लीन शेव भी करेगा। सुरेश का जो मन हो, सुरेश वह करेगा लेकिन सुरेश अब बेवजह नहीं पीटेगा।सरहदें, सीमाएं लांघकर दुनिया चांद और मंगल पर पहुंच गई लेकिन एक तुम हो कि मन्दिर की दहलीज लांघने वालों से लड़ने में लगे हो, घोड़ी चढ़ने वालों से भिड़ने में लगे हो, पानी पीने के लिए मारने में लगे हो।कुछ कहेंगे कि सुरेश को भी जागृत होना होगा। घोड़ी में कुछ नहीं रखा है बीएमडब्ल्यू, मर्सिडीज और हवाई जहाज पर चढ़ने के ख्याल करना होगा। बात उचित भी है लेकिन घोड़ी हो या गाड़ी, मूछ हो या दाड़ी किसी बपौती तो नहीं है न….?