हमर पुरखौती जिनीस आय देवारी के कुम्हड़ा-कोचई के साग ह

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प्रिया देवांगन “प्रियू”

             हमर छत्तीसगढ़ म अब्बड़ तिहार मनाये जाथे; अउ मनाना घलो चाही, काबर की तिहार मनाये ले लोगन म मया-दुलार अउ मीत-मितानी बाढ़थे। रोज दिन तो मनखे मन अपन काम-बूता म भुलाये रहिथे। कोनों ल कोनों ले बात करे तक के समय नइ राहय। जेन दिन तिहार आथे, ओ दिन जम्मो परिवार सँघरा सकलाथे अउ मीठ-मीठ बोली बोलत रहिथे। ईमान से, बड़ निक लागथे।

          हमर पुरखा के बनाये नियम हर खाली नइ जावय। कुछ न कुछ सन्देश जरूर मिलथे। देवारी तिहार म कांदा-कोचई के साग-पान राँधे के नियम हे। पुरखा मन का सोच के कांदा-कोचई ल राँधत रिहिस होही। अउ दूसर साग घलो तो बना सकत रिहिसे न ? ये गोठ ल खाल्हे कोती गोठियाये हँव।

कुम्हड़ा-कोचई का हरय – 

          कुम्हड़ा ह साग के गिनती म आथे। अउ फल भी माने जाथे काबर की येकर से हलुआ जइसे मीठा बियंजन घलोक बनाये जाथे। येहर गाँव-गँवई के बारी-बखरी मा, बोवाये रहिथे। बारी म बीजा ल खोंच के नार ल छानही-परवा म चढ़ा देथे । जब कुम्हड़ा फरथे त रग-रग ले दिखथे। कुम्हड़ा गोल, अंडाकर  होथे। येखर रंग हरियर अउ पाके ले पिंवरा जाथे। घर-घर म येला लगाये अउ सस्ता घलो मिल जात रिहिसे। येहर कुँवार-कार्तिक महीना म आथे। येकरेसती तको हमर बबा-दाई मन बनाये। कुम्हड़ा म विटामिन के मात्रा जादा होथे अउ ये हर शरीर ल नुकसान नइ पहुँचावय। पाचन शक्ति घलो बढ़ाथे। मसलहा अउ भुंजुआ दूनों ढंग ले बनाये जाथे। तेकरसेती कुम्हड़ा ल देवारी तिहार मा राँधे के नियम होगे। 

          कुम्हड़ा के बड़ फायदा हे। शरीर के छोटे-बड़े बीमारी ल दूर करथे। येमा कार्बोहाइड्रेट, आयरन पोषक तत्व अउ विटामिन सी अउ ई के मात्रा पाये जाथे, जेन हर त्वचा से फोड़ा फुंसी ला मिटाथे। शरीर के मोटापा ला दूर करथे। येमा कैलोरी कम मात्रा म पाये जाथे ते पाय के शरीर के मोटापा घटाथे। पाचनतंत्र भी बढ़िया रहिथे।

मही के कुम्हड़ा साग म कोचई के भूमिका- 

          कोचई एक कांदा ए। ये जमीन के अंदर रहिथे। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्र के एकमात्र कांदा (कंद) हरे जेन कुँवार-कार्तिक मा निकाले जाथे। येला अम्मट दही-मही डार के बनाये जाथे। कोचई के अब्बड़ अकन फायदा हे येमा फाइबर के मात्रा अबड़ रहिथे, विटामिन बी के मात्रा भी पाये जाथे। जेन बहुत सारा बीमारी- पेट म जलन, पेट दर्द, दस्त जइसन रोग ला दूर करथे। खाना ल पचाये के काम बने करथे। येला दही-मही अउ कभू पताल डार के मसलहा घलो बनाये जाथे।

तिहार के दिन लोगन मन तेलहा-फुलहा, रोटी-पीठा खाये रहिथे। तेकर कारण भी सियान मन हर कुम्हड़ा अउ कोचई ला अम्मट मा रांँधे। ताकि पाचन शक्ति बढ़िया राहय, जेन ह आज परम्परा रूप म चलते हे।

कुम्हड़ा-कोचई साग राँधे के नियम –

          कुम्हड़ा ल नान-नान काट दे जाथे। कोचई ला छिल के वहू ल नान-नान काट देथे। दूनों ला पानी म धो देथे। कढ़ाई म तेल डारके सरसों, मिरचा,अउ मीठा लीम के फोरन देथे । कुम्हड़ा-कोचई ल घलो डार देथे जब दूनों लाल-लाल भूँजा जाथे त ओमा नून,  मिरचा,धनिया, हरदी-लसून डार देथे। थोकिन देर बाद दही या मही ला आवश्यकतानुसार डारे जाथे। ओकर बाद बने डबके के बाद चुल्हा ले उतार देय जाथे। कोचई अउ कुम्हड़ा ला मिझंरा बनाथे त दूनो के स्वाद अउ बढ़ जाथे।

लोकसंस्कृति अउ कुम्हड़ा-कोचई – 

          छत्तीसगढ़ मा हमर पुरखा मन हर इही समय मा सब ले पहिली कुम्हड़ा-कोचई आये के कारण येखर साग राँधे रिहिस होही। कुम्हड़ा अउ कोचई दूनो ला मही-दही डार के बनाये होही त ओखर स्वाद गुरतुर लागे रिहिस होही। बड़ मिठाये रिहिस होही। एक-दूसर ले चर्चा के बाद सियान मन देवारी तिहार म ये साग ल राँधे के चालू कर दिस । तइहा जमाना ले चले आत हे कुम्हड़ा-कोचई साग बनाना। देवारी के गोबरधन पूजा के दिन येकर सब्जी ल खिचरी म मिला के गरुवा ल खवाय जाथे। ये एक परम्परा चलगे। घरोघर बनाथे अउ माइपिल्ला जम्मो झन सुवाद ले ले के खाथे। आज हमर संस्कृति ला कायम रखना हे ताकि ये परम्परा सदा दिन चलत रहे अउ आने वाला पीढ़ी ल जानकारी मिलत रहे।

संरक्षण व संदेश –

          हमर तीज-तिहार के परम्परा चलते रहना चाही अउ येखर अनुकरण आने  वाला पीढ़ी घलो करे । अइसन तिहार अउ नियम सदा जीवित रहे। तभे हमर पुरखा के मान हो पाही।