अगर खड़ी दीवार हो गयी….

133
अगर खड़ी दीवार हो गयी....
अगर खड़ी दीवार हो गयी....

~अगर खड़ी दीवार हो गयी~
~तो आँधी रुक सकती है~

अभी रिहर्सल शुरू हुआ है, ये आगे का खेला है।
यदि चुनाव में धारा आयी, तब तो बड़ा झमेला है।
टुकड़े टुकड़े किये संगठन, पद दे कर भटकाया है।
और अनेकों को धन दे कर, उल्टा ही लटकाया है।
सामाजिक संगठनों का भी, बिगड़ा ताना बाना है।
बिना लगाये हाथ देख लो, साधा खूब निशाना है।
झूठा ही इतिहास बता कर, कितना मान बढ़ाया है ?
बिना व्यवस्था को तोड़े ही, ऊपर खूब चढ़ाया है।
जिन्हें नसीब नहीं है घर भी, वे महलों के राजा हैं।
सिक्के भी तो चला दिये, बन बैठे सब महाराजा हैं।
अलग अलग जो बनी जातियाँ, उन सबको ही घेरा है।
लिये मशाल सड़क पर घूमें, खुद के यहाँ अंधेरा है।
अगर नहीं आवाज उठी तो, होगा आगे हाल यही।
सफल हुआ ये खेल समझ लो, फिर फैलेगा जाल यही।
दहशत गर्दी बता रही है, ये है खेल सुपारी का।
खुले आम हर खेल चल रहा, ये है नहीं मदारी का।
षड्यन्त्रों की है प्रयोग शाला, सब उसमें ढले हुये।
जो भी वहाँ छोड़ कर भागे, वे सारे हैं जले हुये।
कहीं कहीं पर अभी रास्ते, लम्बे होने वाले हैं।
कुछ गुलाम तो रहे हमेशा, सब कुछ खोने वाले हैं।
अभी हवा है फिर जमकर, तूफान उठाया जायेगा।
हर गरीब के जीने का, सामान उठाया जायेगा।
अगर खड़ी दीवार हो गयी, तो आँधी रुक सकती है।
सत्ता अभी घमण्ड भरी है, वो कैसे झुक सकती है ?
कहीं कहीं पर भीड़ अधिक है, कोई खड़ा अकेला है।
हमें यही आभास हो रहा, खेल सभी ने खेला है।
अभी रिहर्सल शुरू हुआ है, ये आगे का खेला है।
यदि चुनाव में धारा आयी, तब तो बड़ा झमेला है।