क्या यशवंत को सांसद बनाने की सोच रही है भाजपा…?

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पहले निष्कासन का दंश, अब यशवंत को आजमगढ़ से सांसद बनाने की सोच रही है भाजपा?

दिल्ली दूर है या पास, यह तो यशवंत का सियासी भविष्य तय करेगा, लेकिन आज योगी फेक्टर उनके पक्ष में है.

सपा से डिम्पल और बसपा से जमाली हो सकतें हैं प्रत्याशी.

विरोध और भाजपा से निष्कासन के बाद भी बेटे विक्रांत को आजमगढ़-मऊ क्षेत्र से एमएलसी बनाने में सफल.

चन्द्रशेखर की दीक्षा और संस्कार राजनीतिक पूंजी, तो योगी के बेहद करीबी लोगो में हैं यशवंत.

डॉo अरविंद सिंह
आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव की दुंदुभि बज चुकी है आगामी 23 जून को मतदान और 26 को मतगणना की तिथि तय है. सपा प्रमुख और आजमगढ़ के सांसद रहे अखिलेश यादव के विधान सभा चुनाव 2022 में करहल सीट से उत्तर प्रदेश के विधानसभा में पहुंचने पर उन्होंने आजमगढ़ लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था, जिससे रिक्त हुई इस लोकसभा सीट पर उपचुनाव होना है. सपा, बसपा और भाजपा से आधिकारिक प्रत्याशियों की सूची अभी आनी बाकी है, लेकिन जो सत्ता के गलियारों और दलीय सूत्रों के हवाले से कयास लगाएं जा रहे हैं और जो ख़बरें आ रही हैं, उसके मुताबिक सपा से मुलायम परिवार का ही कोई प्रत्याशी आ सकता है, बहुत संभव हो, उनकी बहु और अखिलेश की पत्नी डिम्पल यादव को भी आजमगढ़ के चुनावी समर में उतारा जा सकता है. क्योंकि विधानसभा की दसों सीट पर सपा का कब्जा है. लेकिन विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में मुद्दे और प्राथमिकताओं में बहुत अंतर होता है.वहीं बसपा में पुनः वापसी कर चुके शाह आलम उर्फ़ गुड्डू जमाली ने घरवापसी से पहले ही उपचुनाव के लिए ताल ठोक दिया था, इसके पहले वे बसपा में रहते हुए मुबारकपुर सीट से लगातार विधायक रहे हैं, पार्टी ने उन्हें विधानमंडल दल का नेता भी बनाया था.


2022 के विधानसभा के चुनाव में उन्हें यह सीट गंवानी पड़ी. वे आजमगढ़ लोकसभा सीट पर पहले भी बसपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े और मुलायम सिंह यादव के लिए मुश्किलें खड़ी कर चुके हैं. बहुत संभव है इस उपचुनाव में बसपा उन्हें एकबार फिर अपना प्रत्याशी बना, चुनावी मैदान में उतार दे.वहीं देश और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा से अनेक नामों पर चर्चा चल रही है, लेकिन जिस नाम पर लोग ज्यादा गंभीर हैं, वह योगी के बेहद करीबी एमएलसी यशवंत सिंह हैं.18 वीं विधानसभा के चल रहे बजट सत्र में भी विधानसभा के भीतर योगी के बेहद करीबी लोगों में शामिल यशवंत की एक फोटो सोशल मीडिया में भी खुब वायरल हो रही है. जिसमें योगी और वित्तमंत्री के साथ यशवंत सिंह भी हैं. यह फोटो वित्त बजट पेश करने जाते समय की है.उच्च पदस्थ सूत्रों की माने तो योगी ने यशवंत सिंह को आजमगढ़ लोकसभा सीट से उपचुनाव में उतारने का मन बना लिया है. पार्टी का भी एक धड़ा ऐसा चाहता है, देखने वाली बात यह होगी की पार्टी की आम सहमति यशवंत सिंह को लेकर कब तक बन पाती है.

आखिर कौन हैं यशवंत सिंह और क्या है उनकी राजनीतिक जमीन…?

देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के दारुलशफा का बी- ब्लॉक का 37/38 कमरा यूँ तो उत्तर प्रदेश के राज्य सम्पत्ति विभाग की सम्पत्ति है. लेकिन इसकी पहचान पिछले कई दशक से दूसरी है- यहाँ जो जनप्रतिनिधि रहता है, उसे दशक भर पहले अपनी आंखों से देखा था- एक-एक कमरे में जाना और वहाँ क्षेत्र और देहात या दूसरे जिलों से भी अपने कार्य के लिए आयी जनता एवं आगंतुकों से यह पूछना-‘ कि वह भोजन की है या नहीं, सोने के लिए विस्तर मिला है की नहीं, उसे किस तरह की मदद की जरूरत है.’ और फिर यह जनसेवक उसकी मदद कर देता, बिना यह जाने की वह किस जाति, धर्म या क्षेत्र से ताल्लुक रखता है, वह उसका वोटर भी है या नहीं. तीन या चार सौ किमी दूर राजधानी में कोई आप से इस अपनेपन से यदि पूछता है और यह क्रम नियमित चलता है तो उसे आप किस नज़र से देखेंगे. आप की नज़र और नज़रिया चाहे जो हो, लेकिन यह साधारण से दिखने वाला असाधारण जनप्रतिनिधि कोई और नहीं हमारे समय के भाजपा से निष्कासित एमएलसी यशवंत सिंह हैं, जिसने भाजपा और सपा के दिग्गज प्रत्याशियों के बीच निर्दल अपने पुत्र विक्रांत सिंह रिशू को एमएलसी बना कर आजमगढ़- मऊ स्थानीय निर्वाचन क्षेत्र में बहुतों की राजनीतिक ताकत और चाणक्य बनने के सपनों को पानी फेर दिया.


दरअसल यह जीत केवल विक्रांत भर की नहीं है, यह उस सोच और सिद्धांत की भी जीत है, जिसे यशवंत ने अपने राजनीतिक गुरु चन्द्रशेखर से संस्कारों में पाया. वक्त़ चाहे जितना नाजुक हो, हालात चाहे जितना मुश्किल भरा हो, परिस्थितियों का डटकर, और निडर होकर सामना करना चाहिए. अपनी गैरत और अस्मत की कीमत पर सोने का ताज भी मिले तो उसे लात मार देना चाहिए.तमाम विरोधों और दल से निष्कासन के बाद भी मिली जीत और इस जीत का जश्न मनाने से पहले यशवंत को जानने की कोशिश भी करनी चाहिए, खासतौर पर आज की पीढ़ी को, जिसे सबकुछ तत्क्षण और तत्काल चाहिए. इंतज़ार और संघर्ष जिनके लिए गैरजरूरी चीज लगती है. जिस विक्रांत को आज सभी एमएलसी के रूप में जान रहे हैं. कोई पांच बरस पहले तक उनकी पहचान कुछ खास लोगों तक ही थी, मऊ जिले की सुल्तानपुरी क्षेत्र से जब उन्होंने महाप्रधानी के लिए पर्चा भरा तो यही यशवंत, जो उनके पिता भी हैं, पूरे चुनाव में प्रचार करना तो दूर आजमगढ़ और मऊ में पग तक नहीं रखा, मुख्यालय लखनऊ छोड़ा तक नहीं, कारण उन्होंने तय कर दिया था- अगर किसी को चुनावी प्रक्रिया और राजनीति में आना है तो उसे अपने हिस्से का संघर्ष स्वयं करना होगा, अपने पांव के छाले और दर्द को स्वयं महसूसना होगा. वह चाहे मेरा पुत्र ही क्यों न हो.. और उनके बेटे ने पूरे चुनाव में डगर-डगर पग -पग अपने क्षेत्र को मापा, लोगों से समर्थन और आशीर्वाद मांगा… और महाप्रधान बन गया.


बेटे की मेहनत देख.. यशवंत के अतीत के दिन बहुतों को याद आ जाते हैं- जब एक नौजवान इंजीनियर देश की सेवा के लिए चन्द्रशेखर जी के आह्वान पर राजनीति में आता है. मुबारकपुर विधानसभा को पैदल चल अपने पगों से माप देता है. एक चप्पल जो सुबह पहनते शाम तक टूट जाती, इतना पैदल चलते, चिरैयाकोट के विजई, जहानागंज के भानू (जो अब होमगार्ड में हैं) , स्कूटर पर बैठकर क्षेत्र में निकल जातें,लोगों से मिलते, शाम को दूर कहीं गांव देहात में बत्तियां जलती दिखाई देती या बाजा बजता सुनाई देता तो वहा पहुंच जाते और भानु लोगों के बीच परिचय कराते- ये यशवंत सिंह है, युवा हैं, राजनीति में आए हैं. लपसीपुर के रघुपति सिंह और समेंदा के सुभाष सिंह, ने यशवंत सिंह का आखिरी समय तक साथ दिया. और यशवंत ने अपने लोगों का भरपूर साथ और समर्थन ही नहीं किया बल्कि सामर्थ्यवान भी बनाया. सुभाष सिंह के न रहने पर अरविंद सिंह भले यशवंत सिंह के निकट पहुंच गयें लेकिन उनके जीवित रहते अरविंद सिंह ने भी सठियांव ब्लॉक से सुभाष को बड़े भाई सा मान दिया.


जब देश में आपातकाल लगा तो यशवंत इंदिरा गाँधी के तानाशाही के खिलाफ संघर्ष किया और एक लंबा समय जेल में बिताया. लोकतंत्र सेनानी यशवंत के जीवन में परिस्थितियां बस दलों का आगमन होता रहा लेकिन उनके दिल में सदा अपनों के लिए पीड़ा और चिंता रही. उनके मूल सिद्धांतों में कोई खास परिवर्तन नहीं दिखा. वे पहले भी विचारों से सोशलिस्ट थे और आज भी. धर्म से ऊपर मानवता को हमेशा से तरजीह दिया. एक बार जब वे समाजवादी पार्टी में थे, और उनके एम एल सी का कार्यकाल समाप्त हो रहा था. पार्टी के संसदीय दल की बैठक मुलायम सिंह के अध्यक्षता में हो रही थी. यशवंत सिंह की सीट पर प्रोफेसर रामगोपाल यादव किसी अपने को एम एल सी बनवाने की रणनीति पर थे. बैठक में शिवपाल यादव, रामगोपाल यादव, अखिलेश यादव और सभी प्रमुख नेतागण उपस्थित थे. यशवंत को यह ख़बर लगी.
उन्होंने राज भैया को फोन किया- कहां हैं..?


उत्तर मिला- रामायण ( राजा भैया की कोठी). पार्टी कार्यालय पहुंचिए. फिर क्या तमतमाये यशवंत, राजा भैया और गाडियों का काफिला सीधे विक्रमादित्य मार्ग पहुंचा. पहुंचते ही मुलायम सिंह यादव खड़े हो गयें और राजा भैया व यशवंत को बैठने के लिए बोले- राजा वह सूची मांगी जो आज इस बैठक में फायनल हो गयी थी. यशवंत सिंह के नाम के आगे रामगोपाल के रिश्तेदार का नाम था. राजा ने उसे क्रास करके उस स्थान पर फिर यशवंत सिंह लिख दिया और बोला- नेता जी से- किसी को कोई दिग्गत..? कोई और बोलता, मुलायम सिंह ने वक्त की नब़्ज पकड़ी और बोले– नहीं राजा भैया.. आप लोगो ने कहा हो गया. शायद यह नहीं होता तो उसी दिन समाजवादी पार्टी टूट जाती. यशवंत, राजा भैया, अरविंद सिंह गोप और सूबे क्षत्रिय समाज के बड़े राजनेता ओं ने तय कर लिया था. लेकिन धरती पुत्र मुलायम सिंह हवाओं का रूख पकड़ने में सदैव से माहिर रहे.


जीवन में सफलता भले न मिले लेकिन उसूलों से समझौता कभी नहीं किया. जिस भाजपा से उन्हें एमएलसी चुनाव में बागी होने का आरोप लगा कर दल से निकाला गया. दरअसल उस दल में योगी आदित्यनाथ के कारण आएं. उनकी ईमानदारी और राष्ट्रीय भावना को देखकर. यही कारण है कि उन्होंने योगी जी को सीएम के पहले कार्यकाल के लिए अपनी एमएलसी सीट छोड़ दिया. यह अलग बात है कि योगी आदित्यनाथ और भाजपा ने उन्हें फिर से एमएलसी बना दिया.जिस विक्रांत सिंह की जीत के लिए रणनीति बनी थी और वह एमएलसी बन गयें, उस विक्रांत के विवाहोत्सव में स्वयं योगी आदित्यनाथ गोरखपुर पहुंचकर आशीर्वाद दिए थे.


दारूलशफा का चन्द्रशेखर चबूतरा आज भी अपने नेता चन्द्रशेखर की याद में उन्हीं सिद्धांतों के साथ हर आगंतुक की सेवा करने के लिए तत्पर रहता है. जिसके संचालक और संवाहक यशवंत सरीखे शिष्य हैं. भाजपा यशवंत सिंह और विक्रांत सिंह का उपयोग किस रूप में करती है यह तो वक़्त बताएगा लेकिन योगी आदित्यनाथ से संबंधों की तासीर किसी से छिपी नहीं है…और उसी कड़ी में इस उपचुनाव में आजमगढ़ लोकसभा सीट पर उन्हें प्रत्याशी बनाया जा सकता है.यशवंत सिंह की भी आखिरी सियासी हसरत देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचने की है. जिसे वे अपनों के बीच कई बार साझा कर चुके हैं. अब यशवंत के लिए दिल्ली दूर है या पास यह तो वक्त बताएगा, लेकिन दिल्ली पहुंचने की पहली बांधा टिकट पाने की है, जिसे सूत्रों के मुताबिक उन्होंने लगभग पार कर लिया है..