जमीनी हकीकत पर नजर रख उचित फैसला लें-न्यायमूर्ति

71
7 वर्ष की आयु तक मां बच्चे कस्टडी की हकदार-इलाहाबाद हाईकोर्ट
7 वर्ष की आयु तक मां बच्चे कस्टडी की हकदार-इलाहाबाद हाईकोर्ट

न्यायिक अधिकारियों को सतर्क रहना चाहिए, वे जमीनी हकीकत पर नजर रखें और उचित फैसला लें – न्यायमूर्ति

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि महिलाओं को कानूनी संरक्षण प्राप्त है. वह पुरुषों को आसानी से फंसाने में कामयाब हो जाती हैं. कोर्ट ने कहा कि अदालतों में बड़ी संख्या में इस तरह के मामले आ रहे हैं, जिनमें लड़कियां या महिलाएं आरोपी के साथ लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाती हैं, इसके बाद झूठे आरोप लगाकर प्राथमिकी दर्ज कराकर अनुचित लाभ उठाती हैं.कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में न्यायिक अधिकारियों को सतर्क रहना चाहिए. वे जमीनी हकीकत पर नजर रखें और उचित फैसला लें. यह टिप्पणी न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने वाराणसी के ओम नारायण पांडेय की जमानत अर्जी पर दी है. कोर्ट ने कहा कि समय आ गया है कि अदालतें ऐसे जमानत आवदेनों पर विचार करते समय बहुत सतर्क रहें. कानून पुरुषों के प्रति बहुत पक्षपाती है. प्राथमिकी में कोई भी बेबुनियाद आरोप लगाना और किसी को भी ऐसे आरोपों में फंसाना बहुत आसान है. जमीनी हकीकत पर नजर रख उचित फैसला लें-न्यायमूर्ति

कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया, फिल्मों, टीवी शो आदि के माध्यम से खुलेपन का फैशन या चलन फैल रहा है. इसका अनुकरण किशोर लड़के और लड़कियां कर रहे हैं. भारतीय सामाजिक और पारंपरिक मानदंडों के विपरीत और लड़की के परिवार और लड़की के सम्मान की रक्षा के नाम पर दुर्भावनापूर्ण रूप से झूठी एफआईआर दर्ज की जा रही हैं. कुछ समय या लंबे समय तक लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद लड़के और लड़की के बीच किसी मुद्दे पर विवाद हो जाता है. पार्टनर का स्वभाव समय के साथ दूसरे पार्टनर के सामने उजागर होता है और जब उन्हें एहसास होता है कि उनका रिश्ता जीवनभर नहीं चल सकता तो परेशानी शुरू हो जाती है.

कोर्ट ने कहा कि किशोरों में जागरूकता का स्तर बढ़ाने में सोशल मीडिया, फिल्मों आदि का असर और नुकसान अपेक्षाकृत कम उम्र में मासूमियत स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है. पारंपरिक धारणा ने मासूमियत के असामयिक नुकसान को जन्म दिया है, जिसके परिणाम स्वरूप किशोरों का अप्रत्याशित विचलित करने वाला व्यवहार सामने आया है. इस पर कानून ने पहले कभी विचार नहीं किया था.कोर्ट ने कहा कि कानून एक गतिशील अवधारणा है और ऐसे मामलों पर बहुत गंभीरता से पुनर्विचार करने की आवश्यकता है. याची के खिलाफ वाराणसी के सारनाथ थाने में यौन उत्पीड़न सहित पॉक्सो के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई गई है. आरोप है कि उसने नाबालिग के साथ शादी का वादा कर यौन संबंध बनाए.

याची के अधिवक्ता ने कहा कि दोनों ने अपनी मर्जी से संबंध बनाए थे. कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में झूठी एफआईआर दर्ज कराया जाना प्रतीत होता है, क्योंकि पीड़िता द्वारा मजिस्ट्रेट के सामने दिया गया बयान प्राथमिकी के आरोपों का पूरी तरह से समर्थन नहीं करता है.कोर्ट ने कहा कि आजकल प्राथमिकी दर्ज करने के लिए अदालतों में विशेषज्ञों या पुलिस थानों के मुंशी द्वारा तैयार लिखित आवेदन देना अनिवार्य है, जो कि हमेशा जोखिम भरा होता है. झूठे निहितार्थ का खतरा जैसा कि वर्तमान मामले में है. वे आरोपों को इस तरह से शामिल करते हैं, ताकि आरोपी को आसानी से और जल्दी जमानत भी न मिल सके. कोर्ट ने कहा कि अगर थाना प्रभारियों द्वारा लिखित रूप में रिपोर्ट दर्ज की जाए और विशेषज्ञ की भूमिका को बाहर रखा जाता है तो झूठे मामलों में कमी आएगी. जमीनी हकीकत पर नजर रख उचित फैसला लें-न्यायमूर्ति