लता मंगेशकरः न भूतो,न भविष्यति..!

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श्याम कुमार

ता मंगेशकरः न भूतो, न भविष्यति! मेरी किशोरावस्था थी। मेरी मां फिल्मों की शौकीन थीं और मेरा भी फिल्मों की ओर आकर्षण था। मेरे यहां ग्रामोफोन था तथा ‘अछूत कन्या’, ‘अमृत मंथन’, ‘झूला’, ‘बंधन’, ‘किस्मत’, ‘कंगन’, ‘नया संसार’ आदि तमाम फिल्मों के रिकाॅर्ड भरे पड़े थे। फिल्मी गायिकाओं में मुमताज शांति, अमीरबाई कर्नाटकी, जोहराबाई अम्बालेवाली, नूरजहां, शमशाद बेगम आदि गायिकाओं का वर्चस्व समाप्ति की ओर था तथा सुरैया का गजब का जादू छा गया था। सुरैया नायिका और गायिका, दोनों थीं। फिल्मी नायिकाओं में सुरैया-जैसी जादुई लोकप्रियता सिर्फ वैजयंती माला को नसीब हुई। सुरैया की मादक आवाज के बीच एक कोयल-जैसी मधुर आवाज तेजी से अपनी जगह बना रही थी। एक दिन मेरे एक ममेरे भाई प्रयागराज में मेरे यहां आए हुए थे। फिल्मों में उनकी काफी पैठ थी। मैंने उनसे पूछा था कि सुरैया और लता मंगेशकर में कौन बेहतर गायिका है? वह कुछ क्षण चुप रहे, फिर बोले थे-‘बेशक लता मंगेशकर। यह मीठी आवाज न जाने किस बुलंदी पर पहुंचेगी!’ ‘बड़ी बहन’ में नायिका सुरैया मुख्य गायिका थीं और लता मंगेशकर द्वितीय। उसमें लता ने ‘चुप चुप खड़े हो जरूर कोई बात है’ गाया था, जो बहुत लोकप्रिय हुआ था। बाद में सुरैया ने फिल्मों में काम करना बंद कर दिया, जिसके साथ उनके गाने भी चले गए। फिल्मी गायन में अब तीन गायिकाओं का बोलबाला रहा-लता मंगेशकर, गीता राॅय(गीता दत्त) और आशा भोसले। लेकिन शीघ्र ही लता मंगेशकर का फिल्म-जगत में एकछत्र राज स्थापित हो गया। फिर तो हर ओर लता!, लता!!, सिर्फ लता!!! सुबह से लेकर रात तक कानों में लता मंगेशकर ही लता मंगेशकर! लता ने इतने तरह के गाने गाए कि हर अवसर पर उनके गानों की अपनेआप मौजूदगी हो जाती थी। लता मंगेशकर के कंठ में साक्षात सरस्वती का वास था।

पिता दीनानाथ मंगेशकर से उन्हें शास्त्रीय गायन की जो बहुमूल्य विरासत मिली, उसने उनके कंठ की नैसर्गिक मिठास में सोने में सुहागा का काम किया। शास्त्रीय संगीत पर लता का इतना जबरदस्त अधिकार था कि वह यदि शुद्ध शास्त्रीय गायन की विधा में उतरतीं तो वहां भी छा जातीं। लेकिन फिल्मी गायकी के नसीब में लता मंगेशकर का आशीर्वाद बदा था, जो उसे ऐसा मिला कि उसके फलस्वरूप फिल्मी गायकी शास्त्रीय गायकी के समानांतर शिखर पर जाकर प्रतिष्ठित हो गई। फिल्मी गायन को भरपूर सम्मान एवं प्रतिष्ठा दिलाने का एकमात्र श्रेय लता मंगेशकर को है। जब अटल सरकार ने लता मंगेशकर को ‘भारत रत्न’ का सर्वाेच्च राष्ट्रीय सम्मान प्रदान किया था तो देश ने एक स्वर से कहा था कि आज ‘भारत रत्न’ का सम्मान लता जी का सान्निध्य पाकर धन्य हो गया। लता ने फिल्मों में हर प्रकार के गाने गाए। फिल्मी संगीतकार उनसे ही हर गाना गवाना चाहते थे। यही कारण है कि देवानंद की फिल्म ‘टैक्सी ड्राइवर’ में संगीतकार सचिन देव वर्मन ने लता से कैबरे गीत ‘दिल से मिलाके दिल प्यार कीजिए, कोई सुहाना इकरार कीजिए’ गवाया था, जो बहुत लोकप्रिय हुआ था। शीला रमानी ने वह कैबरे नृत्य किया था, लेकिन तब कैबरे नृत्य अश्लील नहीं होते थे। लता मंगेशकर अश्लील गाने हरगिज नहीं गाती थीं और साफ मना कर देती थीं। इस संदर्भ में एक दिलचस्प वाकया है।

राज कपूर की फिल्म ‘संगम’ में एक गाना था, ‘मैं का करूं राम मुझे बुड्ढा मिल गया’, जिसे शंकर जयकिशन ने संगीतबद्ध किया था। लता मंगेशकर ने एक बार टीवी साक्षात्कार में बताया था कि जब उनसे यह गाना गाने को कहा गया तो उन्होंने अश्लील कहकर गाने से मना कर दिया था। तब उन्हें बहुत समझाया गया कि गाने में अश्लीलता नहीं है तथा इस गाने पर वैजयंती माला नृत्य करेंगी। बहुत मनुहार पर लता ने वह गाना गाया और उस गाने ने लोकप्रियता का कीर्तिमान बनाया। वैजयंती माला ने एक छोटे स्टूल पर खड़े होकर उस गाने पर जो नृत्य किया था, वह भी चमत्कारपूर्ण था। लता मंगेशकर के गानों के साथ मेरे तमाम संस्मरण जुड़े हुए हैं। उनके बहुत विशाल मंचीय कार्यक्रम मैंने देखे थे, लेकिन एक बार मिलने का सौभाग्य भी मिला। तब मैं मुम्बई अकसर जाया करता था और फिल्म-जगत के तमाम लोगों से मेरी घनिष्ठता थी। लता जी से मिलने की बहुत इच्छा थी, इसलिए एक बार मैं पैडर रोड पर स्थित उनके आवास पर गया था। उनसे मिलने पर मैंने उनके चरणस्पर्श किए थे। मैंने उनसे कहा था-‘आपके कंठ में जादू है, जिसने देश को सम्मोहित कर रखा है, इसलिए आप तो जादूगर हैं।’ इस पर वह खिलखिला पड़ी थीं। उस समय मैंने उनका साक्षात्कार लिया था। लता मंगेशकर के कंठ में सरस्वती का ऐसा वास था कि वह स्वयं श्वेतवस्त्रधारिणी साक्षात सरस्वतीस्वरूपा हो गई थीं। सुविख्यात गीत ‘ए मेरे वतन के लोगो’ लता ने नई दिल्ली में जिस आयोजन में गाया था, उसमें प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू मौजूद थे, जो अगली पंक्ति में बैठे थे और उनके ठीक पीछे मैं बैठा हुआ था।

मैं जब देहरादून में पढ़ता था तो मित्रों के साथ अकसर पैदल मसूरी चला जाता था। एक बार हम मित्रगण मसूरी में बाजार से गुजर रहे थे, तभी एक रेस्तरां में लता का यह गीत बजता सुनाई दिया-‘यूं हसरतों के दाग मुहब्बत में धो लिए, खुद दिल से दिल की बात कही और रो लिए’। हम सभी मित्र वह गाना सुनने के लिए दौड़कर उस रेस्तरां में घुस गए थे। एक बार मैं कुछ कलाकारों के साथ अपने ‘सप्तरंग ऑरकेस्ट्रा’ के एक कार्यक्रम की रूपरेखा पर विचार कर रहा था, तभी दूर से लता का ‘राम तेरी गंगा मैली’ का यह गाना कानों में पड़ा-‘सुन साहिबा सुन, प्यार की धुन’। हम लोग अपनी चर्चा भूलकर उस गाने में डूब उठे थे। एक वरिष्ठ कलाकार ने टिप्पणी की थी कि इस उम्र में भी लता जी के कंठ में गजब का जादू है। मैं अपने ‘सप्तरंग ऑरकेस्ट्रा’ के कार्यक्रमों में स्वाति बनर्जी से लता के ये दो गाने अवश्य गवाया करता था-‘रजिया सुलताना’ फिल्म का ‘ऐ दिले- नादां’ तथा ‘हंसते जख्म’ फिल्म का ‘आज सोचा तो आंसू भर आए,मुद्दतें हो गईं मुसकुराए ’। लता मंगेशकर की एक विशेषता थी कि वह जो गाना गाती थीं, उसे जीवंत कर देती थीं। लता ने एक बार कहा था कि गाने की आवाज दिल की गहरी परतों(गहराइयों) से आनी चाहिए। जब लता ने उषा खन्ना के संगीत- निर्देशन में ‘शायद मेरी शादी का खयाल दिल में आया है, इसीलिए मम्मी ने मेरी तुम्हें चाय पे बुलाया है’ गाना गाया था तो लोगों ने चमत्कृत होकर प्रतिक्रिया व्यक्त की थी कि लता ने ‘चाय पे बुलाया है’ टुकड़ा इस तरह गाया है कि लगता है, जैसे कोई सोलह साल की लड़की गा रही है। लता के गाने सुनते हुए हमारी कई पीढ़ियां बड़ी हुईं और विदा हो गईं। लता मंगेशकर देशवासियों के रक्त में समा गई थीं और देश का डीएनए हो गई थीं। वह इस देश की सबसे बड़ी पहचान बन गई थीं। वह ईश्वर की अद्भुत देन थीं और विश्व की सबसे कीमती धरोहर थीं। उनके-जैसी महान गायिका इस धरती पर न हुई और न कभी होगी। न भूतो, न भविष्यति!