करूणा की मूर्ति भगवान बुद्ध

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करूणा की मूर्ति भगवान बुद्ध
करूणा की मूर्ति भगवान बुद्ध

प्रेम दया व करूणा की मूर्ति भगवान बुद्ध। नास्तिक नहीं थे भगवान बुद्ध। मुसलमानों के आक्रमणों के कारण भारत में बौद्ध धर्म का पतन हुआ। इस्लाम ने बौद्ध धर्म को केवल भारत में ही नष्ट नहीं किया बल्कि वह जहां भी गया वहीं उसने बौद्ध धर्म को मिटाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।

बृजनन्दन राजू

मुसलमानों के आक्रमणों के कारण भारत में बौद्ध धर्म का पतन हुआ। इस्लाम ने बौद्ध धर्म को केवल भारत में ही नष्ट नहीं किया बल्कि वह जहां भी गया वहीं उसने बौद्ध धर्म को मिटाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। क्योंकि इस्लाम धर्म के अस्तित्व में आने से पहले अफगानिस्तान,गांधार,चीन तथा तुर्किस्तान का धर्म बौद्ध था। यही नहीं इस्लाम के उदय के समय बौद्ध धर्म इराक,ईरान, कजाकिस्तान, उजबेकिस्तान, किरगिस्तान, थाइलैंड, लाओस, कम्बोडिया, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, मंचूरिया, साइबेरिया और रूस में अपनी जड़ें जमा चुका था और एक प्रकार से यह धर्म समूचे एशिया में फैला था। इन सब देशों में इस्लाम ने बौद्ध धर्म को नष्ट किया। इस्लामी आक्रान्ताओं ने जब भारत पर आक्रमण किया तो वह मूर्ति पूजक हिन्दू और भगवान बुद्ध को मानने वाले बौद्धों को एक ही दृष्टि से देखते थे। उस समय भारत में बौद्धों का प्रभाव सर्वाधिक था। इसलिए सर्वाधिक नुकसान उन्हें ही झेलना पड़ा। डॉ.भीमराव अम्बेडकर ने लिखा है कि मुस्लिम आक्रान्ताओं ने सारे देश में स्थित बौद्ध मठों को नष्ट किया और बड़ी संख्या में बौद्ध भिक्षुओं को मौत के घाट उतारा।करूणा की मूर्ति भगवान बुद्ध

बाबा साहब डा.भीमराव अम्बेडकर संपूर्ण वांगमय में बौद्ध धर्म की अवनति तथा पतन के बारे में विस्तार से वर्णन है। इस बारे में डा.अम्बेडकर लिखते हैं भारत में बौद्ध धर्म का पतन मुसलमानों के आक्रमणों के कारण हुआ था। मुसलमानों के लिए मूर्तिपूजा तथा बौद्ध धर्म एक जैसे ही थे। इस प्रकार मूर्ति भंजन करने का लक्ष्य बौद्ध धर्म को नष्ट करने का लक्ष्य बन गया। वह लिखते हैं भारत के कई प्रान्तों से बौद्ध धर्म के लुप्त होने के लिए मुसलमान ही जिम्मेदार हैं। अम्बेडकर वांडमय में वर्णित डा.अम्बेडकर के लेख के मुताबिक बौद्ध पुजारियों का मुसलमान आक्रमणकारियों द्वारा संहार किया गया। धर्म उपदेशक की हत्या कर इस्लाम ने बौद्ध धर्म की ही हत्या कर दी। यह घोर संकट था जो भारत में बौद्ध धर्म के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ। पुजारियों के बिना धर्म लुप्त हो जाता है। इस्लाम की तलवार ने पुजारियों पर भारी आघात किया। करूणा की मूर्ति भगवान बुद्ध

बाबा साहब लिखते हैं मुसलमान आक्रमणकारियों ने नालंदा,विक्रमशिला को नष्ट किया। सारे देश में स्थित बौद्ध मठों को नष्ट किया। मुसलमान सेनापतियों ने बड़ी संख्या में बौद्ध भिक्षुओं को मौत के घाट उतारा। इस्लामी आक्रमणों की मार बौद्ध धर्म नहीं झेल सका। इसका खामियाजा सम्पूर्ण राष्ट्र को उठाना पड़ा। क्योंकि मूर्तिपूजक हिन्दू राजा जहां इस्लामी आक्रान्ताओं का डटकर मुकाबला करते थे वहीं बौद्ध धर्म को मानने वाले राजा और उनके अनुयायी उनके खिलाफ खड़े नहीं हुए। इस्लामी बर्बरता के आगे सनातन धर्म को मानने वाले मूर्तिपूजक हिन्दू खड़े हुए वह टूटे लेकिन हार नहीं मानी लड़ते रहे इसलिए हम जीते। जिस इस्लाम की आंधी ने पूरी दुनिया को रौंदा उस इस्लाम की आंधी को रोकने का काम भारत में हुआ। उस समय यदि बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग संगठित होकर इस्लामी आक्रमणों को प्रतिकार करते तो शायद परिदृश्य कुछ और होता।करूणा की मूर्ति भगवान बुद्ध

देश पर मुगलों का आधिपत्य होने के बाद बौद्ध भिक्षुओं ने नेपाल व तिब्बत में शरण ले ली। बड़ी संख्या में उनके अनुयायियों ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। वहीं जो हिन्दुओं में मूर्तिपूजक वर्ग था वह लड़ता रहा और अपनी पुरानी मान्यताओं पर कायम रहा। पुरोहित और पुजारी वर्ग ने समाज में धार्मिक क्रियाकलापों के माध्यम से समाज में चेतना जगाते रहे। वहीं बौद्ध धर्म का इस प्रकार धार्मिक प्रचार का कार्य ठप सा गया। इसलिए भारत में बौद्ध का पतन होना शुरू हुआ। यही कारण है कि विश्व के अन्य देशों में आज भी बौद्ध धर्म का प्रभाव है लेकिन भारत में इसका प्रभाव कम हुआ। अम्बेडकर लिखते हैं भारत में बौद्ध धर्म का असतित्व समाप्त ही नहीं हुआ है बल्कि बुद्ध का नाम भी अधिकांश हिन्दुओं के दिमाग से निकल गया है।

करूणा की मूर्ति भगवान बुद्ध

ढ़ाई हजार वर्ष पूर्व महाराज शुद्धोधन के पुत्र के रूप में वैशाख पूर्णिमा के दिन लुंबनी में जिस बालक सिद्धार्थ का जन्म होता है। वही बालक आगे चलकर गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध होता है। सिद्धार्थ को वेद और उपनिषद् की शिक्षा दी जाती है। बालक राजसी सुख सुविधाओं के बीच धीरे—धीरे बड़ा होता है। कपिलवस्तु के राजकुमार होने के नाते राजकाज और युद्ध-कौशल की भी शिक्षा ग्रहण करते हैं। कुश्ती, घुड़दौड़ और रथ हांकने में उनकी कोई बराबरी नहीं कर पाता। कुश्ती और तीरंदाजी में भी वह निपुण थे। लेकिन राजसी सुख वैभव व ऐश्वर्य में बालक सिद्धार्थ का मन नहीं लगता। एक राजकुमार होने का मन में तनिक दंभ भी वह नहीं रखते। एक प्रकार से उनका विरक्त भाव देखकर जल्दी से उनका विवाह कर दिया जाता है। उनको एक पुत्र रत्न की प्राप्ति भी होती है। करूणा की मूर्ति भगवान बुद्ध

एक दिन महल से बाहर रथ पर जाते हुए उन्हें एक शव यात्रा का दृश्य दिखाई पड़ता है। वह सारथी सौम्य से पूछते हैं। लोग रो क्यों रहे हैं। सारथी बताता है कि एक व्यक्ति की मृत्यु हो गयी है। इसलिए रो रहे हैं। वह प्रश्न करते हैं व्यक्ति क्यों मरता है। इसके बाद क्या होता है। उनके मन में जिज्ञासा उत्पन्न् होती है। उस जिज्ञासा की पिपाशा में राज दरबार के अन्य लोगों से पूछते हैं। उनके प्रश्न का कोई यथोचित उत्तर नहीं दे पाता। उनका मन उचट जाता है। एक दिन रात्रि के अंधेरे में वह अपने एकमात्र नवजात शिशु राहुल, धर्मपत्नी यशोधरा और राजपाठ का मोह त्यागकर ज्ञान की खोज में घर से निकल पड़ते हैं। बोध गया में पीपल के वृक्ष के नीचे कठिन तपस्या प्रारम्भ करते है। वहीं पर उन्हें उन्हें ज्ञान की प्राप्ति होती है। अब वह बुद्ध कहलाने लगे बाद में वह जगत में गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए।

बोध गया में जिस वृक्ष के नीचे उन्हें बोध प्राप्त हुआ था वह बोधि वृक्ष कहलाया। 45 वर्ष तक निरन्तर घूम—घूमकर उन्होंने बौद्धमत का प्रचार किया। उन्होंने कहा कि संसार दुखमय है और इस दुख का कारण मनुष्य की तृष्णा है। तृष्णा को त्यागकर दुख से मुक्त हुआ जा सकता है। सत्य अहिंसा परोपकार उनके आदर्श थे। पशु पक्षियों और सम्पूर्ण चराचर जगत में ईश्वरी अंश है। जीवों पर दया करो। दूसरों की मद्द करो और अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ो यह उनकी शिक्षा थी। भगवान बुद्ध ने ‘बहुजन हिताय’ लोककल्याण के लिए अपने धर्म का देश-विदेश में प्रचार करने के लिए भिक्षुओं को भेजा। अखण्ड भारत के प्रतापी सम्राट अशोक ने उनकी शिक्षाओं से प्रभावित होकर बौद्ध मत स्वीकार किया और देश विदेश में बौद्धमत का प्रचार किया।

सिद्धार्थ के मन में बचपन से ही अदभुत करुणा थी। उनसे किसी भी प्राणी का दुख नहीं देखा जाता था। भगवान बुद्ध नास्तिक नहीं थे। उन्होंने सनातन हिन्दू धर्म में प्रचलित अग्निहोत्र,गायत्री मन्त्र तथा योग का प्रचार किया। विश्व में दया करूणा और मैत्री का संदेश देेने वाले गौतम बुद्ध ने उस समय समाज में प्रचलित परम्पराओं मान्यताओं रूढ़ियों, पाखण्ड और कर्मकाण्ड का विरोध किया। लेकिन राष्ट्र के मौलिक तत्व को पकड़कर रखा। इस देश का मौलिक तत्व प्रेम दया करूणा श्रद्धा निष्ठा आत्मीयता और एकात्मबोध है। इन मौलिक तत्वों को अपनाकर बुद्ध सनातन धर्म को एक दिशा देने का काम करते हैं। प्रेम श्रद्धा करूणा और ममता से वह लोगों का दिल जीतते हैं संघर्ष से नहीं। किसी को वह अपना शत्रु नहीं मानते। प्रेम दया और करूणा से वह पूरे संसार को जीतते हैं। उनका सम्पूर्ण जीवन लोकनिष्ठ था। बुद्ध ने कहा था कि मुझे भीड़ नहीं काम करने वाले लोग चाहिए। वर्तमान परिस्थितियों में बुद्ध का मार्ग विश्व के लिए अनुकरणीय है। भगवान बुद्ध के दिखाए मार्ग के आधार पर ही दुनिया में शांति स्थापित की जा सकती है।करूणा की मूर्ति भगवान बुद्ध