गुणवत्ता की हत्या है Lateral Entry

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गौतम राणे सागर

भारतवर्ष का लम्बा इतिहास है जब गुणवत्ता की बेरहमी से हत्या कर नाकाबिल को स्थापित करने की फ़ितरत हुई है। स्वस्थ प्रतियोगिता आर्यों को न कभी पसंद थी और न ही होगी। हाँ यह भी सच है कि विषमता के बीज़ आरोपण में विप्र कुटिलता हमेशा सक्रिय रही है। प्रत्येक युग,सदी, कालखंड में छल का स्वरूप बदलता रहा है,परन्तु खलनायक एक ही रहा। उसे अपने ज्ञानी होने का दर्प रहा है परन्तु दर्पण के समक्ष खड़े होने का साहस कभी नही दिखा पाया। दर्पण से अभिनय के प्रत्येक विधा को प्याज़ के छिलके की तरह पर्त दर पर्त उधड़ने का ख़तरा रहता है। यह दर्पण के सामने प्रस्तुत होने से हमेशा भयभीत रहे हैं। आईना कहीं इनके असली चेहरों का अस्ग़र( लघुता) न प्रतिबिम्बित कर दे इसलिए आईना रूपी अवरोधक को यह या तो चकनाचूर करने या फिर अपने मेक अप के कालिख की मोटी तह को उधेड़कर आईने पर पोतने का इन्होंने कुचक्र किया है। 

     जिस युग को हमेशा आदर्श के रूप में परोसा गया है क्या वह वाकई ऐसा ही था या उस पर भी मुलम्मा चढ़ा कर कल्पित कहानी को यथार्थ में परोसने का निरंतर कुचक्र चल रहा है? राम-राज को हमेशा आदर्श राज के रूप में महिमामंडित करने का प्रयास किया गया है। राम के सम्पूर्ण कार्यकाल का विश्लेषण करने से समय और चित्त की बर्बादी से अंन्यत्र कुछ हासिल नही होता है। एक अहम् पहलू उस कार्यकाल का प्रस्तुत किया जाता है;शम्बूक- वध। इस घटना की सुरागरसी होनी चाहिये, छिद्रान्वेषण से गुरेज का संकोच नही करना चाहिए। ज्ञान हमेशा चर्चा, तर्क, आलोचनात्मक अध्ययन, गुणात्मक विश्लेषण और रचनात्मक नुक्ताचीनी से विवेक के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। घटना उद्धृत करना आवश्यक है:-राम एक बार एक जंगल से गुज़र रहे थे। वहां से ज्ञान के दीक्षा की भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी। राम बरबस ही उस सुगंध की दिशा में खिचे चले गए। पास पहुँच कर देखा तो यह एक पाठशाला थी। शम्बूक की देख-रेख में विद्यालय ज्ञान के एक महत्वपूर्ण केन्द्र बिन्दु के रूप में विख्यात होता जा रहा था। 

         राम ने आगे बढ़कर शम्बूक का अभिवादन करते हुए अपना परिचय दिया:मैं राम हूँ अयोध्या का राजा और दशरथ का पुत्र। मैं शम्बूक हूँ इस पाठशाला का गुरू। राम ने आगे कहा- आपका सानिध्य अति शीतल है आनन्दित करता है। आपके मुख से शास्त्रों का उच्चारण भाव-विह्वल करता है। पास खड़े वशिष्ठ को ज्ञान नही अपितु शम्बूक के वर्ण की तलाश थी, तपाक से कलुषित मन रूपी ढेलवास में वर्ण रूपी पत्थर डालकर शम्बूक की तरफ़ निशाना साध फेंका । तुम्हारा वर्ण क्या है? मैं शूद्र हूँ। अब घायल नागिन की भांति फुंफकारता वशिष्ठ शम्बूक पर हमले को तैयार था। डंस लेना चाहता था। वशिष्ठ राम को उत्तेजित करने में तल्लीन, बोला राजन; यह शूद्र होकर शास्त्रों का उच्चारण कर रहा है ,तभी विप्र पुत्र की जवानी में मौत हो गई। शम्बूक; वशिष्ठ क्या तुझे इतना भी ज्ञान नही कि यदि किसी राज्य में अकाल मृत्यु होती है, “वहां का राजा अक्षम, अधम,अधार्मिक,अज्ञानी व राज्य के लोगों के अधिकारों के  प्रति विमुख और व्यवसायिक कार्यो में उन्मुख होता है तभी इस तरह की घटनाएं होती हैं।” यह भी संभव है कि जिनके ऊपर धार्मिक संस्कारों की जिम्मेदारी है वह निकम्मे और कर्तव्यहीन हो।

         शिकोया वृक्ष के तने सादृश्य वशिष्ठ पागल कुत्ते की भांति कृश काया शम्बूक पर हमला करने की मुद्रा में; शम्बूक तुम जानते नही यह महाप्रतापी,अजेय, मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं। 

शम्बूक: छिपकर छल से बाली की हत्या करने वाला अजेय,महाप्रतापी ऐसे चुटकुले मत सुनाओ वशिष्ठ, हंसते-हंसते पेट दुखता है।

 वशिष्ठ: शम्बूक छोटे भाई की पत्नी बेटी समान होती है, बाली ने सुग्रीव की पत्नी को छीन लिया था। 

शम्बूक: वशिष्ठ तुम्हारा शरीर ही नही दिमाग़ भी मोटा है।बड़े भाई की पत्नी क्या होती है? 

वशिष्ठ: माँ समान। 

शम्बूक: क्या माँ को बेटे के रनिवास में ढ़केल कर संभोग के लिए मजबूर करना मर्यादा है?

इतना सुनते ही राम के नेत्र अग्नि बरसाने लगे और म्यान से तलवार निकाल कृश शम्बूक को ढेर कर दिया। प्रतियोगिता से बचने के लिए बेहतरीन को मार्ग से हटाने का नाम है; राम राज। अपराध के चरमोत्कर्ष के राज़ का नामकरण है सतयुग।

    द्वापर की समीक्षा भी समीचीन होगा। नाम एकलव्य, महान धनुर्धर। वहां वशिष्ठ और यहाँ द्रोणाचार्य। अपने लिए गुरू का सम्बोधन इन्हें ख़ूब रास आता है। जिक्र है कि एक बार द्रोणाचार्य ने पांडवों और कौरवों से कहा कि एक भागते हुए कुत्ते का मुँह बाणों से भर देना है। दोनों दल विस्मित। समझ न आये आखिर कैसे भागते हुए कुत्ते का मुँह बाणों से भरा जाय! एकलव्य ने द्रोणाचार्य की चुनौती स्वीकार कर कुत्ते का मुँह बाणों से भर दिया। अब बारी थी द्रोणाचार्य के अचंभित होने की! पूछा यह विद्या कहाँ से सीखी? एकलव्य अपने प्रैक्टिस करने के स्थान तक द्रोणाचार्य को ले गया और उस मूर्ति को दिखाया जिसे वह गुरु मान कर धनुर्धर विद्या सीखी थी। द्रोणाचार्य ने कहा यह तो मैं हूँ। तुम अपना परिचय बताओ। जैसे ही ज्ञात हुआ कि यह बालक शूद्र है भविष्य मे आर्य पुत्रों के लिए मुसीबत खड़ी कर देगा। छल अपने अस्तित्व में प्रकट हुआ। द्रोणाचार्य के अंदर बैठा शैतान फुदक बाहर आ गया। 

      द्रोणाचार्य: तुम जानते हो शिष्य को गुरू दक्षिणा देनी पड़ती है अन्यथा ज्ञान काम ही नही करेगा। 

एकलव्य: आदेश करें दक्षिणा में क्या चाहिए?

द्रोणाचार्य; तुम्हारे दाहिने हाथ का अंगूठा हमें दक्षिणा चाहिए। 

एकलव्य: खचाक:दाहिने का अंगूठा समर्पित। 

  ऐसा कमीना गुरू दुनिया के इतिहास ने नही देखा होगा। उस मदहोश को यह ज्ञान होना चाहिए था कि दाहिने हाथ का अंगूठा दक्षिणा स्वरूप लेने से गुरु धर्म का सत्यानाश हो जाएगा। जिसके लिए दक्षिणा की मांग की है जब उस ज्ञान के प्रदर्शन की संभावना खत्म हो रही है तब दक्षिणा किस बात की? वास्तविकता यह है कि चोर ने लम्पट को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर घोषित करने के लिए एक गुणवान और अद्वितीय के अंग-भंग करने का उपक्रम प्रतियोगिता से बेहतरीन को छंटनी करने का प्रपंच है। 

     UPSC के पिछले एक पंचवर्षीय कार्यकाल के दरम्यान शूद्रों ने अनारक्षित श्रेणी में अधिक संख्या में परीक्षा उत्तीर्ण किया है। सत्र 2015-16 में पिछड़ों के 314 चयनित अभ्यर्थियों को DOPT की सूची से इनके नाम हटा दिये गये। कारण बेहूदगी का कुतर्क। इनके माँ बाप की आय ₹6 लाख से अधिक है इसलिए यह क्रीमी लेयर की श्रेणी में आते हैं। यह घटना सिर्फ 2015-16 का ही नही है अनवरत् चल रहा है। 

            जबकि सवर्णों के लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण की प्रक्रिया में यह माना गया है कि इनके माँ बाप की आय यदि ₹ 8लाख है तब यह आर्थिक रूप से कमजोर हैं और आरक्षण के दायरे में आते हैं। सम्प्रति यह प्रावधान संविधान के प्रतिकूल हैं। इस कृत्य को शैतानों का तांडव नही तो और क्या कहेंगे ? यदि SC/ST,OBC अभ्यर्थियों  के  माँ-बाप की समस्त श्रोतों से आय ₹2लाख है तब भी वह इस आरक्षरण के दायरे नही आ सकते। आर्थिक रूप से कमजोर EWS के आरक्षण के दायरे में आने के लिए पहली शर्त है सवर्ण होना। 

   उपर्युक्त समस्त साज़िशों के बावजूद जब शूद्रों को सर्वश्रेष्ठ होने से रोकने में यूरेशियाई नस्लें असफल हो गई तब तिकड़म किया चोर दरवाजे से निकम्मों को सर्वश्रेष्ठ घोषित करने की साजिश जिसका नाम है ।