धरती का लाल मुलायम Red Soft Of Earth

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किस्मत का सिक्का जब चलता है तो फकीर भी राजा बन जाता है,और मुलायम की किस्मत उनका पता पूछते हुए सैफई तक पहुंच गई। एक मंच पर कविता पाठ हो रहा था और एक पुलिस वाला कवियो को कविता पढ़ने से रोक रहा था और नेताजी ने उस पुलिसवाले को उठाकर मंच पर ही पटक दिया और यहीं से नेताजी ने राजनीतिक कुश्ती की नींव पड़ती है। इटावा में सैफई का एक किसान परिवार, जिसके लिए घर की रोजी रोटी ढंग से चल जाए वही काफी था। लेकिन एक दिन वो यूपी के 25 करोड़ लोगों का राजा बन गया। मुलायम के पिताजी का नाम सुघर सिंह और माता का नाम मूर्ति देवी है। मुलायम सिंह ने आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए और जैन इन्टर कालेज जो कि मैनपुरी के करहल में है। वहां से बी0 टी0 की पढ़ाई की, इसके बाद करहल के इंटर कॉलेज में कुछ दिनों तक अंग्रेजी के मास्टर भी रहे।

मुलायम सिंह यादव तीन बार मुख्यमंत्री रहे। पहली बार पांच दिसंबर 1989 से 24 जून 1991 तक, दूसरी बार पांच दिसंबर 1993 से 3 जून 1995 तक और तीसरी बार  29 अगस्त 2003 से 13 मई 2007 तक मुख्यमंत्री रहे। जून 1996 से 19 मार्च 1998 तक भारत के रक्षा मंत्री रहे।

समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव अपने कई ऐतिहासिक फैसलों के लिए याद किए जाएंगे। उन्होंने भारतीय राजनीति को न सिर्फ नई दिशा दी बल्कि समाजिक परिवर्तन की इबारत भी लिखी। उन्होंने महिलाओं को सियासत में भागीदारी दिलाने के लिए निरंतर आवाज बुलंद किया।

इटावा के सैफई में किसान परिवार में जन्म लेने वाले मुलायम सिंह यादव अखाड़े में दांव लगाते- लगाते सियासी फलक पर छा गए।  24 फरवरी वर्ष 1954 में मात्र 15 वर्ष की आयु में समाजवाद के शिखर पुरुष डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर नहर रेट आंदोलन में पहली बार जेल गए। वह केके कॉलेज छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए। आगरा विश्वविद्यलाय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर करने के बाद इंटर कॉलेज में प्रवक्ता बने। फिर त्यागपत्र दिया और अपने गुरु चौधरी नत्थूसिंह की परंपरागत विधानसभा सीट जसवंत नगर से 1967 में पहली बार विधायक बने। इसके बाद फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने अपने जीवन में कई ऐसे फैसले लिए, जिसकी वजह से उनके न रहने पर भी लोग याद  करेंगे। अपने राजनीतिक सपर में पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों के हित की अगुवाई कर अपनी पुख्ता राजनीतिक ज़मीन तैयार की। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई ऐतिहासिक फैसले भी लिए, जिसके लिए वह हमेशा याद किए जाएंगे।

समाजवादी पार्टी का गठन

लोकदल से वाया जनता दल होते हुए मुलायम सिंह यादव ने 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना की। पिछड़ी जातियों को गोलबंद करते हुए अल्पसंख्यकों को साथ लिया। अगलों को उनकी हिस्सेदारी के आधार पर भागीदारी देते हुए आगे बढ़े। तीन बार मुख्यमंत्री बनने के बाद वर्ष 2012 में अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया।

बाबरी मस्जिद विवादित ढांचा और अयोध्या

1989 में मुलायम सिंह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। अयोध्या में मंदिर आंदोलन तेज हुआ तो कार सेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया। इसके बाद उन्हें मुल्ला मुलायम तक कहा गया। लेकिन उन्होंने इसकी परवाह कभी नहीं की। अपने 79वें जन्मदिन पर मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि मुख्यमंत्री रहते देश की एकता के लिए कारसेवकों पर गोलियां चलवाईं। अगर वह अयोध्या में मस्जिद नहीं बचाते तो ठीक नहीं होता क्योंकि उस दौर में कई नौजवानों ने हथियार उठा लिए थे। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री काल में देश की एकता के लिए कारसेवकों पर गोलियां चलवानी पड़ी।

यूपीए को समर्थन ले चौंकाया

वर्ष 2008 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार अमरीका के साथ परमाणु करार को लेकर संकट में आ गई। उस वक्त यूपीए में शामिल वामपंथी दलों ने समर्थन वापस ले लिया। ऐसे समय मुलायम सिंह यादव ने बाहर से समर्थन देकर मनमोहन सरकार को गिरने केबचा लिया। उनके इस फैसले की जमकर आलोचना भी हुई, लेकिन उन्होंने कोई परवाह नहीं की।

अखिलेश को सौंपी विरासत

राजनीति के कुशल खिलाड़ी मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 2012 में पूण बहुमत मिलते ही अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया। वर्ष 2017 में पार्टी के अंदर खलमंडल मचा। वह कभी शिवपाल और कभी अखिलेश के पक्ष में खड़े होते रहे। आखिरकार उन्होंने सार्वजनिक मंच से स्वीकार किया कि वह अखिलेश यादव केसाथ साथ हैं। अखिलेश यादव ही समाजवादी विरासत को आगे बढ़ा सकते हैं।

रामगोपाल को दिखाया बाहर का रास्ता

सियासत में कई उतार-चढाव देखते हुए मुलायम सिंह यादव ने कई कड़े फैसले भी लिए। जिस वक्त विरासत को लेकर विवाद चला तो मुलायम सिंह ने अपने प्रो रामगोपाल यादव को पार्टी से बर्खास्त करने से भी नहीं हिचके।

मंडल कमीशन खेमे के विरोध में उतरे

पिछड़ों के हक के लिए निरंतर संघर्ष करने वाले मुलायम सिंह यादव ने एक वक्त ऐसा भी आया जब मंडल कमीशन के विरोधी खेमे में खड़े नजर आए। मंडल कमीशन रिपोर्ट नामक पुस्तक की भूमिका में चंद्रभूषण सिंह ने लिखा है कि जब लालकृष्ण आडवाणी कमंडल लेकर निकले  तो चंद्रशेखर ने मंडल लागू न करने संबंधी बयान दे दिया। इसके बाद जनता दल में विद्रोह शुरू हुआ। मुलायम सिंह मंडल विरोधी चंद्रशेखर के साथ हो लिए। इसे लेकर मुलायम सिंह की आलोचना भी हुई, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की।

उतने ही मुलायम रहे जितने कड़क

मुलायम सिंह यादव ने अपने कार्यकाल केदौरान जितने कड़क फैसले लिए, उतने ही दिल के मुलायम रहे। उन्होंने अपने घनघोर विरोधियों को भी मौका पड़ने पर गले लगाने से नहीं चूके। पेश हैं मुलायम के मुलायम होने की कहानी बयां करती कुछ घटनाएं—

अमर सिंह- मुलायम सिंह ने उद्योगपति अमर सिंह को गले लगाया और महासचिव पद सौंपा। चंद दिनों में ही अमर सिंह की हालत पार्टी में नंबर दो की हो गई। लेकिन वर्ष 2010 में अमर सिंह को सपा से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। अमर सिंह ने कई गंभीर आरोप लगाए, लेकिन मुलायम ने इन आरोपों को मुस्कुरा कर टाल दिया।

आजम खां- सपा के गठन में मुलायम सिंह के अजीज दोस्त आजम खां से उनकेरिश्ते बनते -बिगड़ते रहे हैं। कभी अमर सिंह तो कभी कल्याण सिंह की वजह से आजम खां असहज हुए। 27 साल साथ-साथ रहने केबाद 2009 में आजम ने सपा का साथ छोड़ दिया। इसकेपीछेमूल वजह अमर सिंह को माना गया। आजम खां ने कभी खुलकर मुलायम सिंह केखिलाफ नहीं बोला। इतना जरूर है कि उन्होेंन एक बार शेर पढ़ा कि – इस सादगी पर कौन न मर जाए ऐ खुदा, करते हैं कत्ल और हाथ में तलवार नहीं। फिर चार दिसंबर 2010 को आजम खां की घर वापसी हुई। दोनों मिले तो आंखों में आंसू छलक पड़े।

कल्याण सिंह-  प्रदेश की सियासत में एक साथ सफर शुरू करने वाले मुलायम सिंह को छह दिसंबर को 1992 को मुल्ला मुलायम तो कल्याण सिंह को हिंदू सम्राट की उपाधि मिली। भाजपा से रिश्ते खराब होने के बाद कल्याण सिंह ने अलग पार्टी बनाई। वर्ष 2009 से ठीक पहले मुलायम सिंह ने कल्याण सिंह मिले। आगरा में राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में एक साथ मंच साझा किया। लेकिन चुनाव में सपा को झटका लगा और फिर दोनों की राहें अलग हो गईं।

बेनी प्रसाद वर्मा- सपा के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे बेनी प्रसाद मौर्य 2008 में बेटे को टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर नई पार्टी बनाई और फिर 2008 में कांग्रेस में शामिल हो गए। वर्मा ने मुलायम सिंह के खिलाफ बयान दिया कि मुलायम प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं, लेकिन उनकी औकात प्रधानमंत्री कार्यालय में झाड़ूलगाने तक की नहीं है। इसके बाद भी मुलायम सिंह ने कभी भी बेनी प्रसाद के लिए बयान नहीं दिया। हालात बदले और बेनी प्रसाद सपा में वापस आए तो उन्हें सपा ने 2016 में राज्यसभा भेजा।

24 साल बाद एक मंच पर आए थे मायावती- मुलायम

वर्ष 1993 में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम आपस में मिले तो भाजपा का विजय रथ रोकने में कामयाबी मिली थी। लेकिन मायावती और मुलायम के बीच 23 मई 1995 को दूरियां साफ दिखी थी। क्योंकि इस दिन जब मुलायम सिंह कांशी राम से मिलने पहुंचे तो कांशीराम ने कहा कि बात पत्रकारों के सामने होगी। एक जून को मायावती ने मुलायम सरकार में शामिल अपने 11 मंत्रियों के साथ दावा पेश कर दिया। इसके बाद दोनों की राहें जुदा हो गईं। इसके बाद 15 मार्च 2018 को अखिलेश यादव ने मायावती से मुलाकात कर दोबारा गठबंधन कायम किया। फिर 24 साल बाद 19 अप्रैल 2019 को मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव और मायावती एक मंच पर दिखे। इस दिन सपा- बसपा की एका में नारे लगे। हमेशा 1995 में गेस्ट हाउस कांड की दुहाई देने वाली मायावती ने इस दिन रैली में न सिफ़ॱर  मुलायम सिंह के लिए वोट मांगा बल्कि उनकी तारीफ़  भी की और गेस्ट हाउस जैसा कांड भूलने की वजह भी बताई। कहा कि मुलायम सिंह यादव पिछड़े वर्ग के असली नेता हैं।

जन्म – 22 नवंबर 1939, मृत्यु – 10 अक्टूबर 2022

मुलायम सिंह यादव तीन बार मुख्यमंत्री रहे। पहली बार पांच दिसंबर 1989 से 24 जून 1991 तक, दूसरी बार पांच दिसंबर 1993 से 3 जून 1995 तक और तीसरी बार  29 अगस्त 2003 से 13 मई 2007 तक मुख्यमंत्री रहे। वह एक जून 1996 से 19 मार्च 1998 तक भारत के रक्षा मंत्री रहे। नेताजी पहली बार 1967 में विधायक बने। फिर 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993 और 1996 में विधायक बने। फिर उपचुनाव में 2004 से  2007 तक विधायक रहे। लोकसभा सदस्य के रूप में 1996 में मैनपुरी, 1998 में संभल, 1999 में संभल से रहे। 2004 में मैनपुरी से चुने गए, लेकिन इस्तीफा दे दिया। फिर 2009 में मैनपुरी, 2014 में आजमगढ़ औ 2019 में मैनपुरी से सांसद चुने गए। 1992 में सपा का गठन किया और खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। वह जनवरी 2017 तक इस पद पर रहे। इसके बाद इन्हें संरक्षक बना दिया। समाजवादी पार्टी के नेता एवं पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव देवेगौड़ा और इन्द्र कुमार गुजराल की सरकारों में 1996 से 1998 के बीच दो साल भारत के रक्षा मंत्री रहे तब उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले लिये जिसके कारण सेना ने उन्हें बेस्ट रक्षा मंत्री का आर्डर दिया था।

मुलायम सिंह यादव रहे उत्तम रक्षा मंत्री

  • उनके रक्षा मंत्री कार्यकाल में चीन हो या पाकिस्तान किसी भी देश की हिम्मत नहीं थी कि वह भारत की तरफ आँख उठाकर देख सके।
  • पाकिस्तान ने उन दो सालों में सीजफायर नहीं किया
  • उन्होंने चीन की सेना को 4 किलोमीटर पीछे ढकेल दिया था।
  • नेताजी के रक्षा मंत्री कार्यकाल में 5 सैनिक शहीद हुए थे उनके बदले में 100 को कफन पहना दिया था।
  • खुद जाकर आदेश दिया था सीमा पर एक भी घुसपैठ नही होनी चाहिये।
  • भारतीय वायुसेना को सबसे शक्तिशाली अत्याधुनिक सुखोई 30 Mi लड़ाकू विमान दिये।
  • नेताजी भारत के पहले रक्षा मंत्री थे जो भारत के रक्षा मंत्री होते हुये भी सियाचिन ग्लेशियर पर गये थे।

नेताजी मुलायम सिंह यादव के कारण ही शहीद पति से मिल पाती हैं सैनिकों की पत्नियांरक्षा मंत्री मुलायम सिंह ने ही नियम बनाया था कि जब भी कोई जवान सीमा पर शहीद होगा, तो डीएम, एसपी उसके घर जाएंगे।शहीद को पूरा राजकीय सम्मान मिलेगा।सीमा पर कोई शहीद होगा, तो उसका शव राजकीय सम्मान से उसके घर पहुचाया जाएगा ।जिससे उनके परिवारी जन उनका अंतिम दर्शन कर सके और शहीदों को स -सम्मान विदाई मिल सके।बता दे पहले सैनिक के घर उसकी टोपी, मेडल ही जाती थी और बैरक में उनका अंतिम संस्कार कर दिया जाता था। यह व्यवस्था अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही है। मुलायम सिंह यादव ने विधवाओं को पति के अंतिम दर्शन की व्यवस्था की थी।