पुर्तगाली शासन के अंत की कहानी समाजवादियों ने लिखी

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पुर्तगाली शासन के अंत की कहानी समाजवादियों ने लिखी
पुर्तगाली शासन के अंत की कहानी समाजवादियों ने लिखी

अखिलेश यादव दो दिवसीय केरल यात्रा में सार्वजनिक आकर्षण के केन्द्र बने रहे। जहां से गुजरे वहां मिलने और अभिनंदन करने वालों की कतार लग गई। सुदूर केरल में जहां वर्षा का कोई समय नहीं होता है, जब तब होती रहती है, इन दो दिनों में मौसम खुशगवार बना रहा। इस यात्रा में राष्ट्रीय सचिव राजेन्द्र चौधरी भी साथ थे। पहले दिन 21 जून 2023 को कोच्चि में वायुयान से उतरते ही डॉ0 साजी पोथेन थॉमस, समाजवादी पार्टी केरल के अध्यक्ष ने अपने साथियों के साथ स्वागत किया। राष्ट्रीय अध्यक्ष जी का काफिला समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव जॉय एंटोनी के एक सार्वजनिक कार्यक्रम में भी शामिल हुए। पुर्तगाली शासन के अंत की कहानी समाजवादियों ने लिखी


  अखिलेश यादव से कोच्चि में स्थापित दी एडम बहुभाषी इंटरनेट पोर्टल के चेयरमैन और मैनेजिंग एडिटर वेंकटेश रामकृष्णन मिले। दि एडम बहुभाषी इंटरनेट पोर्टल है जिसके अंग्रेजी, हिन्दी, मलयालम और तमिल में प्रोग्राम्स है। इस पोर्टल में सईद नकवी, सी.एल. थॉमस और वी.एम. दीपा जैसे जाने माने पत्रकार है। केरल भारत की दक्षिण पश्चिमी सीमा पर अरब सागर और सह्याद्रि पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य एक खूबसूरत भू-भाग है। अपनी सांस्कृतिक परम्परा और स्थानों के लिए विख्यात है। इलायची, काली मिर्च, लौंग, चाय, कॉफी, रबर यहां की मुख्य फसलें है। कोच्चि शहर की सड़कों का रखरखाव बेहतर है। स्वास्थ्य सेवाएं अच्छी है। कोच्चि में जो मेट्रो रेल चली उसका निर्माण करने वाले मेट्रो मैन श्री श्रीधरन ने लखनऊ में भी श्री अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार में मेट्रो रेल चलवाई थी।


    अखिलेश यादव की कोच्चि में 1503 में निर्मित सेंट फ्रांसिस चर्च की यात्रा कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण रही। इतिहास बताता है कि यूरोप से भारत तक के ऐतिहासिक समुद्री मार्ग की खोज करने वाले वास्को डी गामा पहले व्यक्ति थे जो 1498ई0 में कोझिकोड के पास उतरे थे। उन्हें सेंट फ्रांसिस चर्च के अंदर 1524ई0 में दफनाया गया था। चर्च के पादरी (च्तपमेज) पीटर ने श्री अखिलेश यादव का स्वागत किया और उन्हें चर्च के इतिहास की जानकारी दी।  वास्को डी गामा, केरल के कालीकट तट पर पहुंचने वाले प्रथम पुर्तगाली नाविक थे। फिर यहां आए पुर्तगाली सैनिक और उनका राज गोवा दमन दीव तक फैल गया। यह राज्य अगली साढ़े चार सदियों तक चला। सन् 1947ई0 में अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत ने पुर्तगाली प्रदेशों को भारत को सौंप देने का आग्रह किया था पर पुर्तगाल सरकार ने बात तक करना पसंद नहीं किया। 19 दिसम्बर 1961 को सैनिक कार्यवाही से गोवा, दमन, दीव का भारतीय संघ में विलय पूरा हुआ। गोवा 450 साल तक पुर्तगाली शासन में रहा।


    यद्यपि गोवा के दमनकारी शासन के खिलाफ जनता का विद्रोह 1583 से शुरू हो गया था तथापि 18 जून 1946 को जब समाजवादी नेता डॉ0 राममनोहर लोहिया ने पुर्तगाल की आजादी के लिए आंदोलन की कमान सम्हाली तो देश-दुनिया का ध्यान उस पर गया। गोवा में तब पुर्तगाली शासन के खिलाफ विरोध को बुरी तरह कुचला जा रहा था। डॉ0 राममनोहर लोहिया ने जब पुर्तगाली दमन के विरोध में आवाज उठाई तो उन्हें गिरफ्तार कर मडगांव जेल में रखा गया और यातनाएं दी गई। जनता और भारत में भारी आक्रोश को देखते हुए उन्हें बाद में रिहा कर दिया गया। मधुलिमये जी ने भी इस आंदोलन की कमान सम्हाली। 15 अगस्त 1955 को कोच्चि से पांच हजार लोगों ने गोवा में घुसने की कोशिश की। निहत्थे लोगों पर पुर्तगाली पुलिस ने गोली चलाई जिसमें 30 लोगों की जानें गईं। 19 दिसम्बर 1961 को भारतीय सेना ने गोवा पर विजय हासिल की।


    सच तो यह है कि भारतीय क्षेत्र में पुर्तगाली शासन के अंत की कहानी समाजवादियों ने ही लिखी। केरल की धरती से पुर्तगाली राज का प्रारम्भ हुआ था और उसका अंत गोवा, दमन, दीव की आजादी से हुआ। वास्को डी गामा भारत की धरती पर जिसने पहला पैर रखा था उसका अन्तिम संस्कार भी इसी धरती पर हुआ। उसकी मृत्यु के बाद उसका पार्थिव शरीर 14 साल बाद पुर्तगाल वापस ले जाया गया। इतिहास ऐसे ही अपने को दुहराता है। गोवा की मुक्ति का संग्राम ही नहीं, समाजवादियों ने गांधी जी के आव्हान पर अंग्रेजी राज के खिलाफ 1942 में भारत छोड़ों आंदोलन की भी अगुवाई की थी। कांग्रेसी नेता तो पहले ही गिरफ्तार हो गए थे। आजादी की जंग को अपनी पूर्णता तक पहुंचाने में लोकनायक जयप्रकाश नारायण, डॉ0 राममनोहर लोहिया और तमाम अन्य समाजवादी नेताओं ने यातनाएं सही थी। आज जब लोकतंत्र तथा नागरिक स्वतंत्रता पर फिर खतरा मंडराता दिख रहा है लोकतंत्र और संविधान को बचाने में श्री अखिलेश यादव के समाजवादी विजन और लोक कल्याणकारी राज की सोच से ही आजादी के महानायकों के सपनों को पूरा करने के प्रयासों को बल मिलेगा। पुर्तगाली शासन के अंत की कहानी समाजवादियों ने लिखी