वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा ने 20 लाख वर्षों का तोड़ा रिकॉर्ड

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कार्बन डाइआक्साइड रासायनिक सूत्र CO2), एक रंगहीन तथा गन्धहीन गैस है जो पृथ्वी पर जीवन के लिये अत्यावश्यक है। धरती पर यह प्राकृतिक रूप से पायी जाती है। धरती के वायुमण्डल में यह गैस आयतन के हिसाब से लगभग 0.03 प्रतिशत होती है। इस प्रकार कार्बन डाइआक्साइड कार्बन चक्र का प्रमुख अवयव है।

अजय मोहन

जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण वायु प्रदूषण है, यह हम सभी जानते हैं, उसमें भी सबसे बड़ा योगदान कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का है, यह बात भी लगभग सभी को पता है, लेकिन इसके अलावा और कौन-कौन सी गैस हैं, जो पृथ्‍वी को विनाश की ओर ले जा रही हैं, यह जानना भी महत्वपूर्ण है। हम बात करने जा रहे हैं उन गैसों की जो ग्रीनहाउस गैसों की श्रेणी में आती हैं और बीते कुछ दशकों में वातावरण में उनकी मात्रा में तेज़ी से इज़ाफ़ा हुआ है। सोमवार को इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के समूह-1 की रिपोर्ट की मानें तो वर्ष 2019 में वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की मात्रा अब तक की सबसे अधिक दर्ज हुई है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इतनी अधिक मात्रा बीते 20 लाख साल में भी नहीं रही। इसके अलावा नाइट्रस ऑक्साइड और मीथेन की बढ़ती मात्रा पर भी वैज्ञानिकों ने चिंता व्यक्त की है।

कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) –

जबतक वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड संतुलित मात्रा में रहती है, तब तक संपूर्ण जैव विविधता के लिए फायदेमंद है, लेकिन अगर इसकी मात्रा बढ़ गई, तो न केवल पेड़-पौधों को बल्कि पूरी पृथ्‍वी को खतरा हो सकता है, जोकि हो भी रहा है। वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड प्रमुख रूप से कोयला, प्राकृतिक गैस और तेल ईंधन व अन्‍य जैविक पदार्थों को को जलाने से बढ़ती है। इसके परिणामस्वरूप वातावरण में कई प्रकार के केमिकल रिएक्शन (रासायनिक अभिक्रियाएं) होती हैं। हमारे बीच मौजूद पेड़-पौधे कार्बन डाइऑक्‍साइड को अवशोषित कर लेते हैं, जोकि एक सामान्‍य प्रक्रिया है, लेकिन यह समझने की जरूरत है कि पेड़-पौधे भी एक सीमा तक ही इस गैस को अवशोषित कर सकते हैं। इसीलिए इन्‍हें काटने या नुकसान पहुंचाने से रोका जाता है। जाहिर है, जो बची हुई कार्बनडाइऑक्साइड है, जिसकी मात्रा निरंतर बढ़ रही है, वो पृथ्‍वी को नुकसान पहुंचाने के लिए काफी है।

फ्लोरिनेटेड गैस –

ग्रीनहाउस गैसों की श्रेणी में कुछ फ्लोरीनेटेड गैसें भी शामिल हैं। जैसे कि हाइड्रोफ्लोरोकार्बन, पर फ्लोरोकार्बन, सल्फर हेक्साफ्लोराइड और नाइट्रोजन ट्राइफ्लोराइड। ये सभी मानव जनित सिंथेटिक ग्रीनहाउस गैसें हैं, जो मुख्‍य रूप से बड़ी-बड़ी फैक्ट्रि‍यों से उत्सर्जित होती हैं। ये गैसें भले ही कम मात्रा में उत्सर्जित हो रही हैं, लेकिन इनके दुष्‍प्रभाव CO2, CH4 और N2O से भी अधिक गंभीर हैं, क्योंकि ये गैसें पृथ्‍वी के वातावरण के ऊपर ओज़ोन की परत को तेज़ी से नुकसान पहुंचा रही हैं।

 धरती पर मौजूद सभी समुद्रों में कार्बनडाइऑक्साइड सोखने की क्षमता अनुमान से कहीं ज्यादा है। एक हालिया शोध में साइंटिफिक मॉडलों पर काम करने के दौरान शोधकर्ताओं ने यह खुलासा किया है। हालांकि, वातावरण में उत्सर्जित कार्बनडाइऑक्साइड की मात्रा को मापा जा सकता है लेकिन समुद्र द्वारा अवशोषित कार्बनाडाइऑक्साइड की मात्रा को मापा नहीं जा सकता। कितना सोख सकते हैं समुद्र- पूर्व के एक शोध के अनुसार समुद्र में 90 करोड़ टन कार्बनडाइऑक्साइड सोखने की क्षमता है।इसके अलावा समुद्र में अतिरिक्त 0.9 पेंटाग्राम प्रति लीटर तक कार्बनडाइऑक्साइड सोखने की क्षमता है।

क्या कहते हैं आईपीसीसी के वैज्ञानिक –

पर्यावरण के छठे चक्र के आंकलन के लिए अलग-अलग समूह आईपीसीसी द्वारा बनाये गए हैं, जिनमें पहले समूह की रिपोर्ट में कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर पर गहरी चिंता व्यक्त की गई है। रिपोर्ट के अनुसार बीते 2000 वर्षों में जो बदलाव हुए हैं, वो अभूतपूर्व हैं। 1750 के बाद से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में तेजी से वृद्ध‍ि हुई है। वर्ष 2019 में वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की मात्रा अब तक की सबसे अधिक दर्ज हुई है। इतनी अधिक मात्रा बीते 20 लाख साल में भी नहीं रही होगी। रिपोर्ट में कहा गया कि आने वाले समय में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़कर 400 गीगाटन हो सकता है, लेकिन अगर हम इसे 67% तक रोकने में कामयाब हो जाते हैं, तो 2099 तक पृथ्‍वी के तापमान में होने वाली वृद्ध‍ि भी 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित हो सकती है।

मीथेन गैस (CH4) –

दूसरी ग्रीनहाउस गैस मीथेन है, जो वाहनों में इस्तेमाल किए जाने वाले ईंधन के जलने पर निकलती है। साथ ही यातायात में प्रयोग किए जाने वाले कायेले, प्राकृतिक गैस, पेट्रोल, डीजल के प्रयोग पर उत्सर्जित होती है। इसके अलावा मवेशी, कृषि कार्यों, भूमि के इस्‍तेमाल, जैविक अपशिष्‍ट, आदि से निकलती है।

N2O और CO2 पर क्या कहा वैज्ञानिकों ने आईपीसीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि इन दोनों गैसों की मात्रा 2019 में इतनी अधिक रही जितनी की पिछले 8 लाख वर्षों में नहीं रही होगी। 1970 के बाद से पृथ्‍वी के गर्म होने की दर और भी बढ़ गई। जितना तापमान बीते 2000 साल में नहीं बढ़ा, उतना पिछले 50 वर्षों में बढ़ गया। वैज्ञानिकों का कहना है कि वायु प्रदूष को नियंत्र‍ित कर के मीथेन के उत्सर्जन को काफी हद तक कम किया जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार शहरों के वातावरण में N2O के अलावा सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) की मात्रा भी निरंतर बढ़ रही है। ये दोनों गैसें एयरोसोल के रूप में हवा में भारी मात्रा में मौजूद रहती हैं और हर साल इन गैसों की वजह से 42 लाख लोगों की मृत्यु समय से पहले हो जाती है। हालांकि ये दोनों गैस मिलकर सतही वातावरण को ठंडा करने का काम भी करती हैं।

नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) –

नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन मुख्‍य रूप से कृषि कार्यों, औद्योगिक गतिविधियों, कोयले या जैविक ईंधन को जलाने पर या फिर कूड़े के ढेर को जलाने पर नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। और तो और अपशिष्‍ट के रूप में उद्योगों से निकलने वाले गंदे पानी को साफ करने के ट्रीटमेंट प्लांट से भी इस गैस का उत्सर्जन होता है।