मेयर का अब भाजपा और कांग्रेस में सीधा मुकाबला

103

अजमेर के डिप्टी मेयर के पद पर कांग्रेस गजेन्द्र सिंह रलावता पर दाव लगा सकती है। भाजपा में है कई दावेदार।रलावता भाजपा के बोर्ड में लम्बे समय तक नगर निगम के उपायुक्त रह चुके हैं।मेयर पद के लिए अब भाजपा और कांग्रेस में सीधा मुकाबला। तीन नामांकन वापस।

एस0 पी0 मित्तल

भाजपा उम्मीदवार बृजलता हाड़ा का अजमेर का मेयर बनना तय है, लेकिन भाजपा में डिप्टी मेयर के पद को लेकर कई दावेदार हैं। माना जा रहा है कि डिप्टी मेयर को लेकर भाजपा में खींचतान है। इस खींचतान को देखते हुए ही कांग्रेस अब गजेन्द्र सिंह रलावता को डिप्टी मेयर पद का उम्मीदवार बना सकती है। डिप्टी मेयर का चुनाव 8 फरवरी को होना है। रलावता को उम्मीदवार बनाने के पीछे उनके भाजपा पार्षदों से संबंध बताए जा रहे हैं। रलावता गत 30 नवम्बर को अजमेर नगर निगम के उपायुक्त पद से सेवानिवृत्त हुए हैं।

भाजपा बोर्ड में पिछले पांच वर्ष के कार्यकाल में रलावता अधिकांश समय निगम में उपायुक्त ही रहे। मेयर धर्मेन्द्र गहलोत और अधिकांश भाजपा पार्षदों के भरोसे के कारण ही रलावता को कई बार निगम के आयुक्त का चार्ज भी दिलवाया गया। रलावता को निगम में ही बनाए रखने के लिए भाजपा नेताओं ने पूरी ताकत लगाए रखी। भाजपा के शासन में कई बार शिकायत की गई रलावता कांग्रेस के वरिष्ठ नेता महेन्द्र सिंह रलावता के छोटे भाई है। लेकिन भाजपा पार्षदों के दबाव के चलते ऐसी शिकायतों को दरकिनार कर दिया गया। इसमें कोई दोराय नहीं कि उपायुक्त के पद पर रहते हुए गजेन्द्र सिंह रलावता ने भाजपा और कांग्रेस दोनों के पार्षदो से अच्छे संबंध बनाए रखे। अब यदि संबंध डिप्टी मेयर के चुनाव में कांग्रेस के काम आ सकते हैं।

भाजपा और कांग्रेस दोनों में ही अनेक पार्षद दोबारा से जीत कर आए हैं। 80 पार्षदों में से भाजपा के 48 पार्षद हैं, लेकिन डिप्टी मेयर के पद को लेकर कई पार्षद दावेदारी जता रहे हैं। भाजपा की इस स्थिति को देखते हुए कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि रलावता की उम्मीदवारी से कांग्रेस को लाभ मिल सकता है। रलावता इस चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार है। भाजपा के पार्षदों के बीच मेयर पद को लेकर कोई खींचतान नहीं है, लेकिन डिप्टी मेयर को लेकर कई दावेदार हैं। इनमें ज्ञान सारस्वत, नीरज जैन, देवेन्द्र सिंह शेखावत, रमेश सोनी, अजय वर्मा प्रमुख हैं। अजय वर्मा के पक्ष में तर्क दिया जा रहा है कि वे पढ़े लिखे और प्रशासनिक कार्यों के अनुभवी हैं।

वर्मा गत भाजपा के शासन में अजमेर के लोक अभियोजक भी रह चुके हैं और तब उनका प्रशासन से सीधा संबंध रहा है। इससे पहले वर्मा पार्षद रहे और अजमेर विकास प्राधिकरण के सदस्य भी। चूंकि प्रदेश में कांग्रेस का शासन है, इसलिए डिप्टी मेयर के पद पर अनुभवी व्यक्ति की जरुरत है। हालांकि मेयर बनने वाली बृजलता हाड़ा भी पढ़ी लिखी और योग्य हैं। लेकिन उन्हें पूर्व में जन प्रतिनिधि होने का अनुभव नहीं है। ऐसे में भाजपा के बोर्ड में डिप्टी मेयर की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। वर्मा के परिवार की पृष्ठ भूमि भी भाजपा की रही है। वर्मा पूर्व विधायक स्वर्गीय रतनलाल वर्मा के भतीजे हैं। अभी कड़े मुकाबले में वार्ड संख्या 6 से जीत दर्ज की है। कांग्रेस के नवनिर्वाचित पार्षदों से भी वर्मा के अच्छे संबंध हैं और निर्दलीय पार्षदों को अपनी ओर लगाने की क्षमता भी रखते हैं। जहां तक वर्मा के ओबीसी वर्ग का होने का सवाल है तो पहले भी अनारक्षित पद पर ओबीसी वर्ग के मेयर और डिप्टी मेयर रहे हैं।

भाजपा में ओबीसी वर्ग के ही रमेश सोनी की दावेदारी भी सख्त बताई जा रही है। सोनी के लिए भाजपा विधायक वासुदेव देवनानी प्रयासरत हैं। लेकिन देवनानी का यह भी प्रयास है कि डिप्टी मेयर पर भी पार्षदों के बीच आम सहमति होनी चाहिए। इसी प्रकार लगातार तीसरी बार पार्षद बने ज्ञान सारस्वत का भी दावा मजबूत है। एक वोट से जीत कर चर्चित हुए नीरज जैन भी डिप्टी मेयर के पद पर दावेदारी जता रहे हैं। जैन भारतीय युवा मोर्चे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुके हैं। यूथ बोर्ड के पूर्व सदस्य देवेन्द्र सिंह शेखावत ने भी दावेदारी जताई है। डिप्टी मेयर के पद पर भाजपा में आम सहमति बनाना आसान नहीं है। उल्लेखनीय है कि भाजपा के सभी 48 पार्षद जयपुर स्थित रिसोर्ट में हैं। पार्षदों को एकजुट रखने के लिए ही जयपुर ले जाया गया है।


अब सीधा मुकाबला:- 07 फरवरी को मेयर पद के चुनाव में अजमेर में अब भाजपा और कांग्रेस में सीधा मुकाबला होगा। 4 फरवरी को कांग्रेस की ओर से चंचल देवी और पिंकी बालोटिया ने अपना नामांकन वापस ले लिया। इसी प्रकार निर्दलीय पार्षद काजल यादव ने भी अपना नामांकन वापस ले लिया। ऐसे में कांग्रेस की ओर से अब सिर्फ द्रौपदी कोली ही एक मात्र अधिकृत उम्मीदवार हैं। भाजपा ने बृजलता हाड़ा का ही नामांकन दाखिल करवाया था। ऐसे में अब हाड़ा और द्रौपदी के बीच सीधा मुकाबला हो गया है। कांग्रेस के पास 80 में से 18 पार्षद हैं। लेकिन कांग्रेस अपने साथ निर्दलीय पार्षदों के होने का भी दावा कर रही है। मौजूदा बोर्ड में 13 निर्दलीय और एक आरएलपी का पार्षद है। कांग्रेस का प्रयास है कि निर्दलीयों के मत अधिक से अधिक प्राप्त किए जाए।