बच्चों के खाने-पीने की कहानी और अविष्कार

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बच्चों के खाने-पीने की कहानी और अविष्कार
बच्चों के खाने-पीने की कहानी और अविष्कार

चित्रलेखा वर्मा
चित्र लेखा वर्मा

बच्चों के खाने-पीने की कहानी और अविष्कार,बच्चों के खान पीने की प्रिय वस्तुए और उनके अविष्कार।छोटे बच्चों का मस्तिष्क कुम्हार के एक कच्ची मिट्टी का लोंदा होता है l जिसे वह बर्तन को मन चाहा आकार देनें के लिए चाक पर रखता है l लेकिन बच्चो के अन्दर सीखने समझनेऔर नकल करने की प्राकृतिक प्रवृति भी होती है। बच्चे अपने आस पास के वातावरण से ही सीखते है। उन्हें सब चीजो को सीखने की उत्सुकता होती है l उनके अन्दर वैज्ञानिक मनोवृत्ति पैदा करना बहुत जरूरी होता है। यह मनोवृत्ति उनके अन्दर नवीनतम क्षमता जागृत कर देती है। यहआज के विकास शील देशों के लिए आवश्यक है। 

बच्चों का प्रेम खेल खिलौने तथा कुछ अन्य उपकरणों में होता है। उसको खेलते और इस्तेमाल करते हैं, वे उनके बारे में जानकारी भी चाहते है। बच्चो को खाने पीने की  चीजों के में भी काफी रूचि होती है वे उस के बारे क्यो और कैसे होता जैसे प्रश्र भी पूछते हैं । बच्चों कोवर्गर,पिट्जा,चाउमिन,चिप्स आदि बहुत पसंद होता है। उसकी उत्पति और उनके अविष्कार के बारे में यदि उन्हें जानकारी दी जाती है तो वो उनको बहुत ही जल्दी आत्मसात् कर लेते हैं। इस से बच्चों को कुछ अविष्कार करने के लिए प्रोत्साहन भी मिलता हैऔर वे देश के विकास में भी काफी सहायक होते हैं। 

च्यूंगम और बब्लगम 

  हम अवकाश के समय, कुछ लोगों को च्यून्गम या बब्लगम चबाते हुए देखते है। समय के साथ बब्लगम भी काफी लोकप्रिय हो गया है।बच्चे इससे बबूले भी निकालते हैं । यह बहुत से लोगों को अजीब सा लगता है ।पर इस अजीब सी लगने  वाली चीज की कहानी भी अजीबोगरीब सीहै। च्यून्गम सदियों से चबाया जाता है। मध्य अमेरिकी देशों के जंगलों में एक वृक्ष का, चिकली नामक फल होता है जो चबाने में आनन्द दायक होता हैं। हांलांकि इस का कोई  विशेष स्वाद नहीं होता है । जब यूरोप के लोग अमेरिका पहुंचे तो पहले उन्होंने वहां के लोगों द्वारा चबाये जाने वाले चिकली का मजाक उड़ाया पर बाद में उन्हें भी चिकली चबाने में आनन्द आने लगा।अठारहसौ ई. के पहले दशक में मुफ्त में मिलने वाली चिकली दुकानों पर मिलने लगी। 

1870 मे charlsAdams नामक एक फोटोग्राफर ने रबर के स्थान पर चिकली का प्रयोग करना शुरू कर दिया। वह चिकली से खिलौने, मुखौटे एवं बरसाती जूते आदि बनाना चाहता था। पर वह इस को बनाने में सफल नही हो सका। एक दिन वह थका हारा फैक्ट्री में बैठा था। अचानक उसने उस चिकली का एक टुकड़ा उठा कर मुंह में डाल लिया और वह उसे चबाने लगा। चबाते-चबाते उसे यह ख्याल आया कि अगर वह उसमें बेहतर स्वाद मिला दे तो उसकी बिक्री पर असाधारण रूप से प्रभाव पडेगा। अडमस ने स्वादिष्ट च्यून्गम बना बना कर लोगों को बेचना आरम्भ किया। बीस बरस में वह एक फैक्टरी का मालिक हो गया एवं धनवान बन गया। समय के साथ, इस के साथ अनेक दास्तांने जुडी। इसे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानि कारक बताया गया था। 1869ई0मे एक दन्त चिकित्सक ने एक लेख लिखा और यह चेतावनी दी कि बराबर इस का सेवन करने से मुख की लार ग्रंथियां सूख जायेगी और उसका बुरा असर आंतों पर भी पड़ेगा। आंतें सूख जायेगी या आपस में चिपक जायेगी। दूसरी ओर ओहियो अमेरिका के चिकित्सकों ने इसे जबड़ों के लिए विशेष रूप से लाभकारी व्यायाम बताया  और इसे पेटेन्टभी करा लिया ।अडमस ने इसे दांतों के लिए बहुत ही लाभदायक स्वास्थ्य वर्धक एवं हाजमा ठीक करने वाला बताया था।

जो भी हो इसका प्रयोग बढ़ता ही चला गया। अमेरिका में पहले औसत आदमी च्यून्गम की 39स्टिक चबा डालता था बाद में यह संख्या बढ़कर 200 तक हो गई और यह निरन्तर बढ़ती ही गई। जापान में भी इसका प्रयोग बढ़ता ही गया। इसमें हरी चाय का स्वाद मिलाया गया । दिन प्रतिदिन इसका। प्रयोग बढ़ता ही जा रहा है , मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि तनाव के समय इसके प्रयोग से मानव को राहतमिलती है। कहा जाता है कि तनाव युद्ध के दौरान या जब कोई ‌भौतिक आपदा आती है उस समय इस की बिक्री भी काफी बढ़ गया जाती है। आज दवा से लेकर सामान्य दुकानों पर वह मिल जाता है।

बब्लगम की कहानी कम‌‌ रोचक नहीं है

 बीसवीं सदी के अंत में एक प्रयोग किया गया और एक नया गम तैयार किया। इससे एक बबूला तैयार हो जाता था। और इस फार्मूले में कुछ कमी थी। इसमें बबूला निश्चित रूप लेकर फूट जाता था ।यह गीला भी‌ होता था। अतः फूटने के बाद बच्चों के मुंह पर चिपक जाता था,जिस को‌ साफ करने में काफी कठिनाई होती थी। बबल गम बाजार में उपलब्ध तो हो‌ गया‌ पर शीघ्र ही उसे वापस ले लिया गया।फ्रांकलीयर अपने प्रयोगों में जुटा रहा।और शीघ्र ही उन्होंने एक नया गम तैयार किया ,जो दुगना मजबूत था। अतः इसका नाम डबल बबल गम रखा गया। इस को लोगों  ने पसंद भी काफी किया। पर फ्रैंक सन्तुष्ट नहीं था। उसने एक वेइन्डिग मशीन बनाई जिसमें एक पैनी डालने से बबल‌गम निकल आता था। बच्चों के खाने-पीने की कहानी और अविष्कार

फ्रैक उससे सन्तुष्ट नहीं था। पर अपने आप पर विश्वास था। न्यूयार्क शहर के‌ एक व्यस्त विल्डिंग के सामने अपनी मशीन लगाई, एक पैनी डाली, एक तेज हवा की आवाज सुनी।आवाज सुन कर सैकड़ों लोग इकट्ठे हो गए। उनके पैनी डालने का कमाल था।अन्त में भीड़ भगाने के लिए पुलिस आयी। फ्रैंक फ्लीयर के भाई हेनरी फ्लीयर ने च्यून्गम में एक स्वादिष्ट रस में मिलाकर उसे लोकप्रिय  बनाने मेंअपना योगदान दिया। उसने चिकलेट भी तैयार किया। बबल गम का खूब उत्पादन हुआ। अब चिकली का प्रयोग च्यून्गम में नहीं किया जा रहा है।पालि विइनायल एसिटेट का प्रयोग किया जाता है।जो स्वादहीन,गन्धहीन,प्लास्टिक जैसा होता है। शुरू में में यह गुलाबी रंग का होता था। इसीलिए गुलाबी रंग का बबलगम आज भी काफी लोकप्रिय है। 

बच्चों के खाने-पीने की कहानी और अविष्कार

फ़्रेंच फ़्राइज़- 1830ई0मे बेल्जियम में एक दिन के एक  रसोइया,रसोई घर में खाना बनाने में व्यस्त था। वह आलू के पतले पतले लम्बे टुकड़े काट रहा था और उनको दूसरे वर्तन में रखने जा रहा था। उसने गलती से कटे हुए आलुओं को गर्म घी वाले पैन में डाल ‌दिया। रसोइये ने सोचा वह उन्हें फेंक दिया देगा और दूसरे आलू काट लेगा पर रसोई घर में आलू थे ही नहीं । अतः उसने सोचा इससे तो अच्छी खुशबू आ रही है, तुरन्त उसने विवेक से काम लिया उसने उस में नमक काली मिर्च मिलाकर उसे अतिथियों के सामने पेश कर दिया। उन लोगों ने उसे बहुत ही स्वाद से खाया। उसी के बाद कटे  एवं तले हुए आलुओं को खाने क रिवाज हो गया। लोग उन्हें फ्रेचफ्राइज के नाम से पुकारने लगे । 

 पिट्जा– पिट्जा के बारे मै लोगों को भ्रम है कि यह इटली का व्यन्जन है। पर प्राचीन काल में इस का अविष्कार यूनानियों ने किया था। वे ब्रेड पर सब्जियों और मसाले अन्य पदार्थ व  चटनी।आदि डालकर,सजाकर खाते थे।1889 में इस में टमाटर भीडाला जाने लगा। राफेएस्पोसिटी नेइटली की महारानी मंगेरिता के सम्मान में विशेष पिट्जा तैयार किया था। इटली के झंडे के दो रंगों  हरा‌,तथा सफेद कों दर्शाने के लिए चीज़  और बेसिल को डाला गया। लाल रंग का टमाटर डालकर कर,रंग विरंगा कर पिट्जा को सजा दिया।तब से आज तक यह सब्जियों और चीज़ युक्त पिट्जा बहुत ही लोकप्रिय हैं

पॉप कॉर्न- पॉप कॉर्न आदि काल से खाया जा रहा हूं। विश्व के अनेक देशों में पॉप कॉर्न के दाने अनेक रूपों में चुने जाते है और बहुत चाव से खाये भी जाते हैं। जैकब बेरेसिन नमक एक  व्यक्ति फिलाडेल्फिया के हाउस  में काम करता था अतिरिक्त धन कमाने के लिए उसने मध्यानरत में  उसने पॉप कॉर्न तथा अन्यखाद्य पदार्थों को बेचने का काम शुरू कर दिया था ।धीरे-धीरे फिलाडेलफा के सभी। थियटरों  के मध्यांतर में बिकने लगा ।यह व्यापार तेज़ी से बढ़ने लगा। गर्म हवा में पके या  माइक्रोवेव ओवन से पके,यह लोगों का प्रिय खाद्य पदार्थ बन गया ।

 सैन्डविच- अठारहवीं सदी  में इंग्लैंड में जॉन मोटेन्गू नामक नामक एक जुवारी था। वह घन्टा जुवां खेला करता था। और खाना पीना सब भूल जाता था ।1762 में एक दिन वह जुवां खेलने में इतना मग्न हो गया था कि उसने चौबीस घंटे तक  कुछ नहीं खाया था। उसको ताश छोड़ ने का मन नहीं कर रहा था अतः उसने अपने नौकर से कहा कि मांस का एक टुकड़ा और दो ब्रेड के टुकड़े उसे लाकर दे उसने दो ब्रेड के टुकड़ों के बीच में मांस के टुकड़े को रखा और उसे एक हाथ से पकड़ लिया और दूसरे हाथ ताश खेलने लगा। अब मोटेंगू के दोस्तों ने यह देखा तो उन्होंने ने भी वही किया।इस तरह मोटेन्गू सैन्डविच का अविष्कारक बन गया ।सैन्डविच आज के समय में बहुत लोकप्रिय हो गया है।

हैम बर्गर- जल्दी से उपलब्ध हो जाने वाले खाने में सबसे लोकप्रिय अगर कोई खाद्य पदार्थ है तो वह है हैमबर्गर सैकड़ों वर्ष पहले मंगोलिया और तुर्क जन जाति के लोग जो तातार कहलाते थे ,निम्न कोटि के मांस को छोटे छोटे टुकड़े करवाते थे क्योंकि इसे निगलने में दिक़्क़त नहीं होती थी। चौदहवीं सदी में जर्मनी में लोग मांस के छोटे छोटे टुकड़े कर नमक और। कालीमिर्च  लगा कर खाने लगे ।हैम बर्गर शहर में शुरू हुआ और यह व्यंजन शहर में हैमबर्गर सटीक के नाम से  लोकप्रिय हो गया।जब सन् 1880 में अनेक  जर्मनी उत्तरी अमेरिका आने  लगे   और बसने लगे तब उनके  साथ आया यह व्यंजन भी लोक प्रिय होने लगा। पर बाद में जब( ब्रेड जैसे) बन का अविष्कार किया गया था तब मांस के टुकड़ों को बन के बीच में रख कर खाया जाने लगा। 1904 में सेंटलुई  विश्व मेले में यह व्यंजन काफ़ी लोकप्रिय हुआ।और यह बन मांस के साथ और सलाद के साथ हैमबर्गर कहलाया और पूरे विश्व में बहुत प्रसिद्ध हो गयी ।

बच्चों के खाने-पीने की कहानी और अविष्कार

 कार्नफ्लैक्स- बच्चे, बूढ़े और परिवार के सभी सदस्यों को सुबह के समय दूध में कार्न फ़्लेकै्स खाना पसंद होता हैं । यह कुरकुरे, स्वादिष्ट और पौष्टिक होता हैं। क्लास बन्धुओं ने इस का अविष्कार करके लोकोंपयोगी बना कर बहुत बड़ा योगदान  दिया है ।उन्नीसवी सदी में  डा. जॉन हार्वे कैलॉग नामक डा.ने बैटल क्रीक मिशिगन ने स्वास्थ्य गृह स्थापित किया। यहाँ रहने वाले मरीज़ों को डा.के स्वास्थ्य नियमों के साथ अनुशासन में रहना पड़ता था। मरीज़ों को शाकाहारी व्यंजन बेस्वाद लगता था। वे अपने भाई कीथ के साथ  रसोई में जाते थे,और तरह-तरह के प्रयोग करते थे कि मरीज़ों को दिया जाने वाला खाना,नाश्ता उनको स्वादिष्ट लगे और लोग रूचि से खायें ।

 एक बार  कि बात है वे रसोईघर  में मक्का उबाल रहे थे और वे उसके साथ कुछ करते, उनके लिए बुलावा आ गया वे चले गये। दो दिन बाद जब वे वापस आये और वे किचन में गए तब उन्होंने  उबालें हुए मक्कों को रोलर में दबाया और ओवन में सुखा दिया। उन्होंने पाया कि कुरकुरे फ़्लेक्स तैयार हो गए हैं। क्लॉक बन्धुओं ने उसके उत्पादन और इसकी बिक्री पर समय -समय पर सुधार किए धीरे-धीरे  कॉर्नफ्लैक्स की खपत पूरे विश्व में होने लगी। और केलॉग बन्धुओं का नाम मश्हूर हो गया।

पोटैटो चिप्स,वेफर्स,आलू के चिप्स- न्यूयार्क शहर के साराटोगा स्प्रिंग  स्थित  मून लेक लॉज में  क्रम रसोईया था। 1853 में एक दिन एक   ग़ुस्सैल रसोईया आया  उसने फ़्रेंच आलू की फ़रमाइश की और उसने यह भी कहा कि आलू पतले,नमकीन और कुरकुरे होने चाहिए। क्रम ने पतले आलू काट कर तले और ग्राहक न दो बार लौटा दिए । परेशान क्रम ने पतले आलू काट कर उन्हें पानी में भिगो दिया कर रख दिया। सबसे बाद में उन्हें उन आलुओं का पानी जब सूखा दिया तब तला और  ऊपर से नमक डाल कर ग्राहक के सामने पेश किया ।ये चिप्स  अत्यंत कुरकुरे , और  स्वादिष्ट होगए  थे। वह ग्राहक भी य खुश हुआ और लोगों को भी पसन्द आया।अगले दिन जार्ज क्रम ने दिन उन्हें  सराटोगा चिप्स के नाम से तैयार करना शुरू कर दिया । वे लोक प्रिय होते चले गये और पोटैटो चिप्स के नाम से  पूरे संसार में बिक रहे हैं। पोटैटो चिप्स के अविष्कार के बाद उसके  पाक करने की कला का विकास हुआ। इस यात्रा में बहुत सी कठिनाइयों भी आयीं । अन्त में एक दिन ऐसा भी ही आ गया  कि प्रॉक्टर एन्ड गैम्बल कम्पनी ने इसके पैकिंग का रास्ता निकाल ही लिया । 

 कहानी इस तरह से है कि एक दिन उनका कर्मचारी पेड़ के नीचे खड़ा था। उसने देखा कि पेड़ से पत्ते गिर रहे हैं पर हरे पत्ते तो नहीं बिखर रहे हैं पर सूखे पत्ते  बिखर रहे थे। उसके मन में  एक विचार उपजा।उन दिनों आलू को काट कर सूखा कर तल कर फिर पैक किया जाता था। इस प्रक्रिया को पलट दिया गया था। आलू के चिप्स  को पहले  बंद किया गया  फिर  सुखाया गय ।इससे उन्हें  पैक करना आसान हो गया था। इस प्रक्रिया से बनने वाले चिप्स को प्रिन्गल चिप्स का नाम रखा। 1920 में  इन आलू के चिप्सों को बेचने की तरकीब निकाली गयी । हरमन ले नामक एक सेल्समैन ने अपनी कार में चिप्स के बैग रख कर उन्हें बेचना शुरू किया था। खुदरा दुकान दारों ने इसे तेज़ी से ख़रीद ना शुरू किया । तो उसने फ्रिटोले नाम से अपनी कम्पनी शुरू कर दिया।अमेरिका, कनाडा, तथा संसार के सभी देशों के लोग इसे बहुत पसन्द करते हैंl

आइसक्रीम – आइसक्रीम की शुरुआत कब और कैसे हुई यह तो निश्चित तौर पर नहीं बताया जा सकता है पर दो हज़ार साल पहले रोमन सम्राट नीरो ने अपने गुलामों से कहा कि वे पास के पहाड़ों से बर्फ़ ले आवे। नीरो ने उस बर्फ़ में  फलों का रस, शहद आदि मिलाया और उसका आनन्द लिया था । धीरे धीरे लोग बर्फ़ में अन्य चीजों को मिला कर खाने और आनन्द लेने लगे। सन्1600 तक आइसक्रीम अत्यंत लोकप्रिय हो गई थी ।इसके बाद अविष्कारक अनेक प्रकार के प्रयोग करके, इसे नया, आकार और स्वाद देकर लोकप्रिय बनाते चले गये ।एक बार रॉबर्ट ग्रीन नामक व्यक्ति ने जो पार्टियों में वेटर का काम करता था , मजबूरी वश,एक प्रयोग कर डाला । उसने क्रीम और कार्बोनेटेड पानी मिलाकर, एक पानी बनाया था । यह पेय एक शताब्दी तक काफ़ी लोकप्रिय रहा था। एक पार्टी में उस पेय के लिए क्रीम कम  पड़ गयी। ग्रीन में उसकी जगह  वनीला आइसक्रीम डाल दी। आइस क्रीम एक फ़ोम के रूप में गिलास के ऊपर तक भर गया। तथा घोल अत्यंत स्वादिष्ट था,और धीरे धीरे वह लोकप्रिय होगयी। इसे आइसक्रीम सोडा के रूप में जाना जाने लगा। इसी तरह मजबूरी वश किये गये अन्य प्रयोगों ने अन्य आइस-क्रीमों कोजन्म दिया।

सि्मथसन नामक व्यक्ति के पास एक छोटा सा रेस्टोरेन्ट था,इसमें लोगों आइसक्रीम खाने के लिए आते थे।एक रविवार के दिन उसके आइसक्रीम कम पड़ गयी ।तब दूसरी चीजें जैसे फल, और विभिन्न प्रकार की चॉकलेटे, क्रीमों आदि काफ़ी थी। रविवार को आइसक्रीम की आपूर्ति नहीं होती थी अत: इसलिए स्मिथसन ने आइसक्रीम की मात्रा कम कर दिया तथा उसके ऊपर चॉकलेट सिरप,फल तथा दूसरी गाढ़ी क्रीम डालना शुरू कर दिया। ग्राहकों के तारीफ़ पर उसका नाम संडेआइसक्रीम रख दिया।ईसाईयों ने इसका विरोध किया तब स्मिथसन्  ने इसके सन्डे की स्पेलिंग बदल दी ।

कुरकुरे कोन में आइसक्रीम का अविष्कार भी मजबूरीवश हुयी। सन् 1904 में सेंटलुई में खाद्य पदार्थ की वस्तु के काउंटर पर अग़ल बग़ल खड़े थे। एक पेपर की प्लेटों आइसक्रीम बेचरहा था , दूसरा वैफल जिस पर चीनी के दाने चिपके हुए थे।अगस्त का महीना था। आइसक्रीम धड़ा-धड़  बिक रही थी। और वैफल की दुकान पर सन्नाटा पसरा हुआ था। तभी पेपर प्लेट कम पड़ गयी और आइसक्रीम वाले ने सोंचा  कि कॉउन्टर बन्द करना पड़ सकता है। तभी बैफल वाला उसकी मदद को  खड़ा हो गया । उसने वैफल का कोन बनाया और उसमें आइसक्रीम भर भर कर बेचने लगा । लोगों को कुरकुरा वेफल आइसक्रीम के साथ बहुत पसन्द आया ।

     सन् 1920 तक एक तिहाई आइसक्रीम कोन के साथ बिकने लगी-  एक बार क्रिश्चियन नेलसन नामक एक व्यक्ति आयोवा स्थित अपनी दुकान में आइसक्रीम और चॉकलेट बेच रहा था । एक दिन एक बच्चा दुकान में आइसक्रीम लेने आया । पर अचानक अपना इरादा बदल दिया और चॉकलेट माँगने लगा । पर नेलसन को लगा कि  बच्चे को आइसक्रीम और चॉकलेट दोनों ही देकर संन्तुष्ट करना चाहिए । इसलिए उसने आइसक्रीम की एक स्लाइस काटी और उसके दोनों तरफ़  चॉकलेट की पतली पतली परत काट कर चिपका दिया । बालक को आइसक्रीम बहुत पसन्द आयी। उसने इस दिशा में बहुत से प्रयोग कर डाले, ताकि आइसक्रीम में चॉकलेट अच्छी तरह से चिपक जाये। अचानक से एकदिन  एक सेल्स मैंन  ने उसे  सलाह दिया कि वह  कोको वाटर का प्रयोग करें। तब नेलसन ने तरह तरह के प्रयोग किए । सन्1920 में उसने एक रात आइसक्रीम की एक स्लाइस चॉकलेट की एक के मिश्रण  में डाली  चॉकलेट ठन्डी होकर आइसक्रीम के चारों तरफ़ चिपक गयी। इस का व्यवसाय कर वह बहुत ही जल्दी एक धनवान व्यक्ति बन गया। बच्चों के खाने-पीने की कहानी और अविष्कार