मुसलमानों के नाम पर राजनीति करने वाले सबक लें

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  • भारत में तो मुसलमानों के बीच कोई फर्क नहीं समझा जाता। असदुद्दीन ओवैसी बताएं कि अफगानिस्तान में तालिबानी लड़ाके किन मुसलमानों को मार रहे हैं।
  • अफगानिस्तान में अराजकता का माहौल। लड़कियां घरों में दुबकी। भारत में मुसलमानों के नाम पर राजनीति करने वाले सबक लें।

एस0 पी0 मित्तल

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी की सरकार हो या राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार या फिर उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार हो या तेलंगाना में टीआरएस की सरकार। भारत के किसी भी राज्य में किसी भी राजनीतिक दल की सरकार ने अपने प्रदेश के मुसलमानों में कोई फर्क नहीं समझा। अल्पसंख्यक वर्ग खास कर मुसलमानों के लिए जो भी कल्याणकारी योजना बनी उसका लाभ संपूर्ण मुसलमानों को समान रूप से दिया गया। किसी भी सरकार ने किसी मुसलमान से यह नहीं पूछा कि वह शिया है या सुन्नी। भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता है। जब भारत में 23 करोड़ मुसलमानों को एक समान माना जाता है, जब चार करोड़ की आबादी वाले अफगानिस्तान में तालिबानी लड़ाके किन मुसलमानों को मार रहे हैं? इस सवाल का जवाब भारत में मुसलमानों के सबसे बड़े पैरोकार ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को देना चाहिए।

May be an image of 6 people, people standing and text that says 'काबुल में तालिबानियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते अफगान नागरिक'

ओवैसी भी तो अपने हैदराबाद से लेकर पश्चिम बंगाल और अब उत्तर प्रदेश के मुसलमानों को एकजुट कर रहे हैं। स्वयं को भारत के मुसलमानों का सबसे बड़ा पेरोकार बता कर चुनाव में मुसलमानों के वोट मांगने में भी ओवैसी कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। ओवैसी ने भी कभी मुसलमानों में भेद नहीं किया। जब भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में मुसलमानों के बीच कोई भेदभाव नहीं है तो फिर अफगानिस्तान में तालिबानी लड़ाके किन मुसलमानों को मौत के घाट उतार रहे हैं? आखिर तालिबान की ऐसी कौन सी सोच है जो मुसलमानों को ही मारने की सीख देती है। असदुद्दीन ओवैसी जब भारत में मुसलमानों को वोट के खातिर एकजुट कर सकते हैं तो अफगानिस्तान में मुसलमानों को क्यों नहीं बचाते? क्या अफगानिस्तान के मुसलमान, मुसलमान नहीं है? ओवैसी जैसे नेताओं को भारत में तो मुसलमानों की एकता पसंद है, लेकिन अफगानिस्तान में नहीं। असल में यही सोच भारत के लिए खतरनाक है।

भारत में शायर मुनव्वर राणा जैसे मुस्लिम प्रतिनिधि खुलकर तालिबान की प्रशंसा कर रहे हैं। सवाल उठता है कि जब भारत के मुसलमानों के बीच तालिबान सोच मजबूत होगी तो फिर ओवैसी, मुनव्वर राणा जैसे नेताओं का क्या होगा? इंसान, इंसान होता है। इंसान का धर्म कोई भी हो, लेकिन उसे जीने का अधिकार हैं। अफगानिस्तान में हर नागरिक को जीने का अधिकार है। दुनिया के हर नागरिक के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए। इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि अफगानिस्तान में लड़कियां घरों में दुबक गई है। लड़कियों का कहना है कि तालिबानियों के हाथ लगने से पहले वे खुदकुशी कर लेंगी। अफगानिस्तान में चारों तरफ अराजकता का माहौल है। तालिबानियों ने भले ही अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया हो, लेकिन अब अफगानिस्तान में ही तालिबान को चुनौती मिल रही है। तालिबान के कब्जे के बाद जो पाकिस्तान और चीन खुश हो रहे थे, अब उन्हें भी समझ नहीं आ रहा है कि आगे कैसे बढ़ा जाए। खुद तालिबान के अंदर भी कई गुट हो गए हैं। यदि अफगानिस्तान के हालात नहीं सुधरे तो सबसे बड़ा खामियाजा पाकिस्तान को भुगतना पड़ेगा, क्योंकि मौजूदा प्रधानमंत्री इमरान खान ने पाकिस्तान में तालिबान को काफी मजबूत किया है। पाकिस्तान में भी बड़ी संख्या में तालिबानी सोच के लोग हैं।