….. “आईना” …..
आज धर्म के बिना हम आजीवन जी सकते हैं लेकिन ज्ञान, विज्ञान और संविधान के बिना एक दिन भी नहीं।
हमने बचपन में पढ़ा कि पहिये का अविष्कार हुआ, साइकिल का अविष्कार हुआ, कार और हवाई जहाज इत्यादि का अविष्कार हुआ। यानि इनकी रचना या उत्पत्ति ईश्वर, अल्लाह, गॉड, भगवान द्वारा नहीं की गई। विश्व इतिहास में कम से कम इन घटनाओं का सर्वप्रथम वर्णन तो स्पष्टतः है ही। एक कुम्हार द्वारा मिट्टी का पहिया तथा एक लोहार द्वारा साइकिल बनाना खोज, अविष्कार कहलाई।
आज भारत में एलोपैथी बनाम आयुर्वेद की बहस छिड़ी हुई है। या कहूँ कि छेड़ दी गई है। मैंने पहले भी कहा और आज भी कहता हूं कि एलोपैथी और आयुर्वेद दोनों ही कारगर हैं, दोनों ही जरूरी है लेकिन एलोपैथी आज बहुत आगे की पद्धति हो चुकी है। यह भारत का ही विषय नहीं विश्वभर का प्रयास है। आयुर्वेद को भी प्रयास करने चाहिए बजाय बहस के।
आयुर्वेद और एलोपैथी में चल रही यह बहस ही निरर्थक है और समझने की कोशिश करें कि निरर्थकता पर रुचि इस देश में किसको रही है? अव्यवस्था, कुव्यवस्था, महंगाई, भ्रष्टाचार का मामला सरकार, सिस्टम का है। एलोपैथी में भी मुफ्त इलाज़ सम्भव है लेकिन उसके लिए सरकरी अस्पतालों को मज़बूत करना होगा और डॉक्टर्स को सशक्त जैसा कि असंख्य देशों में है। जिस देश में लोग निजीकरण को समर्थन करे उस देश में बहस ही हमेशा गलत विषयों पर होती रही है।
इतना कहने, लिखने,बोलने के बाद, फिर भी किसी को लगता है कि एकमात्र आयुर्वेद पद्धति ही बेहतर है और एलोपैथी बकवास, निरर्थक, निष्क्रिय। उनके लिए लिए सुझाव है कि कृपया करके आप एलोपैथी का पूर्ण बायकॉट करें। अस्पताल, डॉक्टर, दवाई से लेकर वैक्सीन और सेनेटाइज तक सबका प्रयोग छोड़ें। आपको कोई जोर,जबर्दस्ती नहीं कर सकता।
और यदि धर्म महान तथा विज्ञान व्यर्थ लगे तो विज्ञान की हर चीज का बहिष्कार करें। मोबाईल, टीवी, फ्रिज, मकान, पेन, पेंसिल, सुई, तागे से लेकर गाड़ी, पंखा, जीन्स, जूत्ते, चश्मे सबकुछ का त्याग करें और धोती, कुर्ता,चादर खटिया पर आ जाएं। इससे भी और ज्यादा पहले की चीजें यदि बेहतर लगे तो एक काम करो गुफाओं, पहाड़ों, जंगलों में चढ़कर, पेड़ों की छाल, जानवरों की खाल ओढ़कर उलुलुलुलुलुलु करें।