शहरों में सड़कों पर पेड़ लगाए जाएं

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श्याम कुमार

पब्लिक में यह मजाक प्रचलित है कि आजादी के बाद उत्तर प्रदेश की सरकारों द्वारा प्रतिवर्ष जितनी संख्या में पेड़ लगाने का दावा किया जाता रहा है, उसके अनुसार तो अब प्रदेश में रत्तीभर ऐसी जगह नहीं बची है, जहां पौधरोपण हो सके। तब सवाल उठता है कि हर साल वर्षाकाल में लाखों-करोड़ों की संख्या में पेड़ लगाने का जो दावा किया जाता है, वे पेड़ आखिर कहां लगते हैं! जाहिर है कि प्रतिवर्ष ‘वन महोत्सव’ हमारी नौकरशाही के लिए ‘भ्रष्टाचार महोत्सव’ होकर रह जाता है। बताया जाता है कि प्रतिवर्ष जितने पेड़ लगाने का दावा किया जाता है, वे या तो यथार्थ में लगते ही नहीं और जो लगते भी हैं, उनमें से अधिकतर जीवित नहीं रह पाते हैं। वन विभाग के ईमानदार नौकरशाह तो बताते हैं कि प्रायः एक ही स्थान पर हर साल पौधरोपण का कार्य हो जाता है।


वन विभाग ही नहीं, सभी सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार नीचे से ऊपर तक इतनी गहराई में घुस चुका है कि उस पर काबू पाना अब किसी के वश का नहीं है। कुछ समय पूर्व एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के यहां करोड़ों की सम्पत्ति बरामद हुई थी। केवल वन विभाग के लोगों की व्यापक छानबीन की जाय तो भ्रष्टाचार के आश्चर्यजनक उदाहरण सामने आएंगे। किन्तु मुश्किल यह है कि व्यापक कार्रवाई की जाय तो हड़तालें होने लगती हैं, जिन्हें विपक्षी दलों द्वारा अनुचित शह दी जाती है। नौकरशाही की कामचोरी एवं भ्रष्टाचार के विरुद्ध कठोर कदम उठाने पर नौकरशाहों ने एक बार राजस्थान में अशोक गहलोत की पिछलीवाली सरकार तथा एक बार हिमांचल प्रदेश में शांता कुमार की सरकार गिरवा दी थी।

यह बड़ी अच्छी बात है कि योगी सरकार पेड़ लगाने के मामले में बहुत रुचि ले रही है। कोरोना की महामारी से एक लाभ यह हुआ कि लोगों को ऑक्सीजन का महत्व समझ में आ गया तथा वास्तविकता यह है कि ऑक्सीजन के सबसे आसान स्रोत वृक्ष हैं। इसीलिए हमारी प्राचीन संस्कृति में वृक्षों को देवता का रूप माना गया है। पीपल का पेड़ तो ऑक्सीजन का भंडार होता है। इसी कारणवश पुराने समय में पीपल, बरगद, नीम, पाकड़, सागौन, शीशम, आम आदि के पेड़ लगाए जाते थे। फलों के पेड़ लगाने का उद्देश्य यह भी होता था कि उनसे ऑक्सीजन तो मिलेगी ही, साथ ही आम लोगों को बड़े पैमाने पर स्वास्थ्यवर्धक फल भी मिल जाएंगे।


दुर्भाग्यवश प्रतिवर्ष पेड़ों को भारी क्षति पहुंचाई जाती है, किन्तु दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं होती है। माफियाओं द्वारा पेड़ों की अवैध कटान ऐसी मुसीबत बनी हुई है, जिससे हरियाली का बहुत विनाश हो रहा है। आंधीतूफान में हर साल हजारों पेड़ धराशायी हो जाते हैं, जिनकी जगह नए पेड़ नहीं आरोपित किए जाते हैं। जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकारें आई हैं, देश में पहली बार चौड़ी सड़कों का जाल बिछाया जाना शुरू हुआ। लेकिन उन सड़कों के निर्माण में लाखों पेड़ों की बलि चढ़ गई, जो अभी भी जारी है। विदेशों में पेड़ काटने के बजाय उन्हें स्थानांतरित करने की वैज्ञानिक प्रक्रिया अपनाई जाती है। हमारे यहां भी ऐसा हो सकता था, लेकिन अब तक नहीं किया गया। प्रतिवर्ष होलिकादहन में भी पेड़ों को बहुत नुकसान पहुंचाया जाता है।


उत्तर प्रदेश को यदि हरियाली और ऑक्सीजन से परिपूर्ण करना है तो लगाए जाने वाले पेड़ों की रक्षा के लिए कड़े कदम उठाने होंगे। फर्जी पौधरोपण पर पूरी तरह अंकुश लगाना होगा। इसके लिए मुख्यमंत्री को ऐसा तंत्र बनाना चाहिए, जिसके जरिए प्रत्येक पेड़ की रक्षा हो सके। यदि पेड़ जीवित नहीं रह पाए तो उन्हें लगाने से क्या लाभ! आरोपित किए गए पेड़ अगर जीवित नहीं रहते हैं तो उस शिथिलता के लिए जिम्मेदार लोगों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की व्यवस्था बहुत जरूरी है। इस मामले में भी ‘भय बिनु होय न प्रीति’ का सिद्धांत याद रखना चाहिए।


शहरी क्षेत्र में प्रदूषण बहुत बढ़ता जा रहा है, इसलिए वहां वृक्षारोपण पर विशेष बल दिया जाना चाहिए। अभी तो नौकरशाही विभिन्न स्थानों पर समूह में पेड़ लगा देती है, लेकिन शहरों में चूंकि ऐसे स्थान कम उपलब्ध होते हैं, अतः शहरों के लिए ‘वन महोत्सव’ निरर्थक सिद्ध होता है। शहरों में सड़कों के किनारे पेड़ लगाए जाने पर विशेष बल दिए जाने की आवश्यकता है। प्रयागराज का सिविललाइन क्षेत्र कभी पेड़ों से अटा पड़ा था। हर तरफ हरियाली ही हरियाली दिखाई देती थी। लेकिन धीरे-धीरे पेड़ों का विनाश होता गया और सिविललाइन की वह हरीभरी सुंदरता नष्ट हो गई। कई वर्ष पहले प्रयागराज में प्रभुनाथ मिश्र विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष होकर आए थे। वह मेरे पुराने परिचित थे। मैं उनसे मिलने गया तो मैंने उनसे एक चीज भीख में देने का अनुरोध किया। उन्होंने आश्चर्यपूर्वक जब पूछा तो मैंने उनसे कहा कि वह सिविललाइन में इतने पेड़ लगवाएं कि वहां फिर पुरानी-जैसी हरियाली हो जाय। मेरे अनुरोध पर प्रभुनाथ मिश्र ने सिविललाइन में जो पेड़ लगवाए, वही आज वहां की शोभा बढ़ा रहे हैं।

शहरों में सड़कों के दोनों किनारों पर सघन पौधरोपण होना चाहिए। इससे शहरी क्षेत्र में प्रदूषण में कमी आएगी तथा पर्यावरण सुधरेगा। वहां पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन की आसानी से उपलब्धता भी बढ़ जाएगी। इसके साथ शहरों में सड़कों की सुंदरता में वृद्धि होगी। मैं पिछले कई दशकों से मांग कर रहा हूं कि शहरों में सड़कों को विभाजित करने के लिए बीच में विभाजक के रूप में पक्की पटरी नहीं बनाई जाय और न विभाजक रेलिंगें लगाई जाएं। इनके बजाय कतार में पेड़ लगाकर सड़कों को आने-जाने के लिए दो हिस्सो में बांटा जाय। इससे सड़कों की सुंदरता तो बढ़ेगी ही, पक्की पटरियों एवं रेलिंगों की हर साल मरम्मत और रंगाई पुताई पर होने वाला खर्च बचेगा। वर्तमान समय में यह भ्रष्टाचार किया जाता है कि उन पक्की पटरियों एवं रेलिंगों की मरम्मत व रंगाई-पुताई पर खर्च के नाम पर भारी धनराशि हड़प ली जाती है तथा पटरियां व रेलिंगें अधिकतर पूर्ववत बदरंग दिखाई देती हैं।


सरकार को एक काम और करना चाहिए, जिससे उसके हरियाली-अभियान को बहुत लाभ होगा। प्रतिवर्ष सरकारी विभागों द्वारा तथा निजी कार्यालयों, शिक्षण-संस्थाओं आदि द्वारा जितने भी पेड़ लगाए जाएं, प्रत्येक पेड़ का समुचित रिकाॅर्ड रखने के लिए किसी अलग तंत्र को जिम्मेदारी सौंपी जाय। वह तंत्र फर्जी काम एवं भ्रष्टाचार के कृत्यों से मुक्त रहकर हरियाली-वृद्धि के अभियान की कड़ाई से निगरानी करे। इसके अलावा, जो भी पेड़ लगाए जाएं, उनका पूरा ब्योरा अखबारों में प्रकाशित किया जाना चाहिए तथा जनता से यह अनुरोध किया जाना चाहिए कि वह पेड़ों की स्थिति की निरंतर जानकारी सरकार द्वारा बनाए गए निगरानी-तंत्र को दे। जिन फोन नंबरों पर जनता जानकारी दे सके, वे नंबर भी अखबारों में प्रकाशित किए जाएं। पेड़ों की रक्षा का दायित्व भारतीय जनता पार्टी के लोगों को भी सौंपा जा सकता है।