सामाजिक भेदभाव के विरूद्ध संघ

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सामाजिक भेदभाव के विरूद्ध संघ

समाजिक विषमता पर प्रहार जरूरी,सामाजिक भेदभाव के विरूद्ध संघ।आज संघ के मुखिया को ही लोग गलत ठहरा रहे हैं। डा. मोहनराव भागवत ने यही कहा कि कोई भी ऊंचा नीचा नहीं है। शास्त्रों का आधार लेकर पंडित लोग जो जाति आधारित ऊंच नीच की बात करते हैं वह झूठ है। इतने से ही मानो बवंडर आ गया। सत्य तो कड़ुवा होता है।

बृजनन्दन राजू


जातिगत विषमता भारत की पुरानी समस्या है। हिन्दू समाज में जाति के आधार पर गत तीन हजार वर्षों से ऊंच नीच का भाव आया। समय-समय पर संत महापुरूषों ने भेदभाव को दूर करने और समाज में समरसता लाने के अनेक प्रत्यन भी किये। कुछ हद तक वह सफल भी हुए। फिर भी यह समस्या पूर्णतः समाप्त नहीं हुई है। समाज का मन अभी भी जातिगत विषमता की भावनाओं से जर्जर है । जन्म से विषमता किसी शास्त्र में नहीं है फिर भी जाति के आधार पर भेदभाव आज भी हो रहा है। समाज जीवन से भेदभाव तथा अस्पृश्यता जैसी कुप्रथा जड़ मूल से अविलम्ब समाप्त होनी चाहिए।


स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि जाति प्रथा मनुष्य निर्मित है। इसका ईश्वर से कोई संबंध नहीं है। कृत्रिम जाति व्यवस्था ही हमारी एकता अखण्डता में बाधक है। महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी भी कहते थे कि अस्पृश्यता शास्त्र सम्मत नहीं हैं। यह कुरीति है। मालवीय जी ने हजारों हरिजन बन्धुओं को गायत्री मन्त्र की दीक्षा दी थी। जाति व्यवस्था मानव निर्मित है। बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर भी यही मानते थे। अम्बेडकर ने लिखा है कि वैदिककाल में छुआछूत नहीं थी डा. अम्बेडकर ने अपने गहन अध्ययन के आधार पर यह बात समाज के समाने रखी थी कि वेदों के रचयिता केवल ब्राह्ाण ही नहीं थे। सभी वर्ग के लोगों ने वेदों की ऋचाएं लिखी हैं।

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डा. हेडगेवार ने भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, आचार्य चाणक्य, आदिशंकराचार्य, गुरू गोविन्द सिंह,महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी और विवेकानन्द के पथ का अवलम्बन करते हुए संघ की स्थापना की। संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार कहा करते थे – हमें न तो अस्पृश्यता माननी है और न उसका पालन करना है। संघ शाखाओं और कार्यक्रमों की रचना भी उन्होंने इसी आधार पर की। डा.हेडगेवार ने कहा था कि हिन्दू जाति का सुख ही मेरा और मेरे कुटुम्ब का सुख है। हिन्दू जाति पर विपत्ति हम सभी के लिए महासंकट है। हिन्दू जाति का अपमान हम सभी का अपमान है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्थापना काल से ही छुआछूत और ऊंच-नीच आदि भेदों को अमान्य करता आया हैं।


संघ संस्थापक डा. हेडगेवार की ही तरह बाबा साहब डा. भीमराव आम्बेडकर की भी धारणा यही थी कि समाज में समरसता निर्माण हुए बगैर सामाजिक समता स्थापित नहीं हो सकती। संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरूजी कहा करते थे कि अस्पृश्यता सवर्णों के मन का भाव है। श्रीगुरूजी ने केवल सभी शंकराचार्यों को एक मंच पर लाने का महान कार्य किया बल्कि विश्व हिन्दू परिषद के मंच से अस्पृश्यता को धर्मविरोधी घोषित कर हिन्दू समाज को हिन्दवः सोदरः सर्वे , न हिन्दू पतितो भवेत का संदेश संत धर्माचार्यों दिया।यही आशय संघ के तृतीय सरसंघचालक बाला साहब देवरस ने भी 08 मई 1974 को पूना की ‘वसंत व्याख्यानमाला’ में व्यक्त किया था।बालासाहेब देवरस ने में कहा था कि मुट्ठीभर मुसलमानों तथा अंग्रजों ने इस देश पर राज किया। हमारे अनेक बांधवों का धर्मांतरण किया तथा हम लोगों के बीच ब्राह्मण-गैर ब्राह्मण, सवर्ण-अस्पृश्य आदि भेद पैदा किये। इस सम्बन्ध में केवल मुगलों और अंग्रेजों को दोष देकर हम अपने दायित्व से मुक्त नहीं हो सकते। दलित बंधु किसी की कृपा नहीं चाहते हैं, वे बराबरी का स्थान चाहते हैं और वह भी अपने पुरुषार्थ से । सभी प्रकार की सुविधायें ओर अवसर इन्हें मिलना चाहिए।

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संघ के चतुर्थ सरसंघचालक प्रो. राजेन्द्र सिंह रज्जू भैया भी सामाजिक समरसता के पक्षधर रहे। वह कहते थे दलित वर्ग का उत्थान भगवान की पूजा से अधिक महत्व का है। सब भगवान के पुत्र हैं। जिस समाज ने अंग्रेजों के विरूद्ध और मुगलों के विरूद्ध लड़ाई लड़ी वह आज उपेक्षित है। समाज के उस वर्ग को सेवा की आवश्यकता है। रज्जू भैया ने बड़ी संख्या में सेवाकार्यों की शुरूआत मलिन बस्तियों में करवाई। रज्जू भैया कहते थे अस्पृश्यता दोष है। इसका परिमार्जन होना चाहिए। रज्जू भैया के अलावा शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जिसने राजनीति में न रहते हुए राजनीति को सबसे अधिक प्रभावित किया।


आपातकाल हटने के बाद जनता पार्टी की सरकार बनने पर बाबू जगजीवन राम को उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री बनवाने का श्रेय प्रो.रज्जू भैया को ही जाता है। रज्जू भैया ने भाजपा को राजनीतिक अस्पृश्यता से ऊपर उठकर काम करने की सलाह दी। उत्तर प्रदेश में भाजपा बसपा का गठबंधन उनके प्रयास से ही हुआ था। वह कहते थे कि जब हम हिन्दू एकता की बात करते हैं तो राजनीति में दलितों और पिछड़ों को वरीयता देनी चाहिए। जब महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व का विषय आया तो गोपीनाथ मुंडे,मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री बनाने का समय आया तो उमा भारती, उत्तर प्रदेश में गठबंधन की बात आयी तो मायावती का नाम आगे किया गया। संघ के कारण ही एक दलित की बेटी को उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का मुख्यममंत्री बनाया गया। यह परम्परा भाजपा में चल रही है। आज अनुसूचित समाज के सबसे अधिक सांसद व विधायक भाजपा में हैं।

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद और वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू संघ की पसंद से ही राष्ट्रपति बने। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हों या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जो धर्म संस्कृति के साथ-साथ अंतिम व्यक्ति के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं उनको संघ ने ही आगे बढ़ाया।आज संघ के मुखिया को ही लोग गलत ठहरा रहे हैं। डा. मोहनराव भागवत ने यही कहा कि कोई भी ऊंचा नीचा नहीं है। शास्त्रों का आधार लेकर पंडित लोग जो जाति आधारित ऊंच नीच की बात करते हैं वह झूठ है। इतने से ही मानो बवंडर आ गया। सत्य तो कड़ुवा होता है। अस्पृश्यता हिन्दू समाज का दोष है। इसे स्वीकार करना पड़ेगा। हमारी पीढ़ी ने दलितों पर अत्याचार नहीं किया। यह कहकर हम बच नहीं सकत। संघ सत्य को ही स्वीकार करता है।


जिन पंडितों ने कहा था कि छत्रपति शिवाजी महाराज शूद्र हैं। उनका राज्याभिषेक नहीं हो सकता। जिन पंडितों ने कहा था कि शूद्रों को वेदा का अधिकार नहीं है। इसलिए छत्रपति शाहू जी महाराज को वेद पढ़ने का अधिकार नहीं हैं। जिन पंडितों ने महामना पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा दलितों को मंत्र दीक्षा देने का विरोध किया था। जिन पंडितों ने 1978 में बतौर रक्षामंत्री बाबू जगजीवन राम द्वारा वाराणसी में सम्पूर्णानन्द की प्रतिमा का लोकार्पण करने के बाद गोबर और गंगाजल से धुलवाया था। जिन पंडितों के भेदभाव के कारण लाखों की संख्या में हिन्दुओं का धर्मान्तरण हुआ आज उसी मानसिकता के पंडित लोग डा. मोहनराव भागवत का विरोध कर रहे हैं। ये वही लोग हैं जो कहते हैं कि इन्हें ढ़ोल गंवार शूद्र पशु नारी सकल ताड़ना के अधिकारी का सही अर्थ स्वामी प्रसाद मौर्य को नहीं पता है। वही लोग सरसंघचालक की आलोचना कर रहे हैं। संघ साहसपूर्वक सत्य का सामना करता है। डा. मोहनराव भागवत ने अपने समाज की कमियों की ओर इंगित कर हमें सचेत किया है। अगर अभी भी हम नहीं जागे तो बंगाल और कश्मीर जैसी स्थिति देश के अन्य भागों में निर्माण होगी। आज कश्मीर घाटी और बंगाल की समस्या पंडितों (विद्वानों) की ही देन है।

जम्मू कश्मीर में जब महाराजा गुलाब सिंह का शासन था तब कश्मीर के मुसलमान महाराज की शरण में और प्रार्थना की मुस्लिम शासनकाल में विवशता में हमने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया है अब हम फिर से हिन्दू बनना चाहते हैं। महाराजा गुलाब सिंह ने कश्मीरी पंडितों को बुलाकर उन्हें पुनः हिन्दू धर्म में अपनाने की अपील की। कश्मीर के पंडितों ने राजा से कहा यदि कश्मीर के मुसलमानों को फिर से हिन्दू बनाया गया तो हम झेलम में डूब कर अपना प्राण त्याग देंगे और आपको ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा। राजा डर गये। मुसलमान हिन्दू न बन सके। इसी प्रकार बंगाल में कालाचंद राय नामक एक बंगाली ब्राह्मण युवक था। उस वक्त के बंगाल के नवाब की बेटी से उसका प्रयार हो गया। बादशाही की बेटी ने विवाह की इच्छा जाहिर की। कालाचंद राय ने कहा कि इस्लाम धर्म छोड़कर हिन्दू बनना पड़ेगा। नवाब की बेटी इस्लाम धर्म त्याग कर हिन्दू विधि से विवाह के लिए तैयार हो गयी। बंगाल के पंडितों को जब यह बात पता चली तो न केवल कालाचंद का विरोध किया अपितु उसे जाति से बहिष्कृत कर दिया। अपने अपमान से क्षुब्ध होकर कालाचंद राय ने इस्लाम स्वीकार कर उस युवती से निकाह करते ही उसके पिता के सिंहासन का उत्तराधिकारी हो गया। इसके बाद अपने अपमान का बदला लेने के लिए उसने पूरे बंगाल और असम को धर्मान्तरित किया और लाखों हिन्दुओं की हत्या की। इसलिए इतिहास की भूलों से सबक लेते हुए हमें अपने में सुधार करना है ताकि समर्थ स्वावलम्बी और समरस समाज को निर्माण हो सके।

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लेखक पत्रकारिता से जुड़े हैं।