राजनीति में धर्म के मूर्तिमान स्वरूप थे कल्याण

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राजनीति में धर्म के मूर्तिमान स्वरूप थे कल्याण,हिन्दू कुल गौरव जन नायक कल्याण सिंह।


    बृजनन्दन राजू


सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय रहने के कारण और वैसे भी पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने के कारण तमाम नेताओं से मिलने का अवसर मिला लेकिन पहली बार में ही जिनसे मिलने पर अपनत्व का अहसास हुआ वे थे बाबू कल्याण सिंह जी। राम मंदिर आन्दोलन के संकल्स से सिद्धि के साक्षी ही नहीं अपितु राम मंदिर आन्दोलन के नायक रहे हिन्दू कुल गौरव कल्याण सिंह का महाप्रयाण पर जाना हिन्दू समाज की अपूर्णीय क्षति है। राजनीति में वह धर्म के मूर्तिमान स्वरूप थे। उनका जन्म अलीगढ़ जिले की अतरौली तहसील के मढ़ौली गांव में 05 जनवरी 1932 को हुआ था। पढ़ाई के दौरान उनका संपर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से हुआ। संघ के प्रचारक रहे ओम प्रकाश अतरौली में तहसील प्रचारक थे उसी समय उन्होंने कल्याण सिंह को स्वयंसेवक बनाया। कल्याण सिंह संघ के तहसील कार्यवाह रहे। बाद में जनसंघ के संगठन मंत्री रहे। ओमप्रकाश बाद में उत्तर प्रदेश के क्षेत्र प्रचारक भी रहे। कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री बनवाने में उनकी ही भूमिका रही। कल्याण सिंह उस पीढ़ी के नेताओं में थे जिन्होंने साइकिल चलाकर संगठन का काम किया था।

अलीगढ़ की अतरौली सीट से लगातार आठ बार वह विधायक रहे। वह जमीन से जुड़े राजनेता और कुशल प्रशासक थे। वह जननेता इसलिए बने कि उनकी कथनी और करनी में फर्क नहीं था। उन्होंने उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक ऐसी रेखा खींची जिसकी बराबरी करना आसान नहीं। 1989 के दशक में भाजपा को ब्राह्राण और बनियों की पार्टी मानी जाती थी। कल्याण सिंह ने इस धारणा को दूर करने का काम किया। राम मंदिर आन्दोलन के दौरान उनका भाषण सुनने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ता था। जिस रास्ते से वह जाते थे लोग सड़कों पर लोट जाते थे। कल्याण सिंह राजनेता, जननेता व सफल मुख्यमंत्री के साथ-साथ कवि भी थे। उनके कवित्त की चर्चा नहीं की गयी। पंक्ति के अंतिम व्यक्ति की पीड़ा उनकी कविता में झलकती थी। कल्याण सिंह बहुत अच्छी बांसुरी बजाते थे। सुरों पर उनका पूरा नियंत्रण था।


बाबरी ढ़ांचे का विध्वंस उनके ही कारण हुआ। जब ढ़ांचा गिराया जा रहा था उनके मंत्रिमण्डल के सहयोगियों ने उनसे पूछा कि अब क्या होगा तब कल्याण सिंह ने कहा कि देखो मेरे पास दो ही विकल्प है या तो मैं अपनी सरकार बचाऊँ या फिर अपने कारसेवकों को। जब इतना बड़ा आन्दोलन आज अपने परिणाम पर पहुंचने को है, तो अब इस कलंक को मिट जाने देते हैं, ताकि असंख्य लांेगो का बलिदान व्यर्थ न जाने पाए। अपने निवास स्थान पर कल्याण सिंह अपने मंत्रिमण्डल के सहयोगी लालजी टण्डन और कल्याण सिंह के साथ बैठे टीवी देख रहे थे तभी वहां उत्तर प्रदेश के डीजीपी एस एम त्रिपाठी भागते हुए आये और मुख्यमंत्री से मिलकर कारसेवकों पर गोली चलाने की अनुमति मांगी। कल्याण सिंह ने गोली चलाने की अनुमति नहीं दी। कारसेवक जब ढ़ांचा गिरा रहे थे इसी बीच दोपहर लगभग 01 बजे जब तत्कालीन केंद्र सरकार के गृहमंत्री शंकरराव चव्हाण ने कल्याण सिंह को फोन कर कहा कि कार सेवक गुम्बद पर चढ़ गए हैं, इस पर कल्याण सिंह ने कहा कि कारसेवकों ने गुम्बद को तोड़ना भी शुरू कर दिया है। लेकिन मैं कारसेवकों पर गोली नहीं चलाऊँगा। गोली नहीं चलाऊँगा, गोली नहीं चलाऊँगा।


उधर विवादित ढ़ांचा जैसे ही गिरा कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री पद से तुरन्त इस्तीफा दे दिया। इसके बाद अधिकांश अपने को बुद्धिजीवी कहने वाले लोग पत्रकार और कम्युनिस्टी देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं को नीचा दिखाने का प्रयत्न करने लगे। सारे नेता मौन थे। कोई कुछ बोलने का साहस नहीं कर रहा था। कल्याण सिंह ने प्रेसवार्ता बुलाई और कहा ‘जो ढ़ांचा ढ़हा वह कलंक का ढ़ांचा था। जिसे भारत के गौरव को मिटाने के लिए खड़ा किया गया था। उसके ध्वस्त होने पर मुझे गर्व है। इन तीन पंक्तियों के माध्यम से उन्होंने सम्पूर्ण हिन्दू समाज को मानो संजीवनी दे दी थी।


कल्याण सिंह ने कहा कि यह सरकार राम मंदिर के नाम पर बनी थी और उसका उद्देश्य पूरा हुआ। इसका मुझे कोई पछतावा नहीं है। उन्होंने कहा राम मंदिर के लिए एक क्या सैकड़ों सत्ता को ठोकर मार सकता हूँ। बाबरी विध्वंस की स्वयं जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि कोर्ट में केस करना है तो मेरे खिलाफ करो। जाँच आयोग बिठाना है तो मेरे खिलाफ बिठाओ। किसी को सजा देनी है तो मुझे दो। ऐसी निर्भीकता किसी नेता में देखने को शायद ही मिले। सत्ता के लिए क्या-क्या हथकंडे नहीं अपनाये जाते इस दौर में सिंहासन त्याग का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है।  


कल्याण सिंह ने सिंहासन छोड़ा तो हिन्दुओं की दासता का प्रतीक बाबरी ढ़ांचा इतिहास के कूड़ेदान में था। यदि कल्याण सिंह के मन में रंचमात्र भी सत्ता का मोह होता तो कलंक का वह प्रतीक बाबरी ढ़ांचा आज भी हमारे पौरूष को धिक्कार रहा होता और रामलला आज भी टाट में बैठे होते। जन्मभूमि पर जो भव्य मंदिर निर्माण हो रहा है उससे सम्भवतः हिन्दू समाज और देश वंचित रह जाता। मानो उनका जन्म ही राम मंदिर के कल्याण के लिए हुआ था। राम मंदिर के पक्ष में कोर्ट के फैसले पर उन्होंने कहा कि हमारा स्वप्न पूरा हुआ।कल्याण सिंह के शासन में एंटी-कॉपींग एक्ट लागू कर नकल को संज्ञेय अपराध घोषित किया गया। कल्याण सिंह ने स्कूलों में भारत माता की प्रार्थना और वंदे मातरम को अनिवार्य कर दिया था।


कल्याण सिंह किसान परिवार से आते थे। इसलिए गांव गरीब और किसान सदैव उनकी प्राथमिकता में रहे। उन्होंने खुद भी खेती किसानी की थी। वह खुद हल चलाते थे। इसलिए किसानों की समस्याओं से वह भलीभांति परिचित थे। उनका मानना था कि किसान उठेगा तो गांव उठेगा और गांव उठेगा तो देश उठेगा। कल्याण सिंह ने अपने एक लेख में लिखा है कि किसान स्वभाव से शांति प्रिय होता है। किसान शोषक नहीं होता। यदि वह शोषण करता है तो अपने और अपने परिवार का। उन्होंने अपने एक लेख में लिखा था कि देश का लोकतंत्र किसान से जीवित है।  


कल्याण सिंह यूपी के दो बार मुख्यमंत्री रहे लेकिन भ्रष्टाचार और जातिवाद का आरोप उन पर नहीं लगा। राजनीति में अपराधीकरण के वे सख्त खिलाफ थे। उन्होंने ही एसटीएफ का गठन किया था। मुठभेड़ में अपराधियों की जाति देखकर मारने या बचाने के आरोप या फिर फर्जी मुठभेड़ के पीड़ितों की जाति देखकर मुआवजा देने या न देने के आरोप कल्याण सिंह पर नहीं लगे।वर्षों तक कल्याण और कलराज की जोड़ी प्रदेश में चर्चित रही। जीवन के आखिरी दो दशक कल्याण सिंह के जीवन में बड़े उथल-पुथल में बीते उन्हें मुख्यमंत्री पद से जब हटाया गया तो केंद्र की राजनीति में आने को तैयार नहीं हुए, उन्होंने अलग राह पकड़ ली।

जिसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा और लम्बे समय तक यूपी में भाजपा को सत्ता से दूर रहना पड़ा। 2014 के लोक सभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को कल्याण सिंह के कारण ही अपाऱ सफलता मिली। 2013 में जब भाजपा में शामिल हुए तो वह भाषण करते हुए भावुक हो गये। उन्होंने कहा कि ‘‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के संस्कार मेरी रग-रग में समाए हुए हैं। इसलिए मेरी इच्छा है कि जीवन भर मैं भाजपा में रहूँ और जब जीवन का अंत होने को हो तब मेरी इच्छा है कि मेरा शव भी भारतीय जनता पार्टी के झण्डे में लिपट कर शमशान भूमि की तरफ जाये।’’ उनकी यह बात सही निकली।