आख़िर हार का डर क्यों….!

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राजू यादव

साल 2017 में भाजपा ने पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की तो राजपूत समुदाय से आने वाले योगी मुख्यमंत्री बने,यही वजह है कि योगी सरकार में राजपूत बनाम ब्राह्मण के विपक्ष के नैरेटिव के मद्देनजर ब्राह्मण वोटों का अपने पाले में जोड़ने के लिए सपा से लेकर बसपा और कांग्रेस तक सक्रिय है.विकास दुबे और उसके साथि‍यों के एनकाउंटर के बाद बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने उत्तर प्रदेश में योगी अदित्यनाथ की सरकार में ब्राह्मणों पर अत्याचार बढ़ने का आरोप लगाया था. ब्राह्मण बुद्धिजीवियों का आरोप है कि एकतरफा समर्थन के बावजूद सरकार में ब्राह्मणों को राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से किनारे कर दिया गया है.दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है कुछ ऐसा ही हाल अखिलेश यादव का है. 2019 में बसपा का साथ लेकर सपा को जो नुकसान हुआ था,उसके बाद अब अखिलेश 2022 के लिए छोटे छोटे दलों के साथ गठबंधन कर रहे हैं.

विधानसभा चुनावों में हार की आहट से डरे ईवेंटजीवी और करते भी क्या. लिहाज़ा प्रधानमंत्री को मारने की साजिश का आरोप उछाल दिया गया. अग्रिम मीडिया संस्थानों को विज्ञापनों के समंदर में डुबाने के बाद प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश का इवेंट घर-घर पहुंचाना वैसे भी मुश्किल काम नहीं था. डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया की निगेटिव पॉजिटिव रपटों ने भी इसे पंख लगा दिए. प्रधानमंत्री की अपनी जान की दुहाई देना और चुनावों के वक़्त झूठ गढ़ना, कोई नई बात नहीं है. प्रधानमंत्री की कथनी और करनी में कितना अंतर है, ये पब्लिक डोमेन में है. प्रधानमंत्री के ढ़ेर सारे वीडियो उनके दोहरे व्यक्तित्व को साबित करते हैं. 2019 के आम चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के संविधान निर्माता डॉo बीआर आंबेडकर के बारे में एक बयान पर प्रतिक्रिया जताते हुए मणिशंकर अय्यर ने कहा था, ये आदमी बहुत नीच किस्म का आदमी है. इसमें कोई सभ्यता नहीं है. इस विवादास्पद टिप्पणी के बाद हंगामा मचा. अय्यर रातोंरात खलनायक बन गए. उनको माफ़ी मांगनी पड़ गई. कांग्रेस से बाहर तक का रास्ता देखना पड़ा. मोदी ने इसमें झूठ का तड़का लगाया और इसे अपनी जाति से जोड़ दिया. अय्यर के इस बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अहमदाबाद में नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘मणिशंकर अय्यर ने कहा है कि मैं नीच जाति से आता हूं, मैं नीच हूं, यह गुजरात का अपमान है. जातिवादी और क्षेत्रवादी टुकड़ों में जीती भारतीयता को मोदी ने अपने झूठ से प्रभावित कर लिया. प्रभावित करना कोई रॉकेट साइंस नहीं थी. बस इतना हुआ कि प्रधानमंत्री के बयान को अनगिनत बार दिखाया गया, सुनाया गया.

एक बार फिर चुनाव हैं. फिर झूठ की शक़्ल बन रही है. फिर बयान से बयाना बांटा जा रहा है. बहुत दिन नहीं हुए जब तीन कृषि कानूनों के खिलाफ़ किसान दिल्ली की सड़कों पर शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे. इन शांतिपूर्ण किसानों को खालिस्तानी आतंकी साबित करने की पुरज़ोर कोशिश की गई. सोशल मीडिया के पन्ने घिन से सराबोर थे तो सड़क पर अपनों के बीच से कम होते किसानों के बावजूद किसान शांतिपूर्वक धरने पर थे. किसानों पर प्रधानमंत्री से लेकर आम भाजपा समर्थकों तक के आरोप एक दिन बिखर गए. झूठ हार गया. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव आते और अखिलेश यादव की रैली देख भाजपा दंग रह गई. अखिलेश यादव की रैली में पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के किनारे दिन हो या रात एक समान भीड़ देख मोदी और योगी दोनों का सिंहासन हिलता नजर आया. हिलता सिंहासन देख मोदी सरकार को तीनों कृषि कानून वापस लेने पड़े. ये प्रधानमंत्री मोदी की सार्वजनिक तौर पर सबसे बड़ी हार थी. ‘मोदी अपने फैसले नहीं पलटते’ वाला नैरेटिव भरभराकर गिर गया. इस रोलबैक के लिए मोदी के गालीबाज़ समर्थकों ने मोदी को जमकर गरियाया भी. फिर आदतन विपक्षियों को गरियाने में लग गए हैं. सियासी विश्लेषकों की मानें तो ये रोल बैक हरियाणा, पंजाब और ख़ासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी चुनावी संभावनाओं को पाला लगते देखकर लिया गया. हालत और हालात इतने बदतर होते चले जा रहे थे कि भाजपा के पदाधिकारी, विधायक तक पिटने लगे थे. चुनाव प्रचार की बात क्या होती.

पूर्वांचल में पुराने साथियों का छूटना.2017 के विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल फतह करने के लिए भाजपा एक नए फॉर्मूले के साथ मैदान में उतरी थी. भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में उन छोटे राजनीतिक दलों के साथ में गठबंधन किया, जिनका अपना जातिगत वोट बैंक है. इसी फॉर्मूले का फायदा भाजपा को मिला और भाजपा को 2017 के विधानसभा चुनाव में 28 जिलों की 170 सीटों में से 115 सीटें मिली थीं. यह नंबर सच में करिश्माई थे, लेकिन इस आंकड़े को अकेले भाजपा ने अपने दम पर हासिल नहीं किया था. उसकी मदद इन छोटे राजनीतिक दलों से जुड़े उनके जातिगत वोटबैंक ने की थी.

किसान जिद्दी होता है. भगत सिंह की माटी पंजाब के किसानों का कहना ही क्या. प्रधानमंत्री की फिरोजपुर में होने वाली रैली को फ्लॉप करने के लिए किसान लामबंद थे. प्रदर्शन कर रहे थे. पंजाब में एक बड़ी रैली करके प्रधानमंत्री पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में एक बड़ा संदेश देना चाहते थे. लेकिन किसानों ने एक बार फिर उनको मात दे दी. रैली में गिने चुने लोग ही पहुंच पाए. अधिकांश कुर्सियां खाली पड़ी रहीं. ऊपर से परमात्मा भी मोदी के खिलाफ़ ही नज़र आए. फिरोजपुर रैली स्थल बारिश की चपेट में आ गया. लेकिन रैली रद्द नहीं हुई. पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर समेत कई भाजपा नेताओं के भाषण हुए. बस शो मैन को भीड़ ना मिली तो शो में जाने से इनकार कर दिया गया. अपने अपमान से आहत प्रधानमंत्री का कारवां पूर्व निर्धारित मार्ग से हटकर चला. प्रदर्शनकारी किसानों ने एक पुल को जाम कर रखा था, मोदी का काफ़िला उधर से क्यों बढ़ा, ये तो विस्तृत जांच से ही पता चलेगा. लेकिन मोदी इस रास्ते पर आगे नहीं बढ़ सके. मज़बूरन उनको एयरपोर्ट लौटना पड़ा, मोदी ने वहां अफसरों से कहा, ‘अपने मुख्यमंत्री को धन्यवाद कहना कि मैं यहां तक जिंदा लौट पाया.’

प्रधानमंत्री का ये बयान स्थापित करता है कि पंजाब में किसान नहीं मानो आतंकवादी उनके इंतज़ार कर रहे थे. पंजाब और पंजाबी किसानों के आंदोलन को खालिस्तानी आतंकी तड़का देना सिर्फ़ सियासी दांव है. जिस भी राज्य में भगवा कुनबे की सियासी स्थिति बदतर होती है, वहां का शासन ऐसे लोगों के हाथ में होता है, जो देशद्रोही होते हैं. धर्मद्रोही होते हैं. विकास द्रोही होते हैं. मोदी फाइड धूर्तता ऐसा नैरेटिव लगातार गाढ़ा करती रहती है. ज़्यादा दिन नहीं हुए मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मालिक के बयान को. जिसमें मलिक ने कहा था कि प्रधानमंत्री से मुलाक़ात के दौरान 500 से ज्यादा किसानों की मौत का मामला उठाने पर घमंड से भरे मोदी ने कहा था कि क्या वो किसान मेरे लिए मर गए? प्रधानमंत्री ने राज्यपाल मलिक के बयान का खंडन भी नही किया, या राज्यपाल को झूठ बोलने के जुर्म में हटाया भी नहीं गया. ऐसे में अपने साथियों की मौत पर आक्रोशित किसान पंजाब आने पर मोदी का विरोध नहीं करते तो क्या करते. भगतसिंह की परंपरा जान नहीं लेती, विमर्श खड़ा करती है. वो अत्याचारी अंग्रेजों से लड़ गए तो अब तो उनके बीच के अत्याचारी हैं. विरोध प्रदर्शनों से मिली आज़ादी में प्रदर्शन निज़ाम को बगावत लगती है तो आंदोलनकारियों को अपना हक़.

बहरहाल बात प्रधानमंत्री की सुरक्षा से जुड़ी है तो मुझे याद आता है 2017 का दिसम्बर. उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर आम प्रचलन की भाषा मे नोयडा में मेट्रो लाइन का उद्घाटन करने जा रहे प्रधानमंत्री का काफ़िला रास्ता भटक गया था. तब प्रधानमंत्री की सुरक्षा का सवाल नहीं खड़ा हुआ. 2018 में स्वच्छता आंदोलन को प्रमोट करने के लिए दिल्ली के पहाड़गंज स्थित साहब अंबेडकर सीनियर सेकेंडरी स्कूल में प्रधानमंत्री का कार्यक्रम था. प्रधानमंत्री जब अपने काफिले के साथ निकले तो उन्हें ट्रैफिक जाम में फंसना पड़ गया. लेकिन तब इसे सुरक्षा में सेंध नहीं बताया गया था बल्कि मोदीराज में वीआईपी कल्चर की समाप्ति कहकर मोदी का गुणगान किया गया. आज चुनाव है तो प्रधानमंत्री अपनी जान बचने बचाने की बात का बतंगड़ बना रहे हैं.

मोदी और योगी के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। उत्तर प्रदेश की राजनीतिक गलियारों में मोदी बनाम योगी को लेकर काफी चर्चाएं हैं. इन चर्चाओं ने ऐसे ही जन्म नहीं लिया है. उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव नजदीक आते शाह बनाम योगी के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। इनके बीच भी नंबर वन होने की खींच तान चल रही है.आज की राजनीतिक परिदृश्य में मौर्या अमित शाह के काफी करीब नज़र आ रहे हैं. इनके पीछे कुछ ठोस वजह भी हैं. हालांकि भाजपा ने हर बार यही जाहिर किया है कि पार्टी के अंदर ऐसी कोई कलह नहीं है.पार्टी में सब कुछ सामान्य है.

प्रधानमंत्री की सुरक्षा इंतज़ामों की बात करें तो पीएम मोदी की नई कार का नाम मर्सडीज मेबैक एस650 है. इसकी कीमत 12 करोड़ है, धमाके व गोलियों का असर नहीं होता है. गैस हमले के समय अलग से एयर सप्लाई की व्यवस्था है. कार के सिक्योरिटी फीचर्स के लिए गूगल देव की शरण ले सकते हैं. एसपीजी पर भी विस्तृत विवरण सर्च इंजन पर उपलब्ध है, पढ़ सकते हैं. बात सिर्फ़ इतनी कहनी है कि दरअसल प्रधानमंत्री की जान को ज़रा भी ख़तरा नहीं था. प्रधानमंत्री के चुनाव जीवन पर ख़तरा है. उनको पंजाब के किसानों ने एक बार फिर अपमानजनक जवाब दिया है, उनके कद को ख़तरा है. मैं बस इतना कह सकता हूं कि प्रधानमंत्री का डर हास्यास्पद है और ये भी एक चुनावी इवेंट है.

कल राजधानी लखनऊ की एक शाम में ये विमर्श उभरा कि याद रखना भारत के लोगों…! इन सारे जबरदस्ती के खड़े किए जा रहे मुद्दों की आग में जलकर जब तुम पोलिंग स्टेशनों से हाथ कटाकर लौटोगे तो हासिल वही महंगे सिलेंडर, महंगे पेट्रोल डीज़ल होंगे. महंगे खाद्य तेल तुम्हारी पहुंच से बाहर तुम्हें मुंह चिढाएंगे. बेरोज़गारी, लाचारी तुम पर कहकहे लगाएगी. सरकार एक बार फिर टैक्स बढ़ाएगी. वाट्सअप की दुनिया से विकास के भूत निकलेंगे, जिनकी बातें तो होंगी लेकिन वो दिखाई नहीं देंगे. जनता का आक्रोश वोटों की शक़्ल लेगा या नहीं, लाज़िम है हम देखेंगे.
आज उत्तर प्रदेश की मासूम जनता यह भी जान चुकी है कि फ्री देने के बदले जनता से ही वसूल रही है. एक छोटाा सा एग्जांपल देख सकते हैं आज प्रदेश में गैैैैैैैस सिलेंडर का भाव लगभग ₹940 है. चार लोगों के घर में निश्चित ही 1 सिलेंडर प्रतिमाह खर्च होता है.सरकार द्वारा दिए जा रहे. फ्री राशन की कीमत लगभग ₹500 होती है.वहीं सरकार जनता सेेेे उसी फ्री राशन को पकाने केेे लिए सिलेंडर से वसूल रहा है. पूर्व की सरकारों यही सिलेंडर ₹ 300 में मिलता था. आज किसान की खाद की बोरी सेे 5 किलो खाद कम हो गई है जबकि रेट अधिक हो गया है. आज उत्तर प्रदेश में एक नई परंपरा की शुरुआत भी हुई हैै जो यह है कि शिलान्यास केेे साथ ही ही उस का लोकार्पण कर दिया जाताा है जोकि संभव नहीं होता थ