करियर के लिए पत्नी का विदेश में रहना पति के प्रति ‘क्रूरता’ या ‘पति का परित्याग’ नहींः बॉम्बे हाईकोर्ट

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यह देखते हुए कि कनाडा में रहने का पत्नी का निर्णय, जहां वह दंपति के बेटे के साथ बस गई है, ”अन्यायपूर्ण” या ”स्वार्थी” नहीं है, बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक 44 वर्षीय इंजीनियर को तलाक देने से इनकार कर दिया। इस इंजीनियर ने यह कहते हुए क्रूरता और परित्याग का आरोप लगाया गया था कि उसकी पत्नी ने उसके साथ भारत में आकर रहने से मना कर दिया है।

अदालत ने कनाडा में एक फार्मास्युटिकल कंपनी के साथ उसके फलते-फूलते करियर का विवरण देने के लिए महिला के रिज्यूमे को पुनः प्रस्तुत किया और कहा कि पति अपनी पत्नी के साथ वहां जाकर फिर से रह सकता है, खासकर जब बेहतर संभावनाओं के लिए कनाडा में बसने का उसका विचार था।

न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने पति की तरफ से दायर उस अपील पर विचार करने से इनकार कर दिया,जो उसने फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर की थी। फैमिली कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 (1) (आईए) (क्रूरता) और 13 (1) (आईबी) (परित्याग) के तहत तलाक के लिए दायर पति की याचिका को खारिज कर दिया था।

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि,

”प्रतिवादी (पत्नी) के स्टे्टस को देखते हुए किसी भी तरह से, इस देश में लौटने की उम्मीद करना उचित नहीं होगा, जब वह पहले से ही वहां अच्छी तरह से बस गई हो … प्रतिवादी (पत्नी) की कनाडा में बसने की इच्छा इस तथ्य से प्रेरित है कि अपीलकर्ता (पति) ने ही पहले जानबूझकर विदेश में बसने का फैसला किया था।

इसलिए प्रतिवादी की इच्छा को स्वार्थ के कार्य के रूप में ब्रांडेड नहीं किया जा सकता है या उसकी ओर से किए गए कृत्य को अनुचित नहीं कहा जा सकता है। इस प्रकार, इसे किसी भी तरह से परित्यक्त पति या पत्नी द्वारा अपीलकर्ता के साथ की गई क्रूरता नहीं कहा जा सकता है।”

पीठ ने आगे कहा कि पति ने कनाडा में अपनी पत्नी के पास वापस नहीं लौटने के लिए अपने खराब स्वास्थ्य का हवाला दिया था, लेकिन वह अपने दावों की पुष्टि करने के लिए कोई चिकित्सा प्रमाण पत्र पेश करने में विफल रहा है। अंत में, अदालत ने समर घोष बनाम जया घोष के फैसले का हवाला दिया और कहा कि कपल के संबंध इस हद तक नहीं बिगड़े हैं कि उनके लिए फिर से एक साथ रहना असंभव होगा।

पीठ ने कहा, ”हमें उम्मीद है कि दंपति के पास कम से कम अपने बच्चे की खातिर इस रिश्ते को फिर से बहाल करने की गुंजाइश अभी भी है।”

संक्षेप में मामला

दो इंजीनियरों को एक-दूसरे से गहरा प्यार हुआ और आठ साल के लंबे प्रेम संबंध के बाद इन्होंने 5 जनवरी, 2004 को मुंबई में शादी की। 2003 में बेहतर संभावनाओं के लिए पति कनाडा चला गया था और बाद में पत्नी जीवनसाथी के वीजा पर उसके साथ चली गई। उसके बाद इन्होंने कनाडा की नागरिकता ले ली।

पति ने बताया कि वह वर्ष 2009 में एक कार दुर्घटना का शिकार हो गया था, जिसके बाद उसकी पत्नी ने उसकी देखभाल की। उसके बाद उनका पहला बच्चा इस दुनिया में आया। हालांकि, उसी वर्ष 2010 में, पति की मंदी के कारण नौकरी चली गई और उसकी पीठ और कंधे में दर्द रहने लग गया। उसे ‘रैगवीड एलर्जी’ नामक त्वचा एलर्जी भी हो गई। इसके बाद उन्होंने भारत लौटने का फैसला किया।

उनकी वापसी के एक महीने बाद ही उसकी पत्नी अपने माता-पिता के घर चली गई और कहा कि वह कनाडा लौटना चाहती है और वह अपने बेटे के साथ वापिस विदेश चली गई। पति ने कहा कि उसने भारत में नौकरी की तलाश शुरू कर दी और उसे उम्मीद थी कि उसकी पत्नी वापस आ जाएगी। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।

उसके बाद पति ने दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उसकी पत्नी इस कार्यवाही में पेश नहीं हुई,जिसके बाद उसने तलाक की याचिका दायर कर दी। यहां तक कि तलाक की कार्यवाही को भी एकतरफा तय किया गया और उसे खारिज कर दिया गया। फैमिली कोर्ट के जज ने कहा कि पति की दलीलें और सबूत काफी अस्पष्ट थे।

न्यायालय की टिप्पणियां

हाईकोर्ट में भी याचिका निर्विरोध रही। लेकिन पीठ ने फिर भी पति को राहत देने से इनकार कर दिया।

पीठ ने कहा कि पति ने अपने उन दावों की पुष्टि करने के लिए किसी गवाह को पेश नहीं किय कि पत्नी के परिवार ने उसे 2011 में उसका पासपोर्ट, दस्तावेज और आभूषण वापस करने की धमकी दी थी या उन्होंने पैसे की मांग की थी।

अदालत ने आगे कहा कि यह साबित करने के लिए कोई मेडिकल रिकॉर्ड नहीं है कि अपीलकर्ता स्वास्थ्य कारणों से अपनी पत्नी के पास नहीं जा सकता है। पीठ ने कहा कि ऐसा लगता है कि पति ने पत्नी के रिश्तेदार पर यह कहने का आरोप लगाकर तलाक के लिए आधार बनाया है कि उसकी पत्नी को उसके साथ संबंध रखने में कोई दिलचस्पी नहीं है।

पीठ ने पति के इस दावे पर विश्वास करने से इनकार कर दिया कि वह दो बार कनाडा गया था, लेकिन उसकी पत्नी ने उससे मिलने से इनकार कर दिया और उनके बेटे से मिलने की अनुमति भी तभी दी जब उसने बच्चे को यह नहीं बताया कि वह उसका पिता है।

अदालत ने कहा कि,

”यदि प्रतिवादी (पत्नी) का वैवाहिक संबंध तोड़ने का इरादा होता, तो वह अपीलकर्ता को अपने बेटे से मिलने की अनुमति नहीं देती। यह मामले का एक महत्वपूर्ण पहलू है जो दर्शाता है कि न तो प्रतिवादी ने अपीलकर्ता के साथ क्रूरता का व्यवहार किया और न ही वह उसे छोड़ना चाहती है।”

एक उम्मीद है

इस प्रकार पीठ ने कहा कि इस कपल की शादी इतनी खराब स्थिति में नहीं पहुंची है कि इसे ठीक ही ना किया जा सके, खासकर जब उनका बेटा अभी छोटा है और वह इस कपल को एक बार फिर से जोड़ने के लिए एक डोर का काम कर सकता है।

(प्रकाशचंद्र जोशी बनाम कुंतल प्रकाशचंद्र जोशी व अन्य, फैमिली कोर्ट अपील 162/2019)