10 मार्च को अखिलेश आएंगे या योगी….?

94
डॉ0 अम्बरीष राय

मैनेज्ड मीडिया में महंत जी जीत रहे हैं. समर्थक ‘आएंगे तो फलाने’ की मुहिम में जुटे हैं. विमर्श बिलो द बेल्ट जा ही चुका है. लेकिन हक़ीक़त की ज़मीन पर जो नज़ारा नुमायां हो रहा है, वो कुछ और ही बयां कर रहा है. एक ऐसे दौर में जब सही गलत जैसा कुछ रहा नहीं. एक ऐसे दौर में जब सिर्फ़ पक्ष और विपक्ष है तो मैं बस इतनी सी जानना चाहता हूं कि ये नेताओं का रेला विक्रमादित्य मार्ग पर क्यों है? ये गाड़ियों का हुजूम समाजवादी पार्टी के मुख्यालय पर क्यों है? आख़िरकार ऐसी क्या वज़ह है कि विक्रमादित्य मार्ग पर हाथों में चालान बुक लिए पुलिस बल हलकान हुए जा रहा है? इतने लोग, इतनी गाड़ियां किसी और पार्टी के कार्यालय पर क्यों नहीं हैं? सरकार बहादुर चुनाव आयोग के पीछे से खेल रहे हैं या अपना खेल ख़राब होते देख खेल ही ख़राब करने में लग गए हैं? सवाल है. सवाल है कि आख़िर एक्चुअल रैलियों से परे वर्चुअल रैली क्यों और कब तक? सवाल हैं. लेकिन जवाब बेहद परेशान, बेहद तकलीफ़ में हैं. मिशन और कमीशन की भेंट चढ़ा जवाब सच बोल नहीं सकता. बोलेगा तो झूठ. बोलेगा तो फ़रेब. ख़ैर मैं जो समझ पा रहा हूं, वो बताने की कोशिश करता हूं. 10 मार्च को परिणाम आएंगे. अखिलेश आएंगे या योगी आएंगे, ये दावे तो 10 मार्च को ही शक़्ल लेंगे. लेकिन जो मौजूदा सियासी तस्वीर बनती दिख रही है, वो सरकारी पक्ष को सांसत में डाले हुए है. मीडिया के बहुमत को मैनेज कर चुकी सरकार के लिए मार्क का बनाया फेसबुक हो या सोशल मीडिया की और भी दीवारें, बस मुसीबत बनी हुई हैं. सवालों की जानिब जाऊं तो विक्रमादित्य मार्ग पर, समाजवादी पार्टी के कार्यालय पर टिकटार्थियों, टिकटार्थियों के समर्थकों, पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों की भीड़ को हटाना ज़रूरी है, इसलिए वहां पुलिस है.

मुंह फुकौना की बीमारी में जान सबसे बड़ी चीज़ है. और सरकार जान बचाने को लेकर बेहद गंभीर है. और वो इसलिए चाहती है कि सपा कार्यालय के आसपास के क्षेत्र खाली कराए जाएं. मुसीबत ये है कि अगली सरकार बनाने के उत्साह को इस मुंह फुकौना से डर ही नहीं लग रहा. और सरकार है कि डराना चाहती है. लिहाज़ा कल्याणकारी राज्य ने जन कल्याण के लिए पुलिस को आगे कर दिया है. पुलिस गाड़ियों के चालान काट रही है. अब पार्किंग तो वहां पर इतनी है नहीं कि समाजवादी उत्साह वहां आराम कर सके. तो समाजवादी वाहन और उत्साह दोनों ने सड़क पर कब्ज़ा जमा लिया है. एक बात आप जानते चलें कि इस सड़क पर समाजवादी भीड़ से किसी सामान्य नागरिक को किसी तरह की परेशानी नहीं है और ना ही वहां रहने वाले रसूखदारों को. तो सड़क पर गैर कानूनी रूप से आराम फरमा रहे समाजवादी वाहनों से रुपए वसूल किए जा रहे हैं. राजस्व वसूली के मामले में वैसे भी सरकार बहादुर बेमिसाल रहे हैं. महसूस तो हो ही रहा होगा कि आपका खून नहीं पिया जा रहा है. तो मुंह फुकौना के आदमख़ोर पंजों से उत्तर प्रदेश और यहां के बाशिंदों को बचाने के लिए सरकार बहादुर का ये सही कदम है.

सियासी तौर पर देखें तो सपा मुख्यालय पर भीड़ अपना सियासी वजूद संवारने के लिए लगी है. नेता कुछ भी हो सकते हैं लेकिन मूर्ख नहीं. तो सारे सयाने समाजवादी हो रहे हैं तो समझने के लिए कुछ बचता नहीं. बचा तो मुंह फुकौना का दिल्ली बॉर्डर पर भी कुछ नहीं. वहां भी सरकार बहादुर मुंह फुकौना से किसानों को बचाना चाहते थे लेकिन एक भी किसान मुंह फुकौना का शिकार नहीं हुआ. शिकार हुआ तो सरकार बहादुर के किसानों से मुहब्बत का. सैकड़ों सरकार पर अपनी जान क़ुर्बान कर गए. ख़ैर इस वक़्त दिल्ली विषय नहीं है, लखनऊ है. तो उदास होते कार्यालयों के प्रति सरकार बहादुर की निष्ठा भी कोई चीज़ होती है. सरकार निष्ठावान है, इसका स्वागत होना चाहिए, विक्रमादित्य मार्ग पर पुलिस होनी चाहिए. पत्रकार होने और लखनऊ निवासी होने के चलते चाहे अनचाहे कई जगह जाना हो ही जाता है. चुनावी गहमागहमी के बीच भी अन्य पार्टियों के दफ़्तर ख़ुश नज़र नहीं आते. इन दफ़्तरों की समाजवादी पार्टी के दफ़्तर से चिढ़न, कुढ़न आसानी से देखी और महसूस की जा सकती है. रह गई बात एक्चुअल और वर्चुअल रैली वाली बात. समाजवादी पार्टी की पहली वर्चुअल रैली भी एक्चुअल रैली को मात देती नज़र आई.

चुनाव आयोग को समाजवादी पार्टी को चेताना पड़ गया. विक्रमादित्य मार्ग पर कल एक शुक्ला जी मिले. मिले तो चाय भी मिली और बात भी. शुक्ला जी ने कहा कि आचार संहिता लागू होने के बाद सरकारी कर्मचारी, सरकारी बसें अब योगी जी के अधिकार क्षेत्र में रहीं नहीं. भाजपा वाले सरकारी पैसे और सरकारी धमकी से अपनी रैलियों में भीड़ जुटाने की कोशिश कर रहे थे. सपा की रैलियों में लोग अपने आप जुट रहे थे. लिहाज़ा उपकृत चुनाव आयोग वर्चुअल रैली ले आया. शुक्ला जी कह रहे थे कि भाजपा के पास लोग नहीं है लेकिन संसाधन तो है. और इसी संसाधन के चलते 10 मार्च तक वो मैच में रहेगी. मैं ये बात सुनकर गुनता रहा. सोचता रहा, टिप्पणी बस इतनी की कि चुनाव आयोग निष्पक्ष और निरपेक्ष है. तो दरअसल उत्तर प्रदेश की सियासी ज़मीन मीडिया के कैमरे में भले ना दिखे लेकिन सोशल मीडिया के कैमरे में ज़रूर दिखेगी, इसलिए पुलिस है. कैमरों के कैरेक्टर में होने वाले बदलाव को लाज़िम है हम देखेंगे.