किसी भी इंसान के परवरिश का उसके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

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ज़िंदगी तो कठिनाइयों का रास्ता है, मंजिल अपनी कुछ ख़ास रखना,
                      सफलता जरूर मिलेगी, बस इरादे नेक और हौसले बेहिसाब रखना। 
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माता-पिता बनना अपने आप में एक खूबसूरत अनुभव होता है। इसके बाद बारी आती है परवरिश की, सिर्फ परवरिश और अच्छी परवरिश दोनों में जमीन-आसमान का फासला है। बेहतर अभिभावक बनना एक हुनर है। अगर आप इस हुनर का सही इस्तेमाल करते हैं तो आपका बच्चा अवश्य ही एक बेहतर नागरिक बनेगा। बच्चे का अच्छा या खराब होना माता-पिता पर ही निर्भर करता है, आपकी परवरिश जैसी होगी, बच्चा भी वैसा ही बनेगा। आपकी परवरिश पर ही संतान का भविष्य निर्भर है,बतौर अभिभावक आपको कुछ अहम बातों पर ध्यान रखना जरूरी है। आमतौर पर अभिभावकों का मानना होता है कि मारने-पीटने से ही बच्चे अनुशासन में रहते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। बल्कि बच्चे को प्यार से समझा कर उन्हें नियंत्रण में रखा जा सकता है, इसके विपरीत अगर बच्चे के साथ हमेशा कड़ा रूख अपनाया जाता है, तो उसका बच्चे पर बुरा प्रभाव पड़ता है, हर बच्चा असाधारण और प्रतिभाशाली होता है।जरूरत है शुरू से ही बच्चे को इसके अनुरूप तैयार करने की, इसमें सबसे अहम है बच्चे में छिपी प्रतिभा को समझने की,आप अपनी इच्छा बच्चे पर कभी ना थोपें। बल्कि बच्चा भविष्य में जो बनना चाह रहा हो उसे प्राथमिकता दें। साथ उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन की भी आवश्यकता होती है।जिसकी परवरिश अच्छी ना हो, वह किसी का सम्मान नहीं करता। जिसके अपने अच्छे होते हैं, वह कभी किसी से अपमान नहीं सहता।

  • आपके बच्चे को उपहार की तुलना में आपकी उपस्थिति की आवश्यकता है।
  • अच्छे संस्कार किसी मॉल से नहीं परिवार के माहौल से मिलते हैं।
  • न जरूरत बनाती है, न ख्वाहिश बनाती है. इंसान जो बनता है उसे परवरिश बनाती है।
  • बच्चों को सीख देने का जो श्रेष्ठ तरीका मुझे पता चला है वह यह है कि बच्चों की चाह का पता लगाया जाए और फिर उन्हें वही करने की सलाह दी जाए।
  • अपना जीवन ऐसे जिएं कि आपके बच्चे अपने बच्चों से कह सकें कि आप न केवल किसी प्रशंसनीय निमित्त के समर्थक थे, आप उसका पालन भी करते थे।
  • किसी बालक की क्षमताओं को नष्ट करना हो तो उसे रटने में लगा दो।

    जन्म देने वाले माता पिता से अध्यापक कहीं अधिक सम्मान के पात्र हैं, क्योंकि माता पिता तो केवल जन्म देते हैं, लेकिन अध्यापक उन्हें शिक्षित बनाते हैं, माता पिता तो केवल जीवन प्रदान करते हैं, जबकि अध्यापक उनके लिए बेहतर जीवन को सुनिश्चित करते हैं।अधिकांश माता-पिता की ऐसी सोच होती है कि अगर वे बच्चे की आलोचना करते हैं तो बच्चा अनुशासित होगा। उसका दिमाग विकसीत होगा, जबकि आलोचना करना बिल्कुल गलत है। हर बात पर आलोचना करने से बच्चे के दिमाग पर बुरा प्रभाव पड़ता है। आलोचना करने से बच्चे की किसी बुरी आदत में सुधार नहीं होता। सिर्फ आलोचना करने पर अपना ध्यान केंद्रित ना करके बच्चे की तारीफ करना भी सीखें, तारीफ का बच्चे के दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उनका आत्मविश्वास बढ़ता है.जिसके बाद बच्चा किसी गलत काम को करने से पहले सोचता है। वह संभव प्रयास करता है कि ऐसा कुछ काम करें जिससे फिर उसकी तारीफ हो। इसके विपरीत अगर आप बच्चे की बात-बात में आलोचना करते हैं तो  फिर बच्चा की सोच नकारात्मक होने लगती है,ज्यादातर देखा जाता है कि माता-पिता बच्चे की तुलना अपने बच्चे से करते हैं। इस तुलना का भी बच्चे के उपर बुरा प्रभाव पड़ता है, ऐसा करने से बच्चे के अंदर उस बच्चे के प्रति ईर्ष्या की भावना पैदा होती है इसलिए अच्छी परवरिश से इन सभी चीजों को दूर रखना ही सही है।

   परवरिश शब्द सुनने में जितना खूबसूरत लगता है, यह ड्यूटी उतना ही ज्यादा महत्वपूर्ण है। यह ड्यूटी बच्चे के जन्म से लेकर आजीवन चलती रहती है। अपने दायित्वों का सही से निर्वहन करने के लिए आपको सोच-समझ कर कदम उठाने की जरूरत है। परवरिश कोई आसान काम नहीं है, पर हां अगर आप पर्याप्त प्लानिंग के साथ इसे करते हैं तो यह काम काफी आसान हो जाता है।