ईष्वर ने कब्जा करने की प्रेरणा दी- श्याम कुमार

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वह मशहूर व्हीलर कंपनी में अत्यंत उच्च पद पर थे। व्हीलर कंपनी का सभी रेल-स्टेशनों पर स्थित बुकस्टॉलों पर एकाधिकार था तथा कंपनी का मुख्यालय इलाहाबाद(अब प्रयागराज) में था। व्हीलर कंपनी के वह उच्चाधिकारी एक दिन तेज प्रताप तिवारी नामक एक युवक को लेकर पिताजी के पास आए और बोले कि इलाहाबाद का यह ब्राम्हण लड़का मुम्बई में नौकरी करता था, जो छूट गई है। उन्होंने पिताजी से उसकी मदद करने का अनुरोध किया और कहा कि वह उसे अपने मकान परीभवन के भूतल पर स्थित हॉल और उसके बाहर का कमरा छह महीने के लिए उपलब्ध करा दें तथा उसे एक सिलाईमशीन खरीदकर दे दें तो तेज प्रताप तिवारी का परिवार भूखों मरने से बच जाएगा। उन्होंने और तेज प्रताप तिवारी ने वादा किया कि वे छह महीने में कहीं अन्यत्र जगह ले लेंगे। पिताजी परोपकारी प्रवृत्ति के थे ही, इसलिए उन्होंने बिना कोई भाड़ा लिए वह हॉल व कमरा तेज प्रताप तिवारी को दे दिया तथा उसके लिए सिलाई की एक मशीन भी खरीद दी। लेकिन छह महीने बीत जाने पर भी दोनों ने वादा पूरा नहीं किया तथा तेज प्रताप तिवारी का कब्जा बना रहा।

उन उच्चाधिकारी ने उसे व्हीलर कंपनी के कर्मचारियों की वरदी सिलने का ठेका दे दिया, जिससे उसका धंधा चल निकला तथा उसने कई और सिलाईमशीनें खरीद लीं। पिताजी के निधन के बाद मैं पत्रकारिता में आ गया था तथा एक दिन मुझे पता लगा कि व्हीलर कंपनी के उन उच्चाधिकारी को औरतबाजी का शौक था, जिसकी पूर्ति तेज प्रताप तिवारी करता था और इसीलिए वह उनका बड़ा खास था। तेज प्रताप तिवारी बहुत चालू व्यक्ति था तथा धीरे-धीरे उसने ‘सोर्स’ व ‘कमीशनबाजी’ के बल पर पुलिस की वरदियां सिलने का ठेका भी प्राप्त कर लिया।

अब उसकी दुकान पर पुलिस के दरोगाओं आदि का जमघट लगने लगा तथा उनकी दारू की महफिलें भी जमने लगीं। वह पुलिस का बहुत बड़ा दलाल बन गया तथा लोगों को फंसाकर पुलिस की मोटी कमाई कराने लगा। पुलिस विभाग के भ्रश्ट लोगों से उसका गहरा रिष्ता बन गया तथा उसी क्रम में बड़े-बड़े अपराधी तत्वों से भी उसका याराना हो गया। वह भ्रश्ट अफसरों एवं शतिर अपराधियों के बीच बहुत मजबूत कड़ी बन गया। चूंकि अब तक मैं इलाहाबाद में बहुत प्रभावशली पत्रकार हो चुका था, इसलिए मुझसे अकसर लोग कहा करते थे कि मैं तेज प्रताप तिवारी से अपनी जगह खाली क्यों नहीं करा लेता! लेकिन तेज प्रताप तिवारी पुलिसवालों तथा दुर्दांत अपराधियों के बीच जो तगड़ी कड़ी बन गया था तथा बहुत पैसे वाला हो गया था, इसलिए मैं समझता था कि वह कितना ताकतवर हो गया है तथा उससे कमरे खाली करा लेना आसान नहीं है।

उस समय कम से कम इतना तो था कि तेज प्रताप तिवारी बाहर पटरी(फुटपाथ) पर जब कुरसियां लगाए महफिल जमाए रहता था और मैं उधर से निकलता था तो वह मुझे देखकर बड़े अदब से हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता था। लेकिन मेरे मकान के एक महत्वपूर्ण हिस्से पर उसका अनुचित कब्जा है, इस पर मेरे मन में कचोट तो रहती ही थी। मुझ पर ईष्वर की एक कृपा है कि जो मेरे दिल को बहुत चोट पहुंचाता है, उसे वह कभी न कभी अवष्य दंडित करता है। ऐसे बहुतेरे अनुभव मुझे हो चुके हैं। एक दिन पता लगा कि तेज प्रताप तिवारी ने कुछ समय पूर्व किसी कुख्यात अपराधी से विवाद होने पर उसकी हत्या कर दी थी तो उसके गिरोह के लोगों ने तेज प्रताप तिवारी की हत्या कर दी।

मैं अपनी व्यस्तता के कारण चूक गया, अन्यथा उसी समय मुझे अपने घर के उस हॉल व कमरे पर कब्जा कर लेना चाहिए था। मेरी चूक का फायदा उठाकर तेज प्रताप तिवारी के ससुर ने मेरे घर के उस हिस्से को शराब के व्यवसायियों को किराए पर दे दिया तथा वहां शराब की बड़ी दुकान खुल गई। उन शराब-व्यवसायियों में एक नाम उस समय के दुर्दांत एवं मशहूर माफिया बुक्खल का था तथा दूसरा नाम एक सरदार का था। वर्श 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो नाराज कांग्रेसियों ने मेरे परीभवन में स्थित षराब की उस दुकान में आग लगा दी।

मैं उस समय लखनऊ में था तथा वहां से मेरा आगरा जाने का कार्यक्रम था, क्योंकि वहां सूरसदन में ‘रंगभारती’ के ‘सप्तरंग ऑरकेस्ट्रा’ का ‘एक शम किषोर कुमार के नाम’ कार्यक्रम होने वाला था। उसकी तैयारी के सिलसिले में मुझे वहां जाना बहुत जरूरी था तथा ट्रेन में मेरा आरक्षण भी हो गया था। तभी अचानक जैसे ईष्वरीय प्रेरणा हुई और मैंने यूंही अपने एक घनिश्ठ आईपीएस अधिकारी मित्र को फोन कर लिया। वह आईपीएस अधिकारी अपनी ईमानदारी और योग्यता के लिए सुविख्यात थे। बातचीत में मैंने उनसे इलाहाबाद में अपने मकान में हुए अग्निकांड का उल्लेख कर दिया। वह मेरे मकान की समस्या से अवगत थे। जैसे ही मैंने उन्हें अपने मकान में षराब की दुकान जलाए जाने की बात बताई, उन्होंने मुझसे तुरंत इलाहाबाद जाकर कमरों पर कब्जा करने को कहा। मैंने उन्हें बताया कि मेरा ट्रेन में आगरा के लिए आरक्षण है और एक दिन बाद वहां मुझे पहुंचना है तो उन्होंने आदेष के स्वर में मुझसे सबकाम छोड़कर तुरंत इलाहाबाद जाकर कमरों पर कब्जा करने के लिए कहा।

मैंने ऐसा ही किया और उसी रात मुगलसराय पैसेंजर से इलाहाबाद के लिए प्रस्थान कर दिया। परीभवन में नीचे जिस हॉल में षराब की दुकान में आग लगाई गई थी, वह मेरे आंगन से सटा हुआ था और उधर से भीतर प्रविश्ट होकर मुझे कब्जा करना था। हॉल के बाहर वाला जो दूसरा कमरा था, उसमें सड़क की ओर तीन प्रवेषद्वार थे, जिनमें दो में मैंने पहले कभी जंगले लगवा दिए थे तथा बीच का प्रवेषद्वार खुला हुआ था। भीतर से प्रविश्ट होकर उन तीनों प्रवेषद्वारों को चुनवा देना था। मैंने लखनऊ से इलाहाबाद के एक सज्जन को फोन कर बताया कि मैं अगले दिन इलाहाबाद पहुंच रहा हूं और वह अविलम्ब सीमेंट व बालू का घर पर इंतजाम कर दें, जिसका भुगतान वहां पहुंचकर मैं कर दूंगा। परीभवन में सालभर राजगीर, पुताई, बढ़ई, लुहार, दरजी आदि किसी न किसी का काम लगा रहता था। अतः किसी का ध्यान नहीं गया कि मैंने सीमेंट-बालू क्यों मंगाई है? मेरे मकान के नीचे पटरी पर बहादुर चाय की ठेलिया लगाता था, जिसे मैंने लेबर चौराहे से एक दर्जन मजदूर व तीन-चार राजगीर निष्चित रूप से बुला लेने के लिए सहेज दिया।

दूसरे दिन सवेरे मैं इलाहाबाद पहुंचा तो राजगीरों व मजदूरों को मैंने दुगना मेहनताना व खाने का पैसा देकर रात के लिए भी रोक लिया। ठीक पीछे गंगा का घर था, जिसके यहां काफी ईंटे रखी हुई थीं। मैंने वे ईंटें उससे खरीदकर मजदूरों से जल्दी-जल्दी अपने घर के आंगन में रखा लीं। रात षुरू होते ही जब मैेंने आंगन से हॉल वाला दरवाजा बड़ी कठिनाई से खोला तो दिन धड़क रहा था, क्योंकि मैं बहुत बड़े कुख्यात अपराधी से मुकाबला करने जा रहा था। हॉल में अग्निकांड के कारण षराब की टूटी बोतलों के कांच से जमीन अटी पड़ी थी। उस पर पटरे बिछाकर मजदूरों व मिस्त्रियों को फुटपाथ से सटे कमरे तक पहुंचाया गया तथा जल्दी-जल्दी बाहर वाले तीनों प्रवेषद्वारों की चुनाई षुरू कर दी गई।