प्रदेश का हर नागरिक लगभग 48 हजार रुपये के कर्ज में- शिवपाल यादव

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प्रसपा(लोहिया)का प्रदेश कार्यकारिणी सम्मेलन……

प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का राजनैतिक-आर्थिक प्रस्ताव आज लोहिया सभागार, प्रसपा शिविर कार्यालय, लखनऊ में सम्पन्न होना सुनिश्चित हुआ है,साथियों, यह कार्यकारिणी अपने शीर्ष नेतृत्व के प्रति आभार व्यक्त करती है कि उनके भागीरथ सद्प्रयासों व सतत संघर्षों के कारण प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) देश विशेषकर उत्तर प्रदेश में एक नियामक व निर्णायक भूमिका में आ चुकी है। राजनीतिक गलियारों से लेकर आम जन के चैपालों तक यह चर्चा-आम है कि बिना शिवपाल व प्रसपा के बगैर वर्तमान में उत्तर प्रदेश में काबिज भ्रष्टतम्, झूठी व अलोकतांत्रिक सरकार को हटाना सम्भव नहीं है।

प्रसपा ही प्रतिबद्ध, प्रबल, प्रगतिशील व प्रभावशाली प्रतिपक्ष के कर्तव्य का निर्वहन महान समाजवादी क्रांतिधर्मी चिन्तक राममनोहर लोहिया, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, चरण सिंह, लोकबन्धु राजनारायण, रामसेवक यादव, जनेश्वर मिश्र सदृश महान विभूतियों के पगचिन्हों व विचारों पर चलते हुए कर रही है। कार्यकारिणी, जनसंवाद के विभिन्न मंचों व माध्यमों से गरीबों, किसानों, बुनकरों, बेरोजगारों व पीड़ित नारियों की समस्याओं, व्यथा, वेदना, वंचना को स्वर देने के लिए शीर्ष नेतृत्व को साधुवाद देती है। कार्यकारिणी प्रस्ताव करती है कि राजनैतिक विकल्प हेतु किसी भी अन्य दल से किसी भी प्रकार के गठबंधन के संदर्भ में सभी प्रकार के निर्णय हेतु श्री शिवपाल जी अधिकृत होंगे।

कार्यकारिणी उनके प्रत्येक निर्णय को सहर्ष व सर्वसम्मति से स्वीकार करेगी।मित्रों, कार्यकारिणी मानती है कि वर्तमान समय में देश व प्रदेश पर काबिज भाजपा सरकार महात्मा गांधी, राममनोहर लोहिया, लोकनायक जयप्रकाश नारायण सदृश महापुरुषों एवं राष्ट्रवाद, समाजवाद, स्वदेशी, लोकतंत्र जैसी महान अवधारणाओं की वाचिक दुहाई अनवरत दोहराती है किन्तु काम ठीक उलट करती है। भाजपा की कथनी-करनी में अंतर और भाजपा द्वारा फैलाए गए झूठ व भ्रम के विरुद्ध जन-जागरण समय की मांग है। शिवपाल जी के ‘‘गैर-भाजपावाद’’ का कार्यसमिति पुरजोर समर्थन करते हुए विश्वास व्यक्त करती है कि शिवपाल जी द्वारा प्रतिपादित गैरभाजपावाद महान विचारक डा0 लोहिया के तत्कालीन गैर कांग्रेसवाद की भांति परिवर्तनगामी इतिहास का स्वर्णिम अध्याय बनेगा।

केन्द्र व राज्य सरकार की जन-विरोधी आर्थिक नीतियों व कार्यप्रणाली के परिणामस्वरूप देश का सकल घरेलू उत्पाद ऋणात्मक हो चुका है। माइनस 23.9 फीसदी जीडीपी होने का अर्थ है कि देश विपन्नता की ओर अग्रसर है। देश के ऊपर 558.5 अरब डालर का कर्ज चढ़ चुका है। पूरे बजट का पांचवां हिस्सा ब्याज चुकाने में जा रहा है। मोदी-सरकार कर्जविहीन अर्थव्यवस्था देने में पूर्णतया असफल रही है। प्रदेश का हर नागरिक लगभग 48 हजार रुपये के कर्ज में है। उत्तर प्रदेश की स्थिति सापेक्षिक रूप से और भी खराब है।

प्रतिव्यक्ति आय के लिहाज से उत्तर प्रदेश देश में 32वें पायदान पर है। कार्यसमिति का मानना है कि वर्तमान आर्थिक नीतियों से आर्थिक विषमता, गरीबी और बेरोजगारी बढ़ी है। अरबपतियों के मामले में भारत (138) चीन (799) व अमरीका (626) के पश्चात् तीसरे स्थान पर है तो वहीं भारत औसत आय की दृष्टि से 139 देशों के बाद खड़ा है।

निर्माण क्षेत्र में 50.3 फीसदी की गिरावट तो भयावह है। भारत का मानव विकास में 129वें, नवाचार में 105वें, लोकतंत्र सूचकांक में 51वें, स्वास्थ्य एवं जीवन प्रत्याशा सूचकांक में 150वें एवं लैंगिक अंतराल सूचकांक में 112वें स्थान पर होना प्रतिध्वनित करता है कि वर्तमान निजाम व निजामत के तौर-तरीके में बदलाव की जरूरत है। व्यापार नीति की असफलता का द्योतक 184 अरब डालर का हुआ घाटा है।

देश व प्रदेश में आर्थिक विषमता के दृश्य भयावह एवं खतरनाक हैं। उत्तर प्रदेश की चालू कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय मात्र 70,419 रूपये है जो भारत की औसत आय (1,34,432 रु0) की लगभग आधी और गोवा (4,75,532 रु0) की प्रतिव्यक्ति आय से करीबन सात गुणी कम है। शीर्ष एक फीसदी अमीरों और गरीबों में 60 लाख गुणा अंतर है। इतनी व्यापक आर्थिक विषमता दुनिया में कहीं भी नहीं है। एनसीआरबी (गृह मंत्रालय) की प्रामाणिक अद्यतन रिपोर्ट के अनुसार प्रतिदिन 35 युवा बेरोजगार व 36 उद्यमी आत्महत्या के लिए अभिशप्त हैं।

कार्यसमिति एकांगी निजीकरण के सख्त खिलाफ है और खस्ता वित्तीय हालत व अकुशलता के नाम पर लाभ देने वाली अनेक सार्वजनिक प्रतिष्ठानों को ‘‘मित्र’’ उद्योगपतियों के हाथों औने-पौने दामों में बेचने की कवायदों का पुरजोर प्रतिकार करती है। उल्लेखनीय है कि सार्वजनिक प्रतिष्ठान ही देश की अर्थव्यवस्था को सशक्त करते हुए रोजगार के सर्वाधिक अवसर उपलब्ध कराते हैं।

विगत 45 वर्षों में बेरोजगारी दर अपने अधिकतम स्तर पर है। सरकार इन राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान करने की बजाय विदेशी व कुछ देशी पूंजीशाहों के अनुरूप अर्थतंत्र बनाने के षडयंत्र में लगी हुई है। हाल में अलोकतांत्रिक एवं अप्रिय तरीके से आनन-फानन में पारित कृषि विधेयकों के माध्यम से सरकार किसानों के हितों व सम्मान को पूंजीपतियों के दहलीज पर गिरवी रख चुकी है। यह सम्मेलन ऐसे विधेयकों को तत्काल वापस लेने अथवा किसानों के दृष्टिकोण से सकारात्मक संशोधन करने की मांग करता है।

मित्रों, धरना, प्रदर्शन, सत्याग्रह आदि हमारे संविधानप्रदत्त मूलभूत लोकतांत्रिक नागरिक अधिकार हैं, जिनका सरकार पुलिस बल के दुरुपयोग से बर्बरतापूर्वक दमन कर रही है। हमारे छात्रों व युवाओं पर किया गया लाठी चार्ज पूरी तरह से अमानवीय व असैद्धांतिक कृत्य था। सम्मेलन में कार्यसमिति हाथरस में हुई घटना की घोर भत्र्सना करते हुए पीड़ितों के परिजनों के प्रति सांत्वना प्रकट करती है। वहाँ मीडियाकर्मियों व प्रतिपक्ष के सम्मानित नेताओं को अपमानकारी तौर-तरीके से रोका जाना दुःखद व दुर्भाग्यपूर्ण परिघटना रही। कार्यसमिति मांग करती है कि ऐसे प्रावधान सुनिश्चित किए जांय जिससे ऐसी निन्दनीय व अवांछनीय घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।

प्रसपा की प्रदेश कार्यकारिणी नौकरियों के संविदाकरण के सख्त खिलाफ है। सरकार ने प्रसपा की जोरदार मांग पर संविदाकर्मियों को स्थाई सेवा प्रदान करने की घोषणा की थी किन्तु अब स्थाई सेवाओं को भी संविदा पर आधारित किया जा रहा है। प्रतिभाओं को योग्यतानुसार काम और काम के अनुरूप वेतन-भत्ता प्रदान करना लोककल्याणकारी शासन प्रणाली का कर्तव्य है। यह सरकार अधिकारों का अधिकतम भोग करते हुए कर्तव्यों का न्यूनतम निर्वाह कर रही है।

प्रांतीय कार्यसमिति ‘‘हर घर में एक रोजगार’’ और समान शिक्षा नीति की संस्तुति करती है। सबको गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, शिक्षोपरान्त रोजगार तथा सेवानिवृत्ति पश्चात पुरानी पेंशन मिलनी चाहिए। कार्यसमिति रेखांकित करती है कि उत्तर प्रदेश में शासन तंत्र पूरी तरह से जड़ नौकरशाही के हवाले है। धीरे-धीरे लोकशाही को पंगु बनाया जा रहा है। अपवादस्वरूप एक-दो मंत्री को छोड़कर किसी भी सांसद, विधायक से लेकर जिला पंचायत सदस्य व प्रधान तक को नौकरशाही व दरोगा तंत्र जब चाहे तब अपमानित कर देता है। यही कारण है कि यूपी सुशासन की दृष्टि से बड़े 18 प्रातों में 17वें स्थान पर है। भारत सरकार के प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग द्वारा निर्गत अद्यतन रिपोर्ट इसकी साक्षी है।

कार्यसमिति मानती है कि देश का सर्वतोन्मुखी विकास देशी पूंजी, देशी तकनीकी व देशी भाषा में ही सम्भव है। भाजपा सरकार खुदरा बाजार व रक्षा मामलों में भी विदेशी निवेश की अनुमति देकर देश की सुरक्षा एवं श्रमोन्मुखी अर्थतंत्र की स्वावलम्बिता पर कुठाराघात किया है। केन्द्र सरकार सामरिक मोर्चे पर पूरी तरह विफल रही है। चीन-पाकिस्तान से दो गज जमीन भी दो कार्यकालों में वापस लेना तो दूर मोदी-सरकार नेपाल तक से अपनी भूमि नहीं बचा सकी। वैदेशिक कसौटियों पर वर्तमान भाजपा सरकार अब तक की सबसे कमजोर सरकार सिद्ध हुई है।

हिन्दी हमारी राष्ट्रीय सांस्कृतिक अस्मिता की प्रतीक है। दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी भाषा होने के बावजूद हिन्दी संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा के दर्जा से वंचित है। नरेन्द्र मोदी जी की ‘‘स्वघोषित विश्वविजयी सरकार’’ ने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को उसका अधिकार दिलाने के लिए कोई उल्लेखनीय कदम नहीं उठाया। भारत को अभी भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता प्राप्त नहीं हो सकी है। भारत व हिन्दी के प्रश्न पर कार्यसमिति भारत सरकार से श्वेत-पत्र जारी करने की मांग करती है।

स्वदेशी का बार-बार जाप करने वाली भाजपा सरकार की भारतीय भाषा विरोधी नीतियों के कारण जनभाषायें अपने ही देश में अपनी सार्थकता एवं उपादेयता खोती जा रही हैं। राष्ट्रीय स्तर पर संघ लोक सेवा आयोग एवं प्रांतीय स्तर पर विभिन्न लोक सेवा आयोगों की सेवाओं में हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं के माध्यम से प्रतिभाग करने वाले अभ्यर्थियों की सफलता-दर निरंतर घटती जा रही है। यूपीएससी की प्रतिष्ठित सिविल सर्विस परीक्षा में सफलता दर 5 फीसदी से भी कम है, फलस्वरूप देश की प्रतिभाओं को यथोचित अवसर नहीं मिल पा रहा है। हमारी मांग है कि लोक सेवा आयोग मुख्य परीक्षा में अंग्रेजी की अनिवार्यता को अविलम्ब समाप्त करें।

विद्यार्थियों से जुड़े इतने महत्वपूर्ण व संवेदनशील विषय को उठाने के लिए कार्यसमिति श्री शिवपाल जी को साधुवाद देती है। कार्यसमिति मांग करती है कि जस्टिस सच्चर कमिटि व रंगनाथ मिश्र कमिटि की संस्तुतियों को तत्काल लागू किया जाय। बहुआयामी व बहुस्तरीय भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए के संथानम् समिति की सिफारिशों को भी समसामयिक प्रारूप देते हुए लागू किया जाय। भ्रष्टाचार पर योगी सरकार की पोल पूर्णतया खुल चुकी है। जनमानस में व्याप्त आक्रोश को भटकाने के लिए वर्तमान सरकार अमूर्त, भावनात्मक तथा सांकेतिक मुद्दों को यदा-कदा उछालती रहती है। कभी राष्ट्रवाद की ओट में विभेदनकारी साम्प्रदायिकता की विष-बेल खिलाती है तो कभी युद्ध का काल्पनिक उन्माद पैदा करती है। यह सम्मेलन ऐसी संकीर्ण, संकुचित व विभाजनकारी सोच की भत््र्सना करता है।

प्रसपा कार्यसमिति छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र व नेताजी मुलायम सिंह यादव के परचम वाहक शिष्य शिवपाल सिंह यादव के इस कथन को अपना पूर्ण समर्थन प्रदान करती है कि भारत में राष्ट्रवाद व समाजवाद तात्विक रूप से एक हैं। सच्चा समाजवादी हुए बिना कोई राष्ट्रवादी नहीं हो सकता। हिन्दुस्तान समाजवादी गणतांत्रिक संघ के सेनानियों चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह तथा ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन के नायक व राष्ट्रीय चेतना के प्रतीक लोहिया व लोकनायक जयप्रकाश, शिवपाल जी के इस कथन के जाज्वल्यमान उदाहरण हैं।

प्रांतीय कार्यसमिति आगाह करती है कि कुछ लोग भगवान कृष्ण के नाम पर विभाजन का राग छेड़ने का षडयंत्र कर रहे हैं। कृष्ण के नाम पर नफरत की सियासत की इजाजत किसी को नहीं। कृष्ण जितने ‘मीरा’ व ‘सूर’ के हैं, उतने ही ‘रसखान’ के भी हैं। प्रांतीय कार्यसमिति कोरोना काल के दौरान सरकार के द्वारा प्रदान नागरिक राहत कार्यों एवं स्वास्थ्य सेवाओं से पूर्णतया असंतुष्ट है। पीपीई किट व ऑक्सीमीटर की खरीद-फरोख्त में हुये प्रदेशव्यापी घोटाले को कार्यसमिति ‘अपराध’ ही नहीं ‘पाप’ की संज्ञा देती है।

सरकार के संवेदनहीन रवैये की कटु आलोचना करती है। स्वयं भारतीय गणराज्य के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने स्वीकारा कि विषम कोरोना काल में लघु व मंझोले व्यवसायी ही जनता के काम आए, भुखमरी से बचाया जबकि बड़े वैदेशिक व्यापारिक घरानों के सम्बन्धित प्रतिष्ठान मूकदर्शक बने रहे। ऐसे में कार्यसमिति सवाल उठाती है कि ऐसी आर्थिक नीतियां क्यों बनाई जा रही हैं जो लघु व मंझोले व्यवसायियों के खिलाफ और शोषक पूंजीशाही की पक्षधर है। सर्वविदित है महात्मा गांधी व राममनोहर लोहिया लघु व कुटीर उद्योगों के प्रबल पैरोकार थे।

साथियों, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) की प्रांतीय कार्यकारिणी संकल्प लेती है कि संघर्ष के किसी भी मोर्चे से इंच अथवा लेश मात्र भी पीछे नहीं हटेगी। श्रद्धेय शिवपाल जी व पार्टी का शीर्ष नेतृत्व जो भी निर्णय लेगा, कार्यसमिति मनसा-वाचा-कर्मणा अनुपालन करेगी। पार्टी को प्रदेश के प्रत्येक बूथ, घर व व्यक्ति के हृदय में स्थापित करेगी।