भाजपा सरकार मस्त किसान त्रस्त – अखिलेश यादव

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राजेन्द्र चौधरी

लखनऊ, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा सरकार में सबसे ज्यादा उत्पीड़न के शिकार किसान हुए हैं। न तो उनकी फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बिक रही है और नहीं उनका धान क्रय केन्द्रों से भुगतान हो रहा है। सिंचाई की दिक्कत अलग से है। दीपावली, गोवर्धन पूजा, भैया दूज के त्योहार नज़दीक हैं, किसान परेशान है कि वह कैसे ये पर्व मनाएगा? गन्ना किसानों को चीनी मिलें पिछले सत्र का भुगतान नहीं कर रही है। उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार सिर्फ सख्ती के खोखले आदेश जारी करती है, कोई उनकी परवाह नहीं करता है।

  सरकार धान की कागजी खरीद के आंकड़े पेश करती है। हकीकत यह है कि बहुत जगहों पर धान क्रय केन्द्र खुले ही नहीं है। केन्द्रों में अव्यवस्था है। किसान परेशान हैं न तो फसल की समय से तौल हो रही है और नहीं भुगतान। धान क्रय केन्द्र किसान को साजिशन लौटाने का काम करते हैं जिसका फायदा आसपास सक्रिय बिचौलिए या व्यापारी उठा रहे हैं। अब तो भाजपा विधायक भी धान क्रय केन्द्रों में दलाली के आरोप लगाने लगे हैं। बिचौलिये और व्यापारी 9 सौ से एक हजार रूपये में धान खरीद रहे हैं जबकि सरकारी निर्धारित रेट 1888 रूपये प्रति कुंटल है।

     चीनी मिलों को नए पेराई सत्र से पहले पिछले बकाया का भुगतान करना था। भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री, कमिश्नर और डीएम ने आदेश दिए, बयान दिए पर किसान के हाथ सिर्फ मायूसी लगी है। प्रदेश की 9 चीनी मिलों पर 11 अरब 70 करोड़ 48 लाख रूपये का ही अभी भी बकाया है। 14 दिन में भुगतान और बकाये पर ब्याज जोड़ने के आदेश कब जारी हुए, कब हवा में खो गए, कुछ पता ही नहीं चलता है। अभी भी राज्य के गन्ना किसानों का लगभग 10 हजार करोड़ बकाया है।

   भाजपा सरकार की संवदेनहीनता के चलते बागपत के एक गन्ना किसान की जान ही चली गई। बागपत के गांधी गांव में अलग से गन्ना क्रय केन्द्र खुलवाने की मांग को लेकर किसान श्योराज सिंह (62वर्ष) डीसीओ आफिस पर 5 दिन से धरने पर बैठे थे। उनकी दुःखद मौत हो गई। किसान की आमदनी दुगनी करने, फसल की लागत का ड्योढ़ा मूल्य देने में भाजपा सरकार को तकलीफ है जबकि गरीबों की सब्सिडी छीनने वाली भाजपा सरकार ने 700 करोड़ रूपये अपना गुनाह ढकने के लिए विज्ञापनों पर खर्च कर दिए है।

     वस्तुतः भाजपा सरकार अन्नदाताओं को फकीर मानती है और वह उसे उसी स्तर पर खड़ा देखना चाहती है। गरीब की कमाई जो बैंकों में नोटबंदी के दौर से जमा होने लगी तो बड़े घरानों की लूट में दिलचस्पी के चलते बैंकों ने भी खूब कर्ज बांट दिए। बैंक का कर्ज लेकर बड़े घराने विदेशों में भाग गए और देश-प्रदेश की अर्थव्यवस्था का बंटाधार कर गए।