समर्पण का पर्व है करवा चौथ

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समर्पण, सहजता, त्याग, महानता का पर्व है-करवा चौथ

करवा चौथ भारतीय नारी के समर्पण, सहजता, त्याग, महानता एवं पति परायणा को व्यक्त करता एक पर्व। दिन भर स्वयं भूखा प्यासा रहकर रात्रि को जब मांगने का अवसर आया तो अपने पति देव के मंगलमय, सुखमय और दीर्घायु जीवन की ही याचना करना यह नारी का त्याग और समर्पण नही तो और क्या है…? इस व्रत का संदेश यह है नारी अपने पति की प्रसन्नता के लिए, सलामती के लिए इस हद तक जा सकती है कि पूरे दिन अन्न- जल का त्याग कर सकती है। करवा चौथ नारी के लिए एक व्रत है और पुरुष के लिए एक शर्त। 
 
     शर्त केवल इतनी कि जो नारी आपके लिए इतना कष्ट सहती है उसे कष्ट न दिया जाए। जो नारी आपके लिए समर्पित है उसको और संतप्त न किया जाए। जो नारी प्राणों से बढ़कर आपका सम्मान करती है जीवन भर उसके सम्मान की रक्षा का प्रण आप भी लो। उसे उपहार नहीं आपका प्यार चाहिए।

पति की दीर्घायु और मंगल-कामना हेतु सुहागिन नारियों का यह महान पर्व है। करवा (जल पात्र) द्वारा कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को चन्द्रमा को अर्घ्य देकर पारण (उपवास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को चन्द्रमा को अर्घ्य देकर पारण उपवास के बाद का पहला भोजन) करने का विधान होने से इसका नाम करवा चौथ है।….04 नवंबर को करवा चौथ का त्योहार मनाया जाएगा।  करवा चौथ हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है।  इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चंद्रोदय के बाद पूजा कर अपना व्रत खोलती है। इस बार करवा चौथ का चांद किस समय निकलेगा और क्या है पूजा करने का शुभ मुहूर्त। 

पूजा मुहूर्त- 17:33:28 से 18:39:14 तक,करवा चौथ चंद्रोदय समय 20:11:59 बजे,चतुर्थी तिथि प्रारंभ – सुबह 4 बजकर 24 मिनट पर (4 नवंबर 2020),चतुर्थी तिथि समाप्त – सुबह 6 बजकर 14 मिनट पर  (5 नवंबर 2020) ,चंद्रोदय का समय – रात 8 बजकर 16 मिनट पर,करवा चौथ पूजा मुहूर्त – शाम 5 बजकर 29 मिनट से शाम 6 बजकर 48 मिनट तक।

ज्योतिषीय गणना के मुताबिक इस दिन रोहिणी नक्षत्र और मंगल का योग एक साथ बन रहा है। करवाचौथ पर रोहिणी नक्षत्र का संयोग होना अपने आप में एक अद्भुत है।  यह योग करवा चौथ को और अधिक मंगलकारी बना रहा है। इससे करवा चौथ व्रत करने वाली महिलाओं को पूजन का फल हजारों गुना अधिक मिलेगा। करवा चौथ के दिन स्त्रियां सोलह श्रृंगार करती हैं। किसी भी स्त्री के सोलह श्रृंगार में चूड़ियां बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। इसलिए चूड़ियां पहनते समय हर सुहागिन महिला को कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिए।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अगर चूड़ियां पहनते समय आप कुछ बातों को ध्यान में नहीं रखती हैं तो अशुभ परिणाम की प्राप्ति हो सकती हैं। तो चलिए जानते हैं कि सुहागन महिलाओं को करवा चौथ के दिन चूड़ियां पहनते समय किन बातों को ध्यान में रखना है आवश्यक करवा चौथ पर सभी सुहागन स्त्रियां नया श्रृंगार का सामान खरीदती हैं। इस दिन नए सामान से ही श्रृंगार किया जाता है। इसलिए इस दिन भूलकर भी किसी और महिला की चूड़ी अपने हाथों में न पहनें। मान्यता है कि ऐसा करने से दांपत्य जीवन में दरार आ सकती है। इसलिए करवा चौथ पर अपनी चूड़ियां ही पहनें। 

पीले हरे और लाल रंग को बहुत शुभ माना जाता है। इसलिए इस दिन गुलाबी, लाल, हरी या पीली चूड़ियां पहने। इस दिन महिलाओं के हाथ चूड़ियों से भरे हुए होने चाहिए। इस बात का खास खयाल रखें कि इस दिन चूड़ियों में सफेद रंग बिलकुल भी न हो। सुहागन स्त्रियों के लिए सफेद रंग बहुत अशुभ माना जाता है। शादीशुदा महिलाओं के लिए कभी भी सफेद रंग का उपयोग नहीं करना चाहिए। 

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा-चौथ व्रत करने का विधान है। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। जो सुहागिन स्त्रियाँ अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे यह व्रत रखती हैं।

यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं। इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है। अतः सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षार्थ इस व्रत का सतत पालन करें।