सैफ़ई विश्वविद्यालय सेवा विस्तार घोटाला

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सैफ़ई विश्वविद्यालय पेशेंट किचिन सेवा विस्तार घोटाला-शासन ने 14 अधिकारियों को जाँच पाया दोषी

सैफई/इटावा। सैफई विश्वविद्यालय में लगातार पिछले 15 सालो से रोगियों को आहार वितरित करती चली आ रही फर्म मैसर्स एस सी अग्रवाल पुराना किला लखनऊ के ऊपर सरकार की निगाह अब पूरी तरह टेढ़ी हो चुकी है,अधिकारियों और कर्मचारियों की फर्म पर बर्षो से लगातार होती चली आ रही महरबानिया उनके गले की हड्डी बन चुकी है,
शासन ने 14 अधिकारियों और कर्मचारियों को रोगी आहार सेवा प्रदाता का लगातार होता चला आ रहा सेवा विस्तार करने में हुई वित्तीय अनियमितता का प्रथम द्रष्टया जाँच में दोषी पाया है और विश्वविद्यालय को कार्यवाही करने के आदेश जारी कर दिये है।आदेश जारी होते ही विश्वविद्यालय के अधिकारियों और कर्मचारियों में हड़कंप मच गया है और मीटिंगों का दौर जारी है।

क्या है पूरा मामला अचानक क्यों मचा बबंडर ?

रिम्स एंड आर सैफई जब बनकर तैयार हुआ तब पुराना किला लखनऊ के रहने वाले मेसर्स एस सी अग्रवाल फर्म को इस अस्पताल में भर्ती रोगियों को आहार उपलब्ध करवाये जाने के लिये बर्ष 2006 में पेशेंट किचिन का। ठेका दिया गया जिसका उस वक्त संस्थान से 3 वर्ष के लिये अनुबंध किया गया जो 30-05-2006 से 30-05-2009 तक के लिये था,लेकिन संस्थान में कई निदेशक और वित्त अधिकारी बनते रहे बदलते रहे लेकिन पेशेंट किचिन ठेका अपनी जगह बरकरार रहा,,सेवा विस्तार हर निदेशक हर अधिकारी हर कर्मचारी देता रहा अपनी झोली भरता रहा झोली इतनी भर गई कि जेबें भी शर्मा गयी और करहाकर बोलने लगी कि आ अब कुर्सी से लौट चले।

वर्तमान अधिकारी के पिता चलाते है पेशेंट किचिन

वर्ष 2008 में मेसर्स एस सी अग्रवाल के पुत्र के वी अग्रवाल का संस्थान में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के पद पर चयन हो गया, कर्मचारी आचरण नियमावली 1956 में साफ लिखा है कि किसी भी संस्थान में कार्यरत कोई भी अधिकारी या कर्मचारी अपने किसी सगे सम्बन्धी को संस्थान में किसी भी ठेके में लाभ नही पहुँचा सकता,चूँकि ठेका नियुक्ति से पहले दिया गया ओर नियुक्ति बाद में हुई। लेकिन 2009 में निविदा टेंडर अनुबन्ध समाप्त होने के बाद से यह आरोप लगे कि वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी अपने पिता की फर्म को वर्षों से लगातार सेवा विस्तार प्रदान करवाने व नई निविदा प्रक्रिया न होने में मददगीर साबित हो रहे है जैसे गम्भीर आरोप लगे, फाइल को ले देकर दबा देना नई निविदा प्रकाशित ना करवाना अब कर्मचारियों और अधिकारियों के गले की फांस बन गया।।

मुख्य वित्त एवं लेखाधिकारी अधिकारी के शासन को लिखे पत्र पर जाँच

कोरोना काल मे कोरोना मरीजो और हेल्थ वर्करों को फर्म द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाला खाना फर्म को गले की फांस बन गया,तत्कालीन कुलपति डॉक्टर राजकुमार के राज्य में मई 2020 में फर्म का बिल 28 लाख 99 हजार 208 रुपया अनुमोदनोप्रांत पास कर दिया गया जिस पर वित्त एवं लेखाधिकारी प्रदीप कुमार ने नोट बुक पर 19 मई 2020 को अपनी आपत्ति दर्ज कर टिप्पणी में लिखा”किसी एक एजेंसी को इतनी अधिक धनराशि भुगतान के लिये क्या टेंडर प्रक्रिया नही की जानी चाहिये?कृपया समिति नियमो के आलेख में मंतव्य दे’। प्रदीप कुमार ने शासन को लिखित शिकायत दिनाँक 13 मई 2020,20 मई 2020,26 मई 2020 और शपथ पत्र 28 जुलाई 2020 को शासन में शिकायत दर्ज करवाई।शासन के चिकित्सा शिक्षा बिभाग के प्रमुख सचिव ने इस पूरे मामले की जाँच कानपुर मंडल कानपुर के आयुक्त को सौंप दी।तेजतर्रार आयुक्त ने फर्म की कोरोना की भुगतान सम्बन्धी जाँच न कर वर्षों से काबिज फर्म और विश्वविद्यालय के अधिकारियों के बीच की मिलीभगत का इतिहास खोल दिया”शासन से चिट्ठी आते ही एक मन मे ख्याल आया कि”सूनी हो गयी विश्वविद्यालय के प्रशासन भवन की गलियां,काँटे बन गयी बागों की कलियाँ”

14 अधिकारी और कर्मचारियों को जाँच में दोषी पाया गया

विश्वविद्यालय के अधिकारियों और कर्मचारियों के द्वारा दिये बयान और उपलब्ध कराए गये दस्तावेजो के आधार पर की गई कानपुर कमिश्नर द्वारा गहन जाँच विश्वविद्यालय के लिये बबाले जान बन गयी, शासन को सौंपी जाँच में पाया गया कि विश्वविद्यालय में फर्म एस सी अग्रवाल पिछले 12 सालों से नियमो को तांक पर रखकर अनियमित रूप से चल रही है जबकि उसका अनुबंध 2006 से 2009 तक का था उसके बाद आज तक पेशेंट किचिन की कोई नई निविदा प्रकाशित नही की गई और फर्म लगातार अधिकारियों की लेनदेन, खाओ पियो और जियो जीने दो कि नीति पर चलती रही।।

वित्त नियंत्रक,कुलसचिव समेत 14 लोगो पर कार्यवाही करने के आदेश-

कानपुर मंडल आयुक्त और विशेष सचिव चिकित्सा शिक्षा की जांचोपरांत के बाद शासन के चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आलोक कुमार ने 17 दिसम्बर 2021 को लिखे अलग अलग तीन पत्रों जिसमे कुलपति सैफई विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि फर्म एस सी अग्रवाल को निविदा वर्ष 2006 से 2009 तक के लिए दी गई थी विश्वविद्यालय द्वारा नई निविदा को ना कर उक्त निविदा अनुबंध को ही अनियमित तरीके से बार बार विस्तारित किया जाना किसी एक कॉन्ट्रेक्टर को लंबे समय से बिना किसी टेंडर प्रक्रिया के क्रय आदेश निर्गत करते रहना और समय समय पर विस्तारित करते रहना घोर वित्तीय अनियमितता को श्रेणी में आता है इस अनियमितता के लिये ए के राघव सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी,राकेश कुमार लेखाधिकारी, विपिन कुमार वरिष्ठ लेखाधिकारी,सन्दीप दीक्षित कार्यालय अधीक्षक, डॉक्टर आदेश कुमार प्रभारी पेशेंट किचिन एवं चिकित्सा अधीक्षक,सहायक प्रशासनिक अधिकारी उमाशंकर, मिथलेश दीक्षित,राजकुमार सचवानी, अनुबंध प्रकोष्ठ प्रवीण कुमार शर्मा और डॉक्टर जे पी मथुरिया निविदा प्रकोष्ठ एवं जेडीएमएम प्रथम दृष्ट्या जाँच में दोषी पाये गये साथ ही कुलपति को उक्त सभी दोषियों के खिलाफ नियमानुसार विभागीय कार्यवाही कर शासन को अवगत कराने की बात लिखी गयी है।

इसी तरह वित्त विभाग के प्रमुख सचिव को 17 दिसम्बर को लिखे पत्र में पूर्व सेवानिवृत्त वित्त नियंत्रक पी एन सिंह,शिकायतकर्ता वित्त एवं लेखाधिकारी प्रदीप कुमार और वर्तमान वित्त निदेशक विजय कुमार श्रीवास्तव को भी जाँच में प्रथम दृष्टया दोषी पाया गया इसी तरह उत्तर प्रदेश शासन के नियुक्ति विभाग को 17 दिसम्बर को लिखे पत्र में विश्वविद्यालय के कुलसचिव सुरेश चंद्र शर्मा को भी जाँच में दोषी पाया गया है जो पिछले ढाई साल से फर्म पर महरबान थे उनके खिलाफ भी वित्तीय अनियमितता में दोषी पाये जाने के बाद विभागीय कार्यवाही करने के निर्देश दिये गये है,इन सभी पर नई निविदा टेंडर प्रक्रिया ना अपनाने व फर्म पर वर्षों से लगातार मेहरबानी किये जाने,लगातार सेवा विस्तार देकर लाखो रुपयों की वित्तीय हानि सरकार को पहुंचाये जाने जैसे गम्भीर आरोप लगे है।