21 नवंबर को होगा मंत्रिमंडल में फेरबदल

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क्या सचिन पायलट के समर्थक विधायकों को गहलोत मंत्रिमंडल में शामिल करा पाएंगे अजय माकन।21 नवंबर को होने वाले मंत्रिमंडल फेरबदल की तैयारियां राजभवन में शुरू।

एस0 पी0 मित्तल

राजस्थान में अशोक गहलोत मंत्रिमंडल में 21 नवंबर को फेरबदल होने जा रहा है। इस फेरबदल की तैयारियां राजभवन में शुरू हो चुकी है। राज्यपाल कलराज मिश्र उत्तर प्रदेश के दौरे से 20 नवंबर को जयपुर लौट रहे हैं। चूंकि मंत्रिमंडल में बड़े पैमाने पर फेरबदल होगा, इसलिए सभी मंत्रियों के इस्तीफे लिए जा रहे हैं। संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलने के कारण गोविंद सिंह डोटासरा, रघु शर्मा, हरीश चौधरी अब मंत्री पद पर नहीं रहेंगे। मौजूदा समय में कांग्रेस में सीएम अशोक गहलोत की एकतरफा चल रही है। गहलोत भले ही कांग्रेस हाईकमान की दुहाई दे, लेकिन गहलोत के निर्णयों पर कांग्रेस में कोई आपत्ति करने वाला नहीं है। इसलिए यह सवाल उठा है कि क्या प्रदेश प्रभारी अजय माकन पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के समर्थक विधायकों को गहलोत मंत्रिमंडल में शामिल करा पाएंगे?

मंत्रिमंडल में सूचारू तरीके से फेरबदल हो जाए इसके लिए अजय माकन जयपुर पहुंच गए हैं। हालांकि अभी तक सचिन पायलट के जयपुर आने की खबर नहीं है। सूत्रों की मानें तो सीएम गहलोत के रवैये को देखते हुए पायलट ने अपना पक्ष कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी और प्रदेश प्रभारी अजय माकन के समक्ष दिल्ली में रख दिया है। अब सचिन पायलट अपने पक्ष के अनुरूप कोई बार्गेनिंग नहीं करना चाहते। पायलट ने अपने पक्ष की क्रियान्विति का निर्णय भी अजय माकन पर छोड़ दिया है। सब जानते हैं कि गत वर्ष जुलाई माह में पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस के 18 विधायकों के दिल्ली चले जाने के बाद से ही राजस्थान कांग्रेस में खींचतान चली जा रही है। हालांकि पायलट और उनके समर्थक विधायक एक माह बाद दिल्ली से जयपुर लौट आए, लेकिन सीएम गहलोत का आज भी कहना है कि गत वर्ष भाजपा के इशारे पर उनकी सरकार गिराने की कार्यवाही हुई थी। पायलट के दिल्ली जाने को गहलोत आज भी भाजपा की साजिश से जोड़कर देख रहे हैं। यही वजह है कि पिछले एक वर्ष में दो-तीन बार ही गहलोत और पायलट का आमना सामना हुआ है, यह भी उपचुनावों के अवसर पर। पिछले डेढ़ वर्ष में गहलोत और पायलट के बीच कोई संवाद नहीं हुआ है और न ही व्यक्तिगत स्तर पर कोई मुलाकात हुई है। ऐसे में कांग्रेस की एकता कितनी सफल होती है यह आना वाला समय बताएगा। लेकिन पिछले एक वर्ष में सीएम गहलोत ने संगठन और सरकार को अपने नियंत्रण में कर लिया है।

अब पायलट के समर्थक विधायकों को भी यह पता है कि गहलोत इच्छा होने पर ही उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा। मौजूदा समय में तीस में से 12 पद मंत्रिमंडल में रिक्त हैं। जानकार सूत्रों के अनुसार 21 नवंबर को होने वाले मंत्रिमंडल फेरबदल में सभी 12 पदों को नहीं भरा जाएगा। गहलोत कुछ पदों को रिक्त रखेंगे ताकि शेष विधायकों को भी मंत्री पद का लालच बना रहे। लेकिन संसदीय सचिवों की भी नियुक्ति हो सकती है। सरकार को बचाने के लिए जिन निर्दलीय विधायकों ने साथ दिया उन्हें भी मंत्री पद अथवा संसदीय सचिव का पद मिल सकता है। सीएम गहलोत ने अपनी राजनीतिक कुशलता से जहां रघु शर्मा को गुजरात का प्रभारी बनवा दिया, वहीं हरीश चौधरी को भी पंजाब का प्रभारी बनाया। सचिन पायलट की जगह गोविंद सिंह डोटासरा को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष पूर्व में ही बनवा दिया था। पायलट की भले ही प्रदेश में लोकप्रियता हो, लेकिन कांग्रेस में उनकी स्थिति एक साधारण विधायक की है। सूत्रों की मानें तो मंत्रिमंडल फेरबदल के बाद पायलट को राष्ट्रीय स्तर पर कोई पर दिया जाएगा। अब देखना यह होगा कि 23 माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट की क्या भूमिका होती है? सब जानते हैं कि तीन वर्ष पहले प्रदेश में कांग्रेस को बहुमत दिलवाने में सचिन पायलट की ही महत्वपूर्ण भूमिका थी, तब पायलट प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे। लेकिन तब कांग्रेस हाईकमान ने मुख्यमंत्री के पद पर पायलट का दावा खारिज कर अशोक गहलोत को मौका दिया। पिछले तीन वर्ष में गहलोत ने अपने राजनीतिक चातुर्य से पायलट को प्रदेश की राजनीति से बाहर कर दिया है।