मुजफ्फरनगर जेेल अधीक्षक की सराहनीय पहल

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मुजफ्फरनगर जेेल अधीक्षक की सराहनीय पहल
मुजफ्फरनगर जेेल अधीक्षक की सराहनीय पहल

13 साल बाद बेटे को पाकर फूलों नहीं समाई मां। मुजफ्फरनगर जेेल अधीक्षक सीताराम शर्मा की सराहनीय पहल। आठ साल की उम्र में बाप की डांट से नाराज होकर घर से था भागा। मुजफ्फरनगर जेेल अधीक्षक की सराहनीय पहल

आर.के.यादव

लखनऊ। माँ का दिल नही मानता था कि उसका लाडला लौटकर आ नहीं सकेगा, दिन रात घुट घुट कर रोती थी, तडपती थी बिलखती थी लेकिन बेटे की आस नहीं छोडती थी, माँ को सपने आते थे तथा बेटे की जिंदा होने की दलील देते थे, और एक दिन वह भी आया जब खुशियों के मारे माँ का दिल रो पड़ा… दहाड़ मार पडा, जब पता चला कि उसका 13 साल पहले पिता से नाराज होकर घर से गया बेटा मुजफ़्फरनगर जेल में सुरक्षित और जीवित है। घर में खुशियाँ छा गयीं बेटे से मिलने को तत्पर और आतुर माँ बिलखती हुई, जेल अधीक्षक सीताराम शर्मा की चौखट पर आ खडी़ हुई, जब माँ बेटे को मिलन हुआ तो कायनात भी गमगीन हो गई, माँ अपने लाल से चिपटकर जार जार रोती रही, मानो कोई सपना हकीकत में ढल रहा हो, आठ साल का वो मासूम सा बेटा माँ की बांहों में लिपटकर खो गया और जेल अधीक्षक सीताराम शर्मा और पूरा जेल स्टाफ़ आंखों से छलकते हुए अपने आंसुओं को रोक नहीं पाया, लंबी विरहा और तडफ के बाद माँ बेटे बहुत देर तक घुट घुट कर रोते रहे!! यह कोई फिल्मी कहानी नहीं हकीकत है। यह मार्मिक और भावुक नजारा प्रदेश की मुजफ्फरनगर जेल में देखने को मिला।

परिवार में एक बार फिर लौटा बेटा- जिला कौशांबी के गांव बरगदी का रहने वाला अतुल आज अपनी माँ सावित्री और भाई भानसिंह से मिलकर बहुत खुश था, 13 साल पहले आठ साल उम्र से इधर उधर भटकते हुए नई मंडी थाना क्षेत्र में अंतर्गत तीन माह पूर्व चोरी के मामले में धारा 379/411 के तहत जेल में बंद अतुल अब निश्चिंत है कि जल्दी ही उसका परिवार अब उसे बाहर निकाल लेगा और फिर से वह अपने परिजनों के साथ रह सकेगा। उधर जेल अधीक्षक सीताराम शर्मा ने बताया कि मां-बेटे के मिलने की पुष्टिï करते हुए बताया कि यह एक प्रयास था, जिसमें वह सफल हुए।


बताया गया है कि जेल अधीक्षक सीताराम शर्मा का प्रयास होता है कि हर बंदी तक नजऱ जाये और उसकी बात को सुन सकें, एक दिन उनकी नजऱ अतुल नाम के कम उम्र के दिखने वाले उस बंदी पर भी पड़ी जो गुमसुम और खोया-खोया सा था। अधीक्षर्क ने पूछा जमानत कराकर बाहर क्यों नहीं चले जाते? इस पर उस बंदी ने बताया कि वह कौशांबी का रहने वाला है, अपने गांव और पिता के नाम के अलावा उसे और कोई जानकारी नहीं है। इस पर जेल अधीक्षक को काफी आश्चर्य हुआ और उन्होंने उस बंदी से संबंधित जानकारी और सच तक जाने के लिए डिप्टी जेलर हेमराज को लगाया। पंद्रह दिन की मेहनत भाग दौड़ के बाद उसके गांव का पता चल सका। फिर किसी प्रकार उसके माता-पिता से संपर्क किया गया। जब उन्हें बताया गया कि उनका बेटा मुजफ्फरनगर जेल में बंद है। तो उनका पूरा परिवार हक्का-बक्का रह गया क्योंकि उनका बेटा तो आठ साल पहले पिता से नाराज होकर चला गया था। तभी से उसका कोई अता-पता नहीं था…!

जैसे ही यह जानकारी उनको मिली तो मां और भाई पर रुका नहीं गया। वह मुजफ्फरनगर जेल के लिए तुरंत रवाना हो गए। वह जब जेल पर पहुंचे तो जेल अधीक्षक ने 13 साल पहले बिछड़े मां-बेटे को जब आपस में मिलवाया तो माहौल बहुत ही गमगीन हो गया। मां को यकीन नहीं आ रहा था कि उसका बेटा जिंदा है और उसकी गोद में बैठा हुआ है! एक ऐसा सपना साकार हो गया जिसकी कल्पना मां और उसके परिवार ने नहीं की थी, मां ने दिल से दुआएं दी और कहा की जेल अधीक्षक सीताराम शर्मा और पूरे स्टाफ ने जिस प्रकार से हम मां बेटे को मिलाया है। ऊपर वाला उनके परिवार पर कभी कोई आंच न आने दे और हमेशा इन्हें हर बला से महफूज रखे, मां दिल से दुआएं दे रही थी और आंखों से आंसू भी टपक रहे थे! वास्तव में यह पल बहुत ही भावुक और गमगीन कर देने वाला था। जेल अधीक्षक की इंसानी और मानवीय रिश्तों को निभाने की भी जमकर सराहना हो रही है…! मुजफ्फरनगर जेेल अधीक्षक की सराहनीय पहल