समाजवादी योद्धा का जाना

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दिग्गज समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव का निधन समकालीन भारतीय राजनीति के लिए एक गंभीर क्षति है, उन्हें धर्मनिरपेक्षता तथा सामाजिक न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए हमेशा याद रखा जाएगा।सपा संस्थापक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सैफई पहुंचकर श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। इसके बाद दोपहर तीन बजे मेला ग्राउंड में मुलायम का अंतिम संस्कार होगा। यह मैदान मुलायम सिंह की कोठी से लगभग 500 मीटर की दूरी पर है।

राजू यादव

विगत कुछ समय से बीमार चल रहे दिग्गज समाजवादी नेताजी श्रद्धेय श्री मुलायम सिंह यादव का निधन समकालीन भारतीय राजनीति के लिए एक गंभीर क्षति है।डा0 राम मनोहर लोहिया से प्रभावित होकर राजनीति में आए मुलायम सिंह यादव ने 1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश के शिकोहाबाद की जसवंतनगर सीट से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट से चुनाव जीता था और उसके बाद अगले साढ़े पांच दशक तक वह देश में समाजवादी राजनीति का एक मजबूत स्तंभ बने रहे। ग्रामीण पृष्ठभूमि से आए नेताजी ने जिस तरह से संघर्ष के जरिये अपनी राजनीतिक जमीन तैयार की थी, वह नई पीढ़ी के राजनेताओं और राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए एक सबक है। 1970 के दशक के मध्य में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए इंदिरा सरकार विरोधी आंदोलन में वह न केवल सक्रिय रहे, बल्कि आपातकाल के दौरान जेल भी गए। उसके बाद 1977 में उन्हें जब उत्तर प्रदेश में पहली बार जनता पार्टी की सरकार में मंत्री बनने का मौका मिला, तो उन्होंने सहकारी संस्थाओं में अनुसूचित जाति के लिए सीटें आरक्षित कर अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता स्पष्ट कर दी। यह भी सच है कि लोहिया और जेपी के साथ ही मुलायम पर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का भी खासा प्रभाव था, और एक हद तक वह उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी ही थे।

नेताजी तीन बार, 1989, 1993 और 2003 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा संयुक्त मोर्चा सरकार में रक्षामंत्री भी रहे, और वास्तविकता यह भी है कि संयुक्त मोर्चा के घटकों की आपसी खींचतान में वह प्रधानमंत्री बनने से वंचित रह गए। उनकी इन राजनीतिक उपलब्धियों के साथ ही उनके अंतर्विरोधों पर भी विचार करना समीचीन होगा। मसलन, मंडल बनाम कमंडल के राजनीतिक टकराव के दौर में वह मुख्यमंत्री बनने में तो सफल हुए और उनकी पार्टी का असर उत्तर प्रदेश तथा राष्ट्रीय राजनीति में भी बढ़ा, लेकिन वह समतावादी लोहियावादी राजनीति का जमीनी स्तर पर विस्तार करने में विफल रहे। इसके उल्ट उन पर कुछ जातियों तक अपनी राजनीति को समेटने के आरोप लगे। नेताजी पर राजनीति में परिवारवाद को बढ़ावा देने के आरोप लगे। मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप भी लगा जातिवाद की सियासत की तोहमत भी चस्पा हुई पर आम आदमी से संवाद उनके सुख-दुख में साथ खड़े होने जमीनी राजनीति करने एवं लोगों कोन पकड़ने की उनकी काबिलियत ही थी जिसने उन्हें सियासत का ‘धरती पुत्र’ बना दिया। इसके बावजूद मुलायम सिंह यादव को धर्मनिरपेक्षता तथा सामाजिक न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए हमेशा याद रखा जाएगा।

मुलायम सिंह यादव को आज सैफई में राजकीय सम्मान के साथ विदाई दी जाएगी, क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार ने मुलायम सिंह यादव के निधन पर तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया है। राजकीय सम्मान में राजकीय अंत्येष्टि का आयोजन किया जाता है। जब कोई गणमान्य व्यक्ति इस दुनिया को छोड़कर जाता है तो उसे बंदूकों की सलामी दी जाती है। इतना ही नहीं, गणमान्य व्यक्ति के निधन पर राजकीय सम्मान के तहत सार्वजनिक छुट्टी की भी घोषणा की जाती है। इसके अलावा जिस ताबूत में गणमान्य व्यक्ति के शव को ले जाया जा रहा होता है, उसे तिरंगे में लपेटा जाता है। पहले यह घोषणा केवल केंद्र सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति ही कर सकता था मगर हाल में बदले हुए नियमों के अनुसार अब राज्यों को भी यह अधिकार दिया जा चुका है और वे तय कर सकते हैं कि किसे राजकीय सम्मान देना है और किसे नहीं।

जब भी किसी मंत्री, नेता या गणमान्य व्यक्ति के लिए राजकीय शोक का ऐलान होता तो उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाता है। क्योंकि मुलायम सिंह यादव के लिए भी तीन दिनों के राजकीय शोक का ऐलान हुआ है, ऐसे में उनका भी अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ होगा।राजकीय अंतिम संस्कार के दौरान मृतक के पार्थिव शरीर वाले ताबूत को तिरंगे में लपेटा जाता है।इतना ही नहीं, राजकीय सम्मान में ‘भारतीय ध्वज संहिता’ के अनुसार राष्ट्र ध्वज तिरंगा को आधा झुका दिया जाता है, लेकिन इससे पहले मातृभूमि के सम्मान में इसे मस्तूल के शीर्ष पर उठाया जाता है और फिर नीचे किया जाता है। अंतिम संस्कार के दौरान बंदूकों की सलामी भी दी जाती है।