नहीं रहें मशहूर शायर मुनव्वर राना

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नहीं रहें मशहूर शायर मुनव्वर राना
नहीं रहें मशहूर शायर मुनव्वर राना

मानवीय संबंधो की गरिमा को बचाए रक्खा, तेरी गजलों ने मुझे मानव बनाए रक्खा- नहीं रहें मशहूर शायर मुनव्वर राना। मौत उस की है करे जिस का ज़माना अफ़सोस,यूं तो दुनिया में सभी आए हैं मरने के लिए।

विनोद यादव

हिंदी साहित्य जगत की अदब शायरी और गजलों के बादशाह मशहूर शायर मुनव्वर राना का निधन साहित्य जगत के लिए बड़ी छति हैं। मशहूर शायर मुनव्वर राना का जन्म उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में 26 नवंबर 1952 को हुआ था. मुनव्वर राना अपनी शायरियों के लिए, कविताओं के लिए पहचाने जाते रहे हैं. मुनव्वर राना की किताब ‘शहदाबा’ को 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला था. इसमें कविताओं और शायरियों का संग्रह है. इसके अलावा मुनव्वर को अमीर ख़ुसरौ पुरस्कार, मीर तक़ी मीर पुरस्कार, डॉ ज़ाकिर हुसैन पुरस्कार और सरस्वती समाज पुरस्कार भी मिले हैं. ये सभी साहित्य जगत के बड़े पुरस्कार हैं।

राना ने अपना अधिकांश जीवन कोलकाता में बिताया और भारत और विदेशों दोनों में मुशायरों में उनकी महत्वपूर्ण उपस्थिति थी। कवि उत्तर प्रदेश के राजनीतिक घटनाक्रम में भी सक्रिय थे। राना की बेटी सुमैया समाजवादी पार्टी की सदस्य हैं। राना अक्सर अपने बयानों को लेकर विवादों में घिरे रहते रहे थें।71 वर्षीय शायर को तालिबान का पक्ष लेने और उसकी तुलना महर्षि वाल्मिकी से करने के साथ-साथ सैमुअल पैटी की हत्या का समर्थन करने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा था,मशहूर शायर मुनव्वर राना अपनी कविताओं में फ़ारसी और अरबी के साथ हिंदी और अवधी शब्दों का खूबसूरती से उपयोग करने के लिए जाने जाते थे और मंचों से पढ़ते भी थें।हिंदी शायरी की कविता का एक स्वर्णिम युग का हुआ अंत मुन्नवर राणा साहब आप हमेशा लोगो के दिलो दिमाग में रहेंगे शायद कला साहित्य जगत की सबसे बड़ी क्षति है आपको शत् शत् नमन…. नहीं रहें मशहूर शायर मुनव्वर राना