जातीय रैलियों पर हाईकोर्ट सख़्त मांगा जवाब

179
जातीय रैलियों पर हाईकोर्ट सख़्त मांगा जवाब
जातीय रैलियों पर हाईकोर्ट सख़्त मांगा जवाब

जातीय रैलियों पर हाईकोर्ट सख़्त मांगा जवाब

हाईकोर्ट ने जातीय रैलियों पर मांगा जवाब। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने जाति आधारित रैलियों पर पाबंदी लगाने की याचिका पर सरकार और चुनाव आयोग को हलफनामा दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। केंद्र-राज्य सरकार, चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों को दिया चार हफ्ते का समय।

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में जातीय रैलियों को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि जाति आधारित रैलियों पर क्यों ना हमेशा के लिए बैन लगा दिया जाए। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने जातीय रैलियों पर रोक के मामले में केंद्र व राज्य सरकार समेत केंद्रीय निर्वाचन आयोग, चार राजनीतिक दलों कांग्रेस, भाजपा, सपा व बसपा से चार हफ्ते में जवाब मांगा है। इसके बाद दो सप्ताह में ये सभी पक्षकार अपने प्रति उत्तर दाखिल कर सकेंगे। न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने यह आदेश स्थानीय वकील मोतीलाल यादव की जनहित याचिका पर दिया। याचिका वर्ष 2013 में दायर की गई थी। उसमें कहा गया था कि प्रदेश में जातियों पर आधारित राजनीतिक रैलियों की बाढ़ आ गई है। 11 जुलाई, 2013 किया था। की कोर्ट ने एक अहम आदेश में पूरे प्रदेश में जातियों के आधार पर की जा रही राजनीतिक दलों की रैलियों पर तत्काल रोक लगा दी थी। साथ ही इन पक्षकारों को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने कहा अगर ऐसी रैली होती हैं तो चुनाव आयोग को उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई क्यों नहीं करनी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब 9 साल पर इस पर अंतरिम आदेश जारी किया गया था तो उस पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई हैं

राजनीतिक दलों ने सामाजिक ताने-बाने और सामंजस्य को बिगाड़ा


खंडपीठ ने यह भी कहा था, ‘राजनीतिकरण के माध्यम से जाति व्यवस्था में राजनीतिक आधार तलाशने के अपने प्रयास में ऐसा प्रतीत होता है कि राजनीतिक दलों ने सामाजिक ताने-बाने और सामंजस्य को बिगाड़ दिया है। इसके परिणामस्वरूप सामाजिक विखंडन हुआ है।’याचिकाकर्ता ने कहा कि बहुसंख्यक वर्गो के मतदाताओं को लुभाने के लिए बनायी गई राजनीतिक पार्टियों की ऐसी अलोकतांत्रिक गतिविधियों के कारण देश में जातीय अल्पसंख्यक अपने ही देश में द्वितीय श्रेणी के नागरिकों की श्रेणी में आ गए हैं। राजनीतिक जाति वादिता से कुछ जातियोँ में हीं भावना भी आ रही है।

यह भी पढ़ें- UP को मिला 7000 करोड़ का निवेश प्रस्ताव

लोगों के बीच जहर घोलने का आरोप

याची का तर्क था कि जातीय रैलियों से सामाजिक एकता व समरसता को नुकसान हो रहा है। ये समाज में लोगों के बीच जहर घोलने का काम कर रही है। यह संविधान की मंशा के खिलाफ है। याची ने केंद्र-प्रदेश सरकार, केंद्रीय निर्वाचन आयोग और राजनीतिक दलों को पक्षकार बनाया।

नौ साल बाद फिर से सुनवाई

नौ साल से अधिक समय से लंबित यह मामला बीते 11 नवंबर को कोर्ट के समक्ष आया तो नोटिस के बावजूद पक्षकारों की तरफ से कोई पेश नहीं हुआ। इस पर कोर्ट ने नए नोटिस जारी कर मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किए जाने का आदेश दिया। गत 16 जनवरी को सुनवाई के समय आयोग समेत केंद्र व राज्य सरकार के अधिवक्ता पेश हुए। गौरतलब है कि 2013 आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बसपा ने प्रदेश के करीब 40 जिलों में ब्राह्मण भाईचारा सम्मेलन किए थे। सपा ने भी लखनऊ में ऐसा ही सम्मेलन किया में था। साथ ही उसने मुस्लिम सम्मेलन के भी आयोजित किए थे। 11 जुलाई, 2013 को कोर्ट ने प्रदेश में जातीय रैलियों पर लगाई थी रोक।

पीठ ने मामले में अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने के लिए मुख्य राजनीतिक दलों – भाजपा, समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस को भी नोटिस जारी किया था। अदालत ने 2013 में पारित अपने आदेश में कहा था, ‘जाति आधारित रैलियों को आयोजित करने की अप्रतिबंधित स्वतंत्रता, जो कि पूरी तरह से नापसंद है और आधुनिक पीढ़ी की समझ से परे है और सार्वजनिक हित के विपरीत भी है, को उचित नहीं ठहराया जा सकता है। बल्कि यह कानून के शासन को नकारने और नागरिकों को मौलिक अधिकारों से वंचित रखने के समान है। रैलियां करने वालों के खिलाफ क्यों नहीं करनी चाहिए कार्रवाई…? पीठ ने मुख्य चुनाव आयुक्त से यह भी पूछा था कि आयोग को जाति आधारित रैलियां करने वालों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करनी चाहिए..?

जाति आधारित रैलियों पर हमेशा के लिए लगेगा प्रतिबंध..?


याचिकाकर्ता को उत्तरदाताओं द्वारा दाखिल किए जाने वाले प्रति-शपथपत्र पर प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है। अदालत ने अगली सुनवाई के लिए छह सप्ताह के बाद मामले को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है। जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने 2013 में मोतीलाल यादव द्वारा दायर एक पुरानी जनहित याचिका याचिका पर आदेश पारित किया। पीठ ने इससे पहले उत्तर प्रदेश की चार प्रमुख राजनीतिक पार्टियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था कि क्यों न राज्य में जाति आधारित रैलियों पर हमेशा के लिए पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया जाए।

जातीय रैलियों पर हाईकोर्ट सख़्त मांगा जवाब