तूने आँगन अपना बुहारा नहीं कैसे आएँगे भगवान ?

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सोच रहा था कि हमारे रामजी का भी स्वभाव अति विचित्र है, आमंत्रित करो तो आते नहीं और बिना आमंत्रित किए ही पधार जाते हैं l देखिए न , क्या शबरी ने रामजी को बुलाया ? हाँ उनकी आगमन की दीर्घकालीन प्रतीक्षा अवश्य करती रही l क्या सुतीक्षण, शरभंग, अगस्त्य जैसी विभूतियों ने राम को बुलाया ? कभी नहीं, हाँ उनके दर्शन करने का साधन अवश्य करते रहे l तो महाराज !

दुर्योधन ने श्रीकृष्ण को आमंत्रित करने के लिए बहुत नाक रगड़ी , किन्तु लाटसाहब तो नाक ही सिकोड़ते रहे, जैसे तैसे हस्तिनापुर गए भी तो उनको दुर्योधन के विभिन्न प्रकार के भोजन और सेवा के साधनों में दुर्गंध ही दुर्गंध आई, सो महोदय नाक सिकोड़ते हुए उसे त्यागकर विदुरानी के यहाँ पहुँच गए, जहां उनको आमंत्रित ही नहीं किया गया था l

भैया—“निर्मल मन जन सो मोहि पावा मोहि कपट छल छिद्र न भावा”—-ही अटल सत्य है, ईश्वर तो हृदय प्रदेश की निर्मलता की प्रतीक्षा करते हैं, सो अंत:करण की शुचिता का साधन करना चाहिए l भवन के निर्मल होते ही श्रीराम स्व-परिवार सहित स्वयं पधार जाते हैं और जब उनका आगमन होता है, तब तैंतीस करोड़ देवताओं के आगमन में भी संशय कैसा?