भाजपा,कांग्रेस,सपा प्रदेश अध्यक्ष की तलाश में…

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कांग्रेस, सपा,भाजपा नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश में कर रहे कवायद,कांग्रेस ब्राह्मण या पिछड़े को दे सकती है जिम्मेदारी, दलित नाम पर भी मंथन।

भारतीय जनता पार्टी विधानसभा चुनाव सम्पन्न होने के बाद ही मिशन-2024 में अभी से जुट गई है।एक व्यक्ति एक पद कद नियम के चलते स्वतंत्रदेव सिंह की प्रदेश अध्यक्ष पद से छुट्टी निश्चित है।क्योंकि उन्हें योगी मन्त्रिमण्डल में सिंचाई एवं जलशक्ति मंत्री की जिम्मेदारी दी गयी है।पार्टी सूत्रों के अनुसार पार्टी नेतृत्व व संघ के रणनीतिकार प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर मंथन में जुटे हुए हैं।पिछले दिनों पूर्व ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा का नाम तेजी से चल रहा था,पर इस नाम पर विराम लग गया।वैसे ब्राह्मण को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की ज्यादा सम्भावना है।श्रीकांत शर्मा इसके लिए फिट बैठते हैं।मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राजपूत व पूर्वांचल के हैं,ऐसे में जातीय व क्षेत्रीय सन्तुलन बनाने के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण श्रीकांत शर्मा को यह जिम्मेदारी मिलनी लगभग तय है।पिछड़े वर्ग से बाबूराम निषाद के नाम पर भी चर्चा है,पर योगी आदित्यनाथ इन्हें पसन्द नहीं करते।


समाजवादी पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनाव से पूर्व जब पार्टी में घमासान मची थी,तब नरेश उत्तम को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था।पर,ये पार्टी के लिए शुभ साबित नहीं हुए।नरेश उत्तम कुर्मी जाति के हैं,लेकिन जातीय पहचान नहीं बना पाए।जब से इन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली है,पार्टी को मुंह की खानी पड़ी है।इनके नेटडितव में 2017 व 2022 के विधानसभा चुनाव,2018 के नगर निकाय चुनाव व 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को हार का मुँह देखना पड़ा है।हार दर हार मिलने के बाद भी ये नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए न तो स्वयं पद से इस्तीफा दिए और न राष्ट्रीय नेतृत्व ने ही प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन का निर्णय लिया।पार्टी के अधिकांश पदाधिकारी व कार्यकर्ता नेतृत्व में परिवर्तन के पक्षधर हैं।सम्भावना है कि समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी किसी दूसरे को दी जायेगी।पर,सपा में इस पद के लिए उपयुक्त कोई गैरयादव चेहरा नहीं है।एक समय जब लौटनराम निषाद समाजवादी पार्टी पिछड़ावर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष थे,तब उनका नाम तेजी से प्रदेश अध्यक्ष के लिए चला था।लोग माँग भी करना शुरू कर दिए थे कि लौटनराम निषाद को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जाय।तब तक राम व परशुराम के मुद्दे पर फरसावादियों का लौटनराम निषाद पर फरसा चलवा दिया गया।इस समय ये कांग्रेस में हैं,पर अभी भी समाजवादियों की पसन्द बने हुए हैं।अपनी कार्यशैली, मजबूत व जानदार बैचारिकी के कारण पिछड़ों,दलितों,अकलियतों के बीच पूरे प्रदेश में पहचान रखते हैं।


विधानसभा चुनाव-2022 में कांग्रेस का प्रदर्शन अभी तक का सबसे प्रदर्शन रहा है।राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गाँधी को उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी मिलने के बाद ऐसा लगने लगा था कि कांग्रेस का प्रदर्शन काफी अच्छा रहेगा।पर,जब परिणाम आया तो कांग्रेस औंधे मुंह गिर पड़ी।इस समय कांग्रेस बुरे दौर से गुजर रही है।इस चुनाव में उसे मात्र 2.55 प्रतिशत मत तक सिमटना पड़ा।उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस में जान आ गयी थी।दो राय नहीं कि लल्लू काफी सक्रिय रहे और अपने आंदोलनों से चर्चा में बने रहते थे।पर कांग्रेस की ब्राह्मण लॉबी इन्हें पसन्द नहीं करती थी।कारण कि ये अतिपिछड़ी जाति के हैं और कांग्रेस में शुरू से ही ब्राह्मणों का वर्चस्व कायम रहा है।और पार्टी को इस स्तर पर पहुँचाने में ब्राह्मण ही जिम्मेदार रहे हैं।


कांग्रेस में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नए प्रदेश अध्यक्ष के लिए दिल्ली में खूब मंथन चल रहा है।पार्टी सूत्रों की माने तो ब्राह्मण या पिछड़े वर्ग के नामों पर बिचार चल रहा है।ब्राह्मण के नाम पर पूर्व सांसद राजेश मिश्रा का तो पिछड़े वर्ग में महराजगंज की फरेन्दा सीट से चुनाव जीते वीरेन्द्र चौधरी का नाम हवा में तैर रहा है।वीरेन्द्र चौधरी कुर्मी जाति के हैं,लेकिन इनकी पहचान बहुत सीमित है।मिशन-2024 के लिए कांग्रेस रणनीतिकार ऐसे नाम की तलाश कर रहे हैं,जिसका जातीय आधार हो और पार्टी के वोटबैंक में ठीक ठाक वृध्दि कर सके।कुछ दिनों से दलित वर्ग के पीएल पुनिया का भी नाम सुनने को मिल रहा है जो पूर्व सांसद व पूर्व आईएएस है।लेकिन ये जिस दलित जाति से ताल्लुक दखते हैं,उस धानुक बिरादरी की संख्या मात्र 0.32 प्रतिशत है और कानपुर,आगरा,लखनऊ मण्डल के कुछ ही जिलों में पाई जाति है।पीएल पुनिया भले ही उत्तर प्रदेश शासन में मुख्य सचिव के साथ लोकसभा,राज्यसभा के सांसद व राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष रहे हैं,पर इनकी पहचान बाराबंकी,लखनऊ तक ही सीमित है।


जातिगत समीकरण को देखते हुए कांग्रेस वीरेन्द्र चौधरी या लौटनराम निषाद को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी सकती है।उत्तर प्रदेश में जहाँ कुर्मी की आबादी 4.03% है,वही निषाद समूह की जातियों की आबादी 10 प्रतिशत से अधिक है।निषाद ऐसा जातीय समूह है जो प्रदेश के हर क्षेत्र में पाया जाता है और निषाद जाति अभी तक किसी पार्टी से मजबूती से बंधा हुआ नहीं है।लौटनराम निषाद पिछड़े दलित वर्ग के एक मुखर व तेज़ तर्रार नेता हैं,जिनकी पूरे प्रदेश में पकड़ व पहचान है।ये सपा पिछड़ावर्ग प्रकोष्ठ व विकासशील इंसान पार्टी(वीआईपी) के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं।छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की चली तो लौटनराम निषाद को अध्यक्ष बनाना तय है।दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जाता है।केन्द्र की सत्ता पाने के लिए कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से सक्रिय होना पड़ेगा।चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर इस समय कांग्रेस के करीब हैं।उन्होंने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को एकला चलो का सुझाव दे चुके हैं।2009 में जब कांग्रेस केन्द्र में सरकार बनाई थी,उस समय उसे उत्तर प्रदेश में 22 सीटों पर विजय मिली थी।


उत्तर प्रदेश का जातिगत समीकरण :- अविभाजित उत्तर प्रदेश में द्विज जातियों की कुल संख्या 20.50 प्रतिशत थी,जिसमें 9.2% ब्राह्मण,7.2% राजपूत,2.5% वैश्य,1.0% कायस्थ,0.04% भूमिहार,0.01% त्यागी व 0.01% खत्री थे।उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड के अलग होने से राजपूत व ब्राह्मण का बड़ा भाग कटकर उधर चला गया,जिससे उनकी संख्या में लगभग 5% की कमी होनी स्वाभाविक है।मण्डल कमीशन के अनुसार देश में 13.10% सवर्ण,43.70% पिछड़ी जाति,17.60% गैर हिन्दू अल्पसंख्यक,16.60% अनुसूचित जाति,8.60% अनु.जनजाति व 0.40% रेसलर व अन्य थे।सामाजिक न्याय समिति-2001 के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में हिन्दू-मुस्लिम सवर्ण-20.94% थे।पिछड़ी जातियों में शामिल मुख्य जातियों में यादव-10.48%, निषाद-7.98%, कोयरी/मौर्य/काछी/कुशवाहा/शाक्य/सैनी-4.51%,कुर्मी-4.03%,लोधी/किसान-3.28%,पाल/गड़ेरिया-2.39%,विश्वकर्मा(बढ़ई, लोहार)-2.26%, तेली/साहू-2.18%, जाट-1.95%, प्रजापति-1.84%,नाई/सबिता-1.63%, राजभर-1.32%,चौहान-1.26%,गूजर-0.92% व कानू/भुर्जी-0.77% थे।गौर करने वाली बात है कि यादव,कुर्मी,जाट,गूजर, कुशवाहा/मौर्य,राजभर,चौहान, पाल आदि मुख्य रूप से ग्रामीण अंचल में पाई जाने वाली जातियाँ हैं,वहीं निषाद, कश्यप, लोधी, विश्वकर्मा, नाई, कानू/भुर्जी,प्रजापति,साहू/तेली ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों में समान रूप से पाई जाति हैं,जिसके कारण कुल जनसंख्या में इनकी संख्या का प्रतिशत बढ़ जाएगा और यादव,कुर्मी,मौर्य/कुशवाहा,पाल,जाट आदि की संख्या घट जाएगी।


अनुसूचित जाति में सम्मिलित मुख्य जातियाँ- उत्तर प्रदेश की अनुसूचित जातियों में मुख्य रूप से चमार/जाटव,पासी,धोबी,कोरी,वाल्मीकि, खटिक, धानुक,कोल,गोंड़ का नाम शामिल है।उत्तर प्रदेश के जातिगत समीकरण में सिर्फ 4 जातियाँ ऐसी हैं जो 1 प्रतिशत से अधिक हैं।अनुसूचित जातियों में चमार/जाटव 57 प्रतिशत से अधिक हैं।प्रदेश की जनसंख्या में चमार जाटव-11.43%, पासी-3.26%, धोबी-1.59%, कोरी-1.10%, वाल्मीकि-0.61%, खटिक-0.37%,धानुक-0.32%,कोल-0.23% व गोंड़-0.22% हैं।सेन्सस-2011 के अनुसार 66 अनुसूचित जातियों की कुल संख्या 20.53% व जनजातियों की 0.57% थी।