विश्व एकता की प्रतिबद्धता के कारण अनूठा है भारतीय संविधान

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भारतीय संविधान सारे विश्व में ‘‘विश्व एकता की प्रतिबद्धता के कारण अनूठा है!सदियों से प्रतीक्षा थी जिसकी वह समय अब आ गया है

डा0 जगदीश गांधी

भारत की आजादी 15 अगस्त 1947 के बाद 2 वर्ष 11 माह तथा 18 दिन की कड़ी मेहनत एवं गहन विचार- विमर्श के बाद भारतीय संविधान को 26 जनवरी 1950 को आधिकारिक रूप से अपनाया गया। इस दिन भारत एक सम्पूर्ण गणतान्त्रिक देश बन गया। तब से 26 जनवरी को हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं। हमें विश्व के
सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने का गर्व है। हमारा लोकतंत्र धीरे-धीरे परिपक्व हो रहा है। हम पहले से कहीं ज्यादा समझदार होते जा रहे हैं। धीरे-धीरे हमें लोकतंत्र की अहमियत समझ में आने लगी है। सिर्फ लोकतांत्रिक व्यवस्था में ही व्यक्ति खुलकर जी सकता है। स्वयं के व्यक्तित्व का विकास कर सकता है और अपनी सभी महत्वाकांक्षाएँ पूरी कर सकता है।


गणतन्त्र (गण़$तंत्र) का अर्थ है, जनता के द्वारा जनता के लिये शासन। इस व्यवस्था को हम सभी गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। वैसे तो भारत में सभी पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाये जाते हैं, परन्तु गणतंत्र दिवस को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाने का विशेष महत्व हैं। इस पर्व का महत्व इसलिये भी बढ़ जाता है क्योंकि भारत का प्रत्येक
नागरिक एक साथ मिलकर मनाते हैं। 26 जनवरी, 1950 भारतीय इतिहास में इसलिये महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि भारत का संविधान, इसी दिन अस्तित्व में आया और भारत वास्तव में एक संप्रभु देश बना। भारत का संविधान लिखित एवं सबसे बड़ा संविधान है। भारतीय संविधान के निर्माताओं ने विश्व के अनेक संविधानों के अच्छे लक्षणों को अपने संविधान में आत्मसात करने का प्रयास किया है। देश को गौरवशाली गणतन्त्र राष्ट्र बनाने में जिन देशभक्तांे ने अपना बलिदान दिया उन्हंे याद करके भावांजली देने का पर्व है, 26 जनवरी।


लोकतंत्र बनेगा गुणतंत्र:- मातृभूमि के सम्मान एवं उसकी आजादी के लिये असंख्य वीरों ने अपने जीवन की आहूति दी थी। देशभक्तों की गाथाओं से भारतीय इतिहास के पृष्ठ भरे हुए हैं। देशप्रेम की भावना से ओत-प्रोत हजारों की संख्या में भारत माता के वीर सपूतों ने, भारत को स्वतंत्रता दिलाने में अपना सर्वस्य न्योछावर कर दिया था। ऐसे ही महान देशभक्तों के त्याग और बलिदान के परिणाम स्वरूप हमारा देश, गणतान्त्रिक देश हो सका। आज हमारा समाज परिवर्तित हो रहा है। मीडिया जाग्रत हो रही है। जनता भी जाग रही है। युवा सोच का विकास हो रहा है। शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है। अति आधुनिक टेक्नोलॉजी से लैश युवकों की संख्या तेजी से बढती जा रही है।


26 जनवरी को उन सभी देशभक्तों को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए, गणतंत्र दिवस का राष्ट्रीय पर्व भारतवर्ष के कोने-कोने में बड़े उत्साह तथा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। प्रति वर्ष इस दिन प्रभात फेरियां निकाली जाती है। भारत की राजधानी दिल्ली समेत प्रत्येक राज्य तथा विदेशों के भारतीय राजदूतावासों में भी यह त्योहार बडे उल्लास व गर्व के साथ मनाया जाता है। 26 जनवरी का पर्व देशभक्तों के त्याग, तपस्या और बलिदान की अमर कहानी समेटे हुए है। प्रत्येक भारतीय को अपने देश की आजादी प्यारी थी। भारत की भूमि पर पग-पग में उत्सर्ग और शौर्य का इतिहास अंकित है। किसी ने सच ही कहा है- “कण-कण में सोया शहीद, पत्थर-पत्थर इतिहास है।“ ऐसे ही अनेक देश भक्तों की शहादत का परिणाम है, हमारा गणतान्त्रिक देश भारत। 26 जनवरी का पावन पर्व आज भी हर दिल में राष्ट्रीय भावना की मशाल को प्रज्जलित कर रहा है। लहराता हुआ तिरंगा रोम-रोम में जोश का संचार कर रहा है, चहुँओर खुशियों की सौगात है। हम सब मिलकर उन सभी अमर बलिदानियों को अपनी भावांजली से नमन करें, वंदन करें।

संसार में सभी बड़ी वैचारिक क्रांतियाँ बड़े विचारों के कारण हुई हैं! संसार के महान विचारक विक्टर ह्यूगो ने कहा था ‘इस संसार में जितनी भी सैन्यशक्ति है उससे भी अधिक शक्तिशाली एक और चीज है और वह है एक विचार जिसका कि समय आ गया है।’ संसार में वह विचार जिसका समय आ चुका है केवल भारत के पास है और वह विचार
है – ‘उदार चरितानामतु वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात उदार चरित्र वालों के लिए सम्पूर्ण वसुधा अपना स्वयं का ही परिवार है। हम सभी संसारवासी एक ही परमात्मा की संतानें होने के नाते सारा संसार हमारा अपना ही परिवार है।


इसी उपरोक्त विचार के आधार पर भारतीय संविधान निर्माता समिति के अध्यक्ष महान युगदृष्टा और इस संसार में आधुनिक युग के सामाजिक न्याय के योद्धा डा0 बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर ने संविधान निर्माता समिति के सभी सदस्यों तथा संविधान सभा की सर्वसम्मति से भारतीय संविधान में अनुच्छेद 51 को सम्मिलित किया। संसार की समस्त सैन्य शक्ति से अधिक शक्तिशाली विचार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 की भावना है, जिसके अनुरूप सारे विश्व में एकता एवं शांति की स्थापना के प्रयास को अब संसार भर में मुख्य न्यायाधीशों, न्यायविदों एवं राष्ट्राध्यक्षों ने सिटी मोन्टेसरी स्कूल द्वारा पिछले 22 वर्षो में प्रतिवर्ष आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय मुख्य न्यायाधीश सम्मेलन के माध्यम से एकमत से स्वीकार कर लिया है। मेरे संयोजन में वर्ष 2001 से 2022 तक प्रतिवर्ष आयोजित विश्व के मुख्य न्यायाधीशों के अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में अब तक 136 देशों के 1361 मुख्य न्यायाधीश, न्यायाधीश, हेड ऑफ दि स्टेट/गवर्नमेन्ट, संसद के स्पीकरों ने प्रतिभाग किया है। अतः भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 ही वह विचार है जो इस युग की संसार की समस्त सैन्यशक्ति से भी अधिक शक्तिशाली विचार है।


बाबा साहेब डा0 भीमराव अम्बेडकर ने भारतीय संसद में अपने भाषण में कहा था कि – ‘कानून और व्यवस्था ही किसी भी राजनीति रूपी शरीर की औषधि है और जब राजनीति रूपी शरीर बीमार हो जाये तो हमें कानून और व्यवस्था रूपी औषधि का उपयोग राजनीति रूपी शरीर को स्वस्थ करने के लिए करना चाहिए।’ आज विश्व का
राजनैतिक शरीर पूर्णतया बीमार हो गया है उसे कानून और व्यवस्था रूपी औषधि की तत्काल आवश्यकता है। (8) अब केवल भारत के पास ही इस संसार को अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद तथा युद्धों से बचाने का विचार उपलब्घ है। इस युग की संसार की समस्त सैन्यशक्ति से भी अधिक शक्तिशाली विचार ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ एवं इसी विचार
से प्रेरित होकर भारतीय संविधान में शामिल किया गया ‘अनुच्छेद 51’ का विचार है। इसके अतिरिक्त इस संसार को बचाने का दूसरा कोई विचार आज संसार भर में उपलब्ध नहीं है।


भारतीय संविधान में अनुच्छेद 51 निम्न प्रकार है:-


(ए) भारत का गणराज्य अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा की अभिवृद्धि (संसार के सभी राष्ट्रों के सहयोग से) करने का प्रयास करेगा।
(बी) भारत का गणराज्य संसार के सभी राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखने का (संसार के सभी राष्ट्रों के सहयोग से) प्रयत्न करेगा,
(सी) भारत का गणराज्य अन्तर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करने अर्थात उसका पालन करने की भावना की अभिवृद्धि (संसार के सभी राष्ट्रों के सहयोग से) करेगा।
(डी) भारत का गणराज्य अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का हल माध्यास्थम द्वारा कराने का प्रयास करेगा। अर्थात भारत विश्व के सभी राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्षों की अविलम्ब मीटिंग बुलाकर सर्वसम्मति से अथवा अधिकांश राष्ट्रों की सहमति से ‘जनतान्त्रिक विश्व व्यवस्था’ का गठन करने का प्रयास करेगा। जिसके द्वारा संसार के सभी आपसी मतभेदों को हल करने के हेतु न्याय संगत कानून बनाया जा सके और जिसके द्वारा विश्व की एक सशक्त विश्व व्यवस्था एवं एक सशक्त विश्व न्यायालय का गठन किया जा सके ताकि अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का हल आसानी से विश्व की सरकार, विश्व न्यायालय अथवा विश्व संसद के द्वारा हो सके।

वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में संयुक्त राष्ट्र संघ को और अधिक मजबूत किये जाने की आवश्यकता है, जिससे यह संस्था युद्धों को रोकने, अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का निपटारा करने, आतंकवाद को रोकने, नाभिकीय हथियारों की समाप्ति एवं पर्यावरण संरक्षण आदि तमाम वैश्विक समस्याओं को प्रभावशाली ढंग से सुलझाने में सक्षम हो सकें क्योंकि तभी विश्व में शान्ति व एकता की स्थापना संभव हो सकेगी। सी0एम0एस0 विगत 62 वर्षों से लगातार विश्व के दो अरब पचास करोड़ से अधिक बच्चों के सुरक्षित भविष्य हेतु विश्व एकता व विश्व शान्ति का बिगुल बजा रहा है परन्तु यू0एन0ओ0 के ऑफिसियल एन0जी0ओ0 का दर्जा मिलने के बाद विश्व पटल पर इसकी प्रतिध्वनि अब और जोरदार ढंग से सुनाई देगी।


सी0एम0एस0 की सम्पूर्ण शिक्षा पद्धति का मूल यही है कि भावी पीढ़ी को सम्पूर्ण मानव जाति की सेवा के लिए तैयार किया जा सके, यही कारण है सर्वधर्म समभाव, विश्व मानवता की सेवा, विश्व बन्धुत्व व विश्व एकता के सद्प्रयास इस विद्यालय को एक अनूठा रंग प्रदान करते हैं जिसकी मिसाल शायद ही विश्व में कहीं और मिल सके।विश्व का धन लड़ाई में नहीं भलाई में खर्च होना चाहिए। सीएमएस बच्चों को विश्व नागरिक के रूप में प्रशिक्षित कर रहा है ताकि वे बड़े होकर दुनिया से लड़ाईयाँ मिटाकर विश्व एकता तथा विश्व शान्ति की स्थापना करें। हमारा कर्तव्य एवं दायित्व बनता है कि हम अपने देश की ‘वसुधैव कुटम्बकम्’ की महान संस्कृति एवं सभ्यता तथां भारतीय संविधान की मूल भावना के अनुरूप अपने देश के साथ ही साथ सारे विश्व में एकता एवं शांति की स्थापना के लिए सतत् प्रयासरत् रहें।