आजादी के समय जो सपना देखा था वह आज भी अधूरा है। तो क्या हमें आजादी मिली है। जो मिली है वह है सम-झौते की आजादी। जिसने हमारे देश में विभिन्न समस्याओं को जन्म दिया है। जैसे एक जैसी शिक्षा प्रणाली ना होना, बे-रोजगारी की समस्या स्वास्थय की समस्या और न्याय व्यवस्था में भेद न्याय व्यवस्था से लोगों का विशवास उठ गया है। दूसरा पक्ष वह है। जिसने अधिक भौतिक सफलता प्राप्त की है। दूसरे वह उपेक्षित वर्ग है। जो आज आंतकवाद नक्सलवाद से राष्ट्र को हानि पहुँचा रहा है। कारण हमारे सामने है। हमें इसका समाधान देना है अगर युवा पीढ़ी इसमें भागीदारी नहीं करती है। तो इस प्रकार गर्त में जाते रहेगें दूसरी विचार धारा है।
१५अगस्त कहता है हमसे
भाई-भाई में क्यों आज दूरी है,
एक दूजे के खून के प्यासे
कैसी अब यह मजबुरी है ;
क्या आज़ादी अभी भी अधुरी है ?
भ्रष्टाचार के पहियों तले
सढ़ती-गलती क्यों यह मशीनरी हैं ,
धन के नशे में धुत देश के
सभी बड़े-बड़े अधिकारी हैं ;
क्या आज़ादी अभी भी अधुरी है ?
आजादी के नाम डंका बजा
आज नंगी हमारी नारी हैं,
सदियों पुरानी संस्कृति की
कैसी यह विचित्र बीमारी है ;
क्या आज़ादी अभी भी अधुरी है ?
कहीं ससुराल में जलती बेटी
कहीं उसके सपनें सिन्दूरी हैं,
दहेज़ के ग्रास से त्रस्त समाज
कैसी जानलेवा यह महामारी है ;
क्या आज़ादी अभी भी अधुरी है ?
दर-दर भटकता नौजवान
न कहीं मिलती उसे नौकरी है ,
आज़ाद भारत वर्ष की आज
यह कैसी बेवसी और लाचारी है ;
क्या आज़ादी अभी भी अधुरी है ?
भेद की परिभाषा आज बदली है
लाल खून में परिवर्तन भारी है,
अनियंत्रित भूख से पीड़ित
क्यों आज यह सत्ता हमारी है ;
क्या आज़ादी अभी भी अधुरी है ?
इतने बरस गुजरे फि भी
वही घिनौनी गरीबी अमीरी है,
खोखले वायदों से हरबार
होती वोट की खरीदारी है ;
क्या आज़ादी अभी भी अधुरी है ?
(यह रचना मौलिक एवं अप्रकाशित है ।)