क्या वह दिन महाशिवरात्रि का…

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सोम प्रकृति की सृजन शक्ति है

हिंदू धर्म के अनुसार महाशिवरात्रि वर्ष में एक बार आती है  जिसे धर्म ग्रंथो के अनुसार  सबसे शुभ दिन माना जाता है। सभी देवताओं के देवता और अस्तित्व के राजा ने आज अपने सच्चे भक्तों पर अपने सच्चे आशीर्वाद देने के लिए चुना है। कई संतों और साधुओं ने दावा किया है कि इस दिन चमत्कारिक रूप से जादुई होने की क्षमता है जो नकारात्मक शक्तियों के सबसे मजबूत को खत्म करने की क्षमता रखते हैं। ज्योतिषीय नेताओं का कहना है कि इस दिन ग्रहों की स्थिति ऐसी है कि मानव शरीर के सभी चक्र शुद्ध हो जाते हैं जिससे प्रत्येक सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।

महाशिवरात्रि आध्यात्मिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण है। इस रात धरती के उत्तरी गोलार्ध की स्थिति ऐसी होती है कि इंसान के शरीर में ऊर्जा कुदरती रूप से ऊपर की ओर बढ़ती है। इस दिन प्रकृति इंसान को अपने आध्यात्मिक चरम पर पहुंचने के लिए प्रेरित करती है। गृहस्थ जीवन में रहने वाले लोग महाशिवरात्रि को शिव की विवाह वर्षगांठ के रूप में मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाएं रखने वाले लोग इस दिन को शिव की दुश्मनों पर विजय के रूप में देखते हैं।

पुराणों में कहा जाता है कि एक समय माता पार्वती शिवजी के साथ कैलाश पर्वत पर बैठी थीं। उसी समय माता पार्वती ने प्रश्न किया कि इस तरह का कोई व्रत है जिसके करने से मनुष्य आपके धाम को प्राप्त कर सके ? तब उन्होंने यह कथा सुनाई थी कि प्रत्यना नामक देश में एक व्यक्ति रहता था, जो जीवों को बेचकर अपना भरण पोषण करता था। उसने सेठ से धन उधार ले रखा था। समय पर कर्ज न चुकाने के कारण सेठ ने उसको शिवमठ में बन्द कर दिया। संयोग से उस दिन फाल्गुन बदी त्रयोदशी थी। वहां रातभर कथा, पूजा होती रही जिसे उसने भी सुना। अगले दिन शीघ्र कर्ज चुकाने की शर्त पर उसे छोड़ा गया। उसने सोचा रात को नदी के किनारे बैठना चाहिये। वहां जरूर कोई न कोई जानवर पानी पीने आयेगा। अत: उसने पास के बेल वृक्ष पर बैठने का स्थान बना लिया। उस बील के नीचे शिवलिंग था। जब वह अपने छिपने का स्थान बना रहा था उस समय बेल के पत्तों को तोड़कर फेंकता जाता था जो शिवलिंग पर ही गिरते थे। वह दो दिन का भूखा था। इस तरह से वह अनजाने में ही शिवरात्रि का व्रत कर ही चुका था, साथ ही शिवलिंग पर बेल-पत्र भी अपने आप चढ़ते गये।

एक पहर रात्रि बीतने पर एक गर्भवती हिरणी पानी पीने आई। उस व्याध ने तीर को धनुष पर चढ़ाया किन्तु हिरणी की कातर वाणी सुनकर उसे इस शर्त पर जाने दिया कि सुबह होने पर वह स्वयं आयेगी। दूसरे पहर में दूसरी हिरणी आई। उसे भी छोड़ दिया। तीसरे पहर भी एक हिरणी आई उसे भी उसने छोड़ दिया और सभी ने यही कहा कि सुबह होने पर मैं आपके पास आऊंगी। चौथे पहर एक हिरण आया। उसने अपनी सारी कथा कह सुनाई कि वे तीनों हिरणियां मेरी स्त्री थीं। वे सभी मुझसे मिलने को छटपटा रही थीं। इस पर उसको भी छोड़ दिया तथा कुछ और भी बेल-पत्र नीचे गिराये। इससे उसका हृदय बिल्कुल पवित्र, निर्मल तथा कोमल हो गया। प्रात: होने पर वह बेल-पत्र से नीचे उतरा। नीचे उतरने से और भी बेल पत्र शिवलिंग पर चढ़ गये। अत: शिवजी ने प्रसन्न होकर उसके हृदय को इतना कोमल बना दिया कि अपने पुराने पापों को याद करके वह पछताने लगा और जानवरों का वध करने से उसे घृणा हो गई। सुबह वे सभी हिरणियां और हिरण आये। उनके सत्य वचन पालन करने को देखकर उसका हृदय दुग्ध-सा धवल हो गया और वह फूट-फूट कर रोने लगा।

वासना, क्रोध, ईर्ष्या, राजाओं और तामस से पैदा हुए बुराई कम हो गई हैं। भक्त तेजी से तोड़ते हैं हमारे प्राचीन ग्रंथों और वेदों के अनुसार, इस अनुष्ठान का प्रदर्शन अनिवार्य और वांछनीय दोनों है। महाशिवरात्रि उपवास करने पर ऐसा माना जाता है कि भक्तों का शरीर दिव्यता की तरफ बढ़ता है। ऐसा कहा जाता है कि जो सभी शिवरात्रि पर सभी जरूरी अनुष्ठानों के साथ बलिदान करता है और नियमों के अनुसार तेज़ रखता है, वह खुशी प्राप्त करता है और इसकी सबसे अधिक इच्छाओं को महसूस करने के लिएदेश के कई हिस्सों में युवा , अविवाहित लड़कियां तेजी से चलती हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यह भगवान शिव की तरह एक सुंदर, देखभाल करने वाले और प्यार करने वाले पति को पाने में सक्षम।

योगियों और संन्यासियों के लिए यह वह दिन है जब शिव कैलाश पर्वत के साथ एकाकार हो गए थे। यौगिक परम्परा में शिव को ईश्वर के रूप में नहीं पूजा जाता है, बल्कि उन्हें प्रथम गुरु, आदि गुरु माना जाता है, जो योग विज्ञान के जन्मदाता थे। कई सदियों तक ध्यान करने के बाद शिव एक दिन पूरी तरह स्थिर हो गए। उनके भीतर की सारी हलचल रुक गई और वह पूरी तरह स्थिर हो गए। वह दिन महाशिवरात्रि था। इसलिए संन्यासी महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात के रूप में देखते हैं।