भगवान शिव को समर्पित महाशिवरात्रि

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शिवरात्रि के प्रसंग को हमारे वेद, पुराणों में बताया गया है कि जब समुद्र मन्थन हो रहा था उस समय समुद्र में चौदह रत्न प्राप्त हुए। उन रत्नों में हलाहल भी था। जिसकी गर्मी से सभी देव दानव त्रस्त होने लगे तब भगवान शिव ने उसका पान किया। उन्होंने लोक कल्याण की भावना से अपने को उत्सर्ग कर दिया। इसलिए उनको महादेव कहा जाता है। जब हलाहल को उन्होंने अपने कंठ के पास रख लिया तो उसकी गर्मी से कंठ नीला हो गया। तभी से भगवान शिव को नीलकंठ भी कहते हैं। शिव का अर्थ कल्याण होता है। जब संसार में पापियों की संख्या बढ़ जाती है तो शिव उनका संहार कर लोगों की रक्षा करते हैं। इसीलिए उन्हें शिव कहा जाता है।

महाशिवरात्रि पर सुबह से ही शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ एकत्रित होती है। भगवान शिव का जलाभिषेक करते हुए गंगाजल, दूध, चंदन, घी, धूप और बेलपत्र अर्पित किए जाते हैं। माना जाता है कि महाशिवरात्रि पर भोलेनाथ की पूजा करने से सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की विशेष रूप से पूजा-आराधना की जाती है।महाशिवरात्रि भगवान शिव शंकर का दिन है। जहाँ सौंदर्य, सत्य और परोपकार है, वहाँ शिव है और, ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ शिव सिद्धांत अनुपस्थित है। लेकिन, शिव कोई व्यक्ति नहीं हैं। यह वह सिद्धांत है जो संपूर्ण सृष्टि के सुगंधित बंधन को धारण करता है और पूरे ब्रह्मांड को व्याप्त करता है। शिव तत्त्व नाम का यह सिद्धांत जीवन की सर्वोत्कृष्टता है और प्रत्येक जीव के भीतर गहराई से मौजूद है।

महाशिवरात्रि पर दुर्लभ योग।भगवान शिव को समर्पित महाशिवरात्रि पर्व इस बार महाशयनयोग के साथ आ रहा है। यह संयोग भक्तों के लिए विशेष फलदायी होने वाला है। इस दिन दोपहर में २.३ ९ पर त्रयोदशी और चतुर्दशी का संयोग होगा और इस बार शिवरात्रि की श्रेष्ठ पुण्यतिथि होगी। त्रयोदशी की उदय तिथि में रात्रि के समय शिवयोग प्रदोष और सिद्ध योग का दुर्लभ संयोग होगा।


पूजा और दान का महत्व, महाशिवरात्रि को कालरात्रि भी कहा जाता है। ब्रह्मांड की शुरुआत में, भगवान शिव इस दिन आधी रात को ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरित हुए थे। प्रलय की वेला में, इस दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव, तीसरे नेत्र की ज्वाला से ब्रह्मांड को समाप्त कर देते हैं, इसीलिए इसे कालरात्रि कहा गया। महाशिवरात्रि को वर्ष की सिद्ध रातों में से एक माना जाता है। इस दिन, ब्रह्मांड में दिव्य ऊर्जाएं अपने चरम पर हैं। इसलिए, शिवरात्रि पर पूजा, प्रार्थना और जप के परिणाम कई गुना अधिक हैं।


हिंदू कैलेंडर के अनुसार, 27 योगों में से एक दैनिक रूप से मौजूद है। इन 27 योगों में एक शिव योग भी है, जो भगवान शिव की पूजा और आराधना के लिए सर्वोच्च माना जाता है। इस बार महाशिवरात्रि पर शिव योग है जो एक दुर्लभ शुभ संयोग है। शिव पूजा में जलाभिषेक के अलावा बेलपत्र का विशेष महत्व है। तीन दलों से युक्त एक बिल्वपत्र, जो भगवान शिव को चढ़ाया जाता है, तब हमारे तीन जन्मों के पापों का नाश करता है। भगवान शिव को दूध, चमेली, बेला और सफेद फूल और सफेद चंदन चढ़ाएं। स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करें। मानसिक एकाग्रता और प्राप्ति के लिए गंगा जल से भगवान शिव का अभिषेक करें।

भगवान शिव की पूजा-आराधना में तिल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। मान्यता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से मैल के रूप में उत्पन्न हुई थी। इसी वजह से शिव पूजा में इसे प्रयोग करना वर्जित माना गया है। कुमकुम और सिंदूर सौभाग्य का प्रतीक माना गया है जबकि भगवान शिव वैरागी हैं, इसलिए शिव जी को कुमकुम नहीं चढ़ाना चाहिए। इसके अलावा शिवजी की पूजा में हल्दी का प्रयोग भी वर्जित माना गया।कभी भी शिवलिंग पर नारियल के पानी से अभिषेक नहीं करना चाहिए। नारियल देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है जिनका संबंध भगवान विष्णु से है इसलिए शिवजी की पूजा में भूलकर भी नारियल का प्रयोग न करें। जहां भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को शंख अति प्रिय है वहीं शिव जी की उपासना में शंख की पूजा करना वर्जित माना गया है। दरअसल भगवान शिव ने शंखचूड़ नाम के असुर का वध किया था,जो भगवान विष्णु का भक्त था। शंख को उसी असुर का प्रतीक माना जाता है। इसलिए शिवजी की पूजा में कभी भी शंख नहीं बजाना चाहिए।