जानें कैसे संगठित हुए यादव

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उत्तर प्रदेश के एटा, इटावा, फ़र्रुखाबाद, मैनपुरी, कन्नौज, आजमगढ़, फ़ैज़ाबाद, बलिया, संत कबीर नगर और कुशीनगर जिले को यादव बहुल माना जाता है. यादवों के इतिहास और राजनीति से जुड़ा ब्लॉग ‘यादवगाथा’ के लेखक उमेश यादव बताते हैं कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी यूपी के यादवों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. उमेश का दावा है कि साल 1922 में गोरखपुर में हुए चौरीचौरा आंदोलन में हिस्सा लेने वाले ज्यादातर लोग दलित एवं पिछड़ी जाति के थे और इनका नेतृत्व भी भगवान अहीर कर रहे थे. भगवान अहीर को इसके लिए फांसी की सजा भी सुनाई गई थी. चौधरी रघुबीर सिंह भी एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे.

उमेश बताते हैं कि आज़ादी से पहले ही यादव नेता चौधरी नेहाल सिंह, चौधरी गंगाराम, बाबूराम यादव और लक्ष्मी नारायण ने यूपी, दिल्ली और मध्य भारत के कुछ हिस्सों में उपजातियों में बंटे हुए यादवों को एक करना शुरू कर दिया था. 1908 में ही इन नेताओं ने यादव सभा बनाई. इसी साल रेवाड़ी राजपरिवार से जुड़े राव मान सिंह ने ‘अभीर यादव कुलदीपक’ किताब में अपील की कि यादव, अहीर, गोप सभी क्षत्रिय यदुकुल के वंशज हैं और इन्हें अब एक हो जाना चाहिए. 1908 में ही दिलीप सिंह ने रेवाड़ी से ‘अहीर गजट’ पत्रिका निकाली.

उत्तर प्रदेश 2022 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने प्रदेश संगठन का ऐलान कर दिया है. 72 सदस्यीय सपा की प्रदेश कार्यकारिणी में अखिलेश यादव के चुनाव की तैयारियों की छाप साफ नजर आती है. सपा ने इस बार अपने परंपरागत यादव-मुस्लिम जातीय समीकरण को खास तवज्जो देने के बजाय गैर-यादव ओबीसी जातियों को अहमियत दी है. सपा की प्रदेश संगठन सूची में अखिलेश की नई सोशल इंजीनियरिंग दिखी है, जिसके दम पर वो बीजेपी से दो-दो हाथ करेंगे.भाजपा ने 2017 के चुनाव में 40 फीसदी वोटों की सीमा रेखा खींच दी थी. यही वजह है कि सपा भी अब इसी वोट फीसदी टारगेट को हासिल करने की रणनीति पर काम कर रही. इसी के मद्देनजर अखिलेश यादव ने प्रदेश संगठन में अति पिछड़ी जातियों को अच्छा खासा महत्व दिया है. प्रदेश कार्यकारिणी में 40 से ज्यादा नेता गैर-यादव ओबीसी जातियों के हैं.

उत्तर प्रदेश जब संयुक्त प्रांत था तब मैनपुरी जिला ही ‘अहीर’ संगठनों का केंद्र हुआ करता था. चौधरी पद्मा सिंह, चौधरी कामता सिंह और चौधरी श्याम सिंह ने साल 1910 में मैनपुरी में ‘अहीर-यादव क्षत्रिय महासभा’ का गठन किया. 1912 में शिकोहाबाद में ‘अहीर क्षत्रिय विद्यालय’ की स्थापना की गई. अहीर यादव क्षत्रिय महासभा ने सबसे पहले यादवों की विभिन्न उपजातियों को साथ लाकर उन्हें राजनीतिक शक्ति के रूप में संगठित करने का काम किया. राव बलबीर सिंह ने यादवों को जनेऊ पहनने के लिए प्रेरित किया था, जिससे बिहार के मुंगेर में राजपूत और भूमिहार नाराज़ हो गए और यादवों-अहीरों के साथ इनकी हिंसक झड़पें भी हुईं.विट्ठल कृष्ण खेतकर ने 1924 में इलाहाबाद में अखिल भारतीय यादव महासभा का गठन किया. आज़ादी से पहले से ही अखिल भारतीय यादव महासभा सरकार से सेना में यादव रेजिमेंट बनाने की मांग करती रही है. यह मांग आज भी दक्षिण हरियाणा के राव उठाते रहते हैं.