आज भी भगवान श्रीकृष्ण का धरती पर धड़कता है दिल

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आज भी भगवान श्रीकृष्ण का धरती पर धड़कता है दिल
आज भी भगवान श्रीकृष्ण का धरती पर धड़कता है दिल

महाप्रभु का महा रहस्य,सोने की झाड़ू से होती है सफाई …..

जगन्नाथ शब्द का अर्थ होता है संसार या जगत के स्वामी होता है। इसी कारण इस नगर को जगन्नाथपुरी या पुरी कहा जाता है। यह मंदिर वैष्णव संप्रदाय का मंदिर है जो भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को समपर्पित है। इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धामों में से एक माना जाता है।जगन्नाथ मंदिर की विशेषता यह है कि मंदिर के ऊपर लगा झंडा हमेशा हवा के उल्टी दिशा में लहराता है। ऐसा प्राचीन काल से ही हो रहा है लेकिन अभी तक इसके पीछे के वैज्ञानिक कारणों के बारे में पता नहीं चल पाया है। श्रद्धालुओं के लिए सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक बात है। आज भी भगवान श्रीकृष्ण का धरती पर धड़कता है दिल

कौरवों के अंत के लिए सिर्फ महाभारत को नहीं जाना जाता है। बल्कि यहीं से श्रीकृष्ण के अंत की भी शुरुवात हुई थी। श्रीमद भगवत गीता के अनुसार बेटे दुर्योधन की मृत्यु से दुखी गांधारी ने ही कृष्ण को मृत्यु का श्राप दिया था। मान्यताओं के अनुसार वर्षों पहले गंतव्य को प्राप्त कर चुके श्री कृष्ण का दिल आज भी धरती पर धड़कता है। भगवान कृष्णा ने जब देह छोड़ी तो उनका अंतिम संस्कार किया गया, उनका सारा शरीर तो पांच तत्त्व में मिल गया, लेकिन उनका हृदय बिल्कुल सामान्य एक जिंदा आदमी की तरह धड़क रहा था और वो बिलकुल सुरक्षित था,उनका हृदय आज तक सुरक्षित है,जो भगवान् जगन्नाथ की काठ की मूर्ति के अंदर रहता है और उसी तरह धड़कता है,ये बात बहुत कम लोगो को पता है !

महाप्रभु जगन्नाथ (श्री कृष्ण) को कलियुग का भगवान भी कहते हैं, पुरी (उड़ीसा) में जगन्नाथ स्वामी अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ निवास करते हैं , मगर रहस्य ऐसे है कि आज तक कोई न जान पाया…! कौरवों के अंत के लिए सिर्फ महाभारत को नहीं जाना जाता है। बल्कि यहीं से श्रीकृष्ण के अंत की भी शुरुवात हुई थी। श्रीमद भगवत गीता के अनुसार बेटे दुर्योधन की मृत्यु से दुखी गांधारी ने ही कृष्ण को मृत्यु का श्राप दिया था। मान्यताओं के अनुसार सालों पहले मृत्यु को प्राप्त हो चुके श्री कृष्ण का दिल आज भी धरती पर धड़कता है।

माना जाता है कि जब महाराभारत के युद्ध के 36 साल बाद श्री कृष्ण एक पेड़ के नीचे योग समाधि ले रहे थे तभी जरा नाम का एक शिकारी एक हिरण का पीछा करते वहां पहुंच गया और उसने श्री कृष्ण के हिलते हुए पैरों को हिरण समझ लिया और तीर चला दी। ये सब देख शिकारी श्रीकृष्ण के पास पहुंचा और अपनी भूल के लिए कृष्ण से माफी मांगने लगा। तब कृष्ण ने उसे समझाया कि उनकी मृत्यु निश्चित थी। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि त्रेता युग में लोग मुझे राम के नाम से जानते थे। राम ने सुग्रीव के बड़े भाई बाली का छिपकर वध किया था। और इतना कहते ही श्रीकृष्ण ने अपना शरीर त्याग दिया। श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद ही कलियुग की शुरुवात को माना जाता है। इसके बाद जब अर्जुन द्वारका पहुंचे तो उन्होंने देखा कि कृष्ण और बलराम दोनों ही नहीं रहे। दोनों की आत्मा की शांति के लिए अर्जुन ने उनका अंतिम संस्कार कर दिया। वही कहा जाता है कि श्री कृष्ण की मृत्यु के बाद उनका पूरा शरीर जलकर राख हो गया लेकिन उनका हृदय राख नहीं हुआ।

भगवान जगन्नाथ मंदिर

पांडवों के जाने के बाद पूरी द्वारका नगरी समुद्र में समा गई थी। भगवान श्रीकृष्ण के जलते हुए हृदय सहित सब कुछ पानी में बह गया और श्रीकृष्ण का हृदय एक लोहे के मुलायम पिंड में तब्दील हो गया। ऐसी मान्यता है कि अवंतिकापुरी के राजा इंद्रद्युम भगवान विष्णु के बड़े भक्त थे और उनके दर्शन पाना चाहते थे। एक रात उन्होंने सपने में देखा कि भगवान विष्णु उन्हें नीले माधव के रूप में दर्शन देंगे। राजा अगली सुबह नीले माधव की खोज में निकल पड़े। जब उन्हें नीले माधव मिले तो वे इसे अपने साथ ले आए और भगवान जगन्नाथ मंदिर की स्थापना कर दी।

एक बार नदी में नहाते हुए राजा इद्रद्युम को लोहे का एक मुलायम पिंड मिला। तो लोहे के नरम पिंड को तैरता देख राजा आश्चर्य में पड़ गए। इस पिंड को हाथ लगाते ही उन्हें कानों में भगवान विष्णु की आवज सुनाई दी। भगवान विष्णु ने राजा इंद्रद्युम से कहा ये मेंरा ह्रदय है जो लोहे के एक मुलायम पिंड के रुप में हमेंशा जमीन पर धड़कता रहेगा। राजा तुरंत उस पिंड को भगवान जगन्नाथ मंदिर ले गए। और सावधानी के साथ उसे मूर्ति के पास रख दिया। राजा ने उस पिंड को देखने और छूने से सभी को मना कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि पिंड के रुप में मौजूद श्री कृष्ण के दिल को आजतक कोई देख या छू नहीं पाया है।

माना जाता है कि जब महाराभारत के युद्ध के 36 साल बाद श्री कृष्ण एक पेड़ के नीचे योग समाधि ले रहे थे तभी जरा नाम का एक शिकारी एक हिरण का पीछा करते वहां पहुंच गया और उसने श्री कृष्ण के हिलते हुए पैरों को हिरण समझ लिया और तीर चला दी। ये सब देख शिकारी श्रीकृष्ण के पास पहुंचा और अपनी भूल के लिए कृष्ण से माफी मांगने लगा। तब कृष्ण ने उसे समझाया कि उनकी मृत्यु निश्चित थी।और श्रीकृष्ण ने कहा कि त्रेता युग में लोग मुझे राम के नाम से जानते थे। राम ने सुग्रीव के बड़े भाई बाली का छिपकर वध किया था। और इतना कहते ही कृष्ण ने अपना शरीर त्याग दिया। श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद ही कलियुग की शुरुवात माना जाता है। इसके बाद अर्जुन जब द्वारका पहुंचे तो उन्होंने देखा कि कृष्ण और बलराम दोनों ही मर चुके हैं। दोनों की आत्मा की शांति के लिए अर्जुन ने उनका अंतिम संस्कार कर दिया। वही कहा जाता है कि श्री कृष्ण की मृत्यु के बाद उनका पूरा शरीर जलकर राख हो गया लेकिन उनका हृदय राख नहीं हुआ।पांडवों के जाने के बाद पूरी द्वारका नगरी समुद्र में समा गई थी । भगवान श्रीकृष्ण के जलते हुए हृदय सहित सब कुछ पानी में बह गया और श्रीकृष्ण का हृदय एक लोहे के मुलायम पिंड में तब्दील हो गया। माना जाता है कि अवंतिकापुरी के राजा इंद्रद्युम भगवान विष्णु के बड़े भक्त थे और उनके दर्शन पाना चाहते थे। एक रात उन्होंने सपने में देखा कि भगवान विष्णु उन्हें नीले माधव के रूप में दर्शन देंगे। राजा अगली सुबह नीले माधव की खोज में निकल पड़े। जब उन्हें नीले माधव मिले तो वे इसे अपने साथ ले आए और भगवान जगन्नाथ मंदिर की स्थापना कर दी।एक बार नदी में नहाते हुए राजा इद्रद्युम को लोहे का एक मुलायम पिंड मिला। तो लोहे के नरम पिंड को तैरता देख राजा आश्चर्य में पड़ गए। इस पिंड को हाथ लगाते ही उन्हें कानों में भगवान विष्णु की आवज सुनाई दी। भगवान विष्णु ने राजा इंद्रद्युम से कहा ये मेंरा ह्रदय है जो लोहे के एक मुलायम पिंड के रुप में हमेंशा जमीन पर धड़कता रहेगा। राजा तुरंत उस पिंड को भगवान जगन्नाथ मंदिर ले गए। और सावधानी के साथ उसे मूर्ति के पास रख दिया। राजा ने उस पिंड को देखने और छूने से सभी को इनकार कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि पिंड के रुप में मौजूद कृष्ण के दिल को आजतक कोई देख या छू नहीं पाया है।मान्यताओं के अनुसार श्रीकृष्ण का दिल आज भी भगवान जग्गनाथ के मंदिर में रखा गया है। और आज तक इसे किसी ने नहीं देखा। नकलेवर के अवसर पर जब 12 या 19 साल के अंतराल में मूर्तियों को बदला जाता है तो पुजारी की आखों पर पट्टी बांधी जाती है।

मान्यताओं के अनुसार श्रीकृष्ण का दिल आज भी भगवान जग्गनाथ के मंदिर में रखा है। और आज तक इसे किसी ने नहीं देखा। नकलेवर के अवसर पर जब 12 या 19 साल के अंतराल में मूर्तियों को बदला जाता है तो पुजारी की आखों पर पट्टी बांधी जाती है। हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ती को बदला जाता है,उस समय पूरे पुरी शहर में ब्लैकआउट किया जाता है, यानी पूरे शहर की लाइट बंद की जाती है। लाइट बंद होने के बाद मंदिर परिसर को केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल {CRPF} की सेना चारो तरफ से घेर लेती है, उस समय कोई भी मंदिर में नही जा सकता !मंदिर के अंदर घना अंधेरा रहता है। पुजारी की आँखों मे पट्टी बंधी होती है। पुजारी के हाथ में दस्ताने होते है।वो पुरानी मूर्ती से “ब्रह्म पदार्थ” निकालता है और नई मूर्ती में डाल देता है। ये ब्रह्म पदार्थ क्या है आज तक किसी को नही पता। इसे आज तक किसी ने नही देखा। हज़ारो सालो से यह एक मूर्ति से दूसरी मूर्ति में ट्रांसफर किया जा रहा है।

यह एक अलौकिक पदार्थ है जिसको छूने मात्र से किसी भी इंसानी जिस्म के चिथड़े उड़ सकते हैं । इस ब्रह्म पदार्थ का संबंध भगवान श्री कृष्ण से है। मगर ये क्या है,कोई नही जानता, भगवान जगन्नाथ और अन्य प्रतिमाएं उसी साल बदली जाती हैं। जिस साल में आसाढ़ के दो महीने आते हैं। लगभग 19 साल बाद यह अवसर आता है।वैसे कभी-कभी 14 साल में भी ऐसा होता है, इस मौके को नव कलेवर कहते हैं। मगर आज तक कोई भी पुजारी ये नही बता पाया की महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ती में आखिर ऐसा क्या है.? कुछ पुजारियों का कहना है कि जब हमने उसे हाथ में लिया तो खरगोश जैसा उछल रहा था।आंखों में पट्टी थी,हाथ मे दस्ताने थे तो हम सिर्फ महसूस कर पाए.!

आज भी हर साल जगन्नाथ यात्रा के उपलक्ष्य में सोने की झाड़ू से पुरी के राजा खुद झाड़ू लगाने आते है।भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती, जबकि आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देंगी। आपने ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे उड़ते देखे होंगे, लेकिन जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता,झंडा हमेशा हवा की उल्टी दिशा मे लहराता है, दिन में किसी भी समय भगवान जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती !

भगवान जगन्नाथ मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदला जाता है, ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा ! इसी तरह भगवान जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शनचक्र भी है,जो हर दिशा से देखने पर आपके मुंह आपकी तरफ दिखता है। भगवान जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, जिसे लकड़ी की आग से ही पकाया जाता है, इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है। भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता, लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि जैसे ही मंदिर के पट बंद होते हैं वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है। आज भी भगवान श्रीकृष्ण का धरती पर धड़कता है दिल