मुहब्बत

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मुहब्बत
मुहब्बत

श्याम कुमार

उनकी हर अदा जो है इतनी काफिराना है,
कमसिनी का आलम है, होश का जमाना है।

आपके करीब आकर राज ये खुला हम पर,
जिंदगी की चाहत भी मौत का बहाना है।

आपकी तजल्ली से कोई शै नहीं खाली,
आप जिस तरफ जाएं, आपका जमाना है।

हुस्न किसका होता है, हुस्न का भरोसा क्या!
इश्क की बलाएं लो, दोस्त ये पुराना है।

आपको खुदा समझा, हाय मैंने क्या समझा!
काश, ये समझ लेता, मतलबी जमाना है।

उन नशीली आंखों पर चिलमनें हैं जुल्फों की,
हर घटा के दामन में इक शराबखाना है।

‘श्याम’ की मुहब्बत है, ये कभी न कम होगी,
तुम भी आजमा देखो, जितना आजमाना है।