- गहलोत सरकार के समर्थन में निर्दलीय विधायकों की बैठक से फायदे के बजाए जगहंसाई ज्यादा।
- अधिकांश विधायक नहीं मानते संयम लोढ़ा को अपना नेता, इसलिए राजेन्द्र गुढा की शक्ल देखते ही 8 निर्दलीय विधायकों ने होटल अशोका छोड़ दी।
- सचिन पायलट की आलोचना से अनेक विधायक सहमत नहीं। जसवंत दारा ने बनाया सटीक कार्टून।
राजस्थान। 23 जून को जी न्यूज के राजस्थान चैनल पर रात 8 बजे प्रसारित होने वाले लाइव डेबिट के प्रोग्राम में मेरे साथ शिवगंज (सिरोही) के निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा भी थे। चूंकि कुछ देर पहले ही संयम लोढा की पहल पर प्रदेश के निर्दलीय विधायकों की बैठक हुई थी, इसलिए राजनीति के लोगों की निगाहें संयम लोढ़ा पर ही लगी हुई थी। इस डिबेट में संयम लोढ़ा का कहना रहा कि निर्दलीय विधायकों की बैठक में बसपा वाले कांग्रेसी विधायकों को नहीं बुलाया गया था।
जबकि बसपा से आए कांगे्रसी विधायक राजेन्द्र गुढा का कहना था कि कि संयम लोढ़ा ने ही फोन कर बैठक में बुलाया है। गुढा के इस बयान पर लोढ़ा ने कहा कि गुढा तो ऐसे ही बोलते रहते हैं। मेरे एक सवाल के जवाब में लोढा का कहना रहा कि निर्दलीय विधायकों को लेकर कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी से मिलने का कोई प्रोग्राम नहीं है।
सीएम अशोक गहलोत माने या नहीं लेकिन निर्दलीय विधायकों की बैठक जिस उद्देश्य से की गई थी, वह उद्देश्य सफल नहीं हो सका है। इस बैठक से फायदा होने के बजाए गहलोत सरकार की जगहंसाई ज्यादा हुई है। बैठक का उद्देश्य सरकार के प्रति निर्दलीय विधायकों का समर्थन जताना था। लेकिन बैठक में विधायकों का ही बिखराव देखने को मिला। 8 निर्दलीय विधायक जब तय कार्यक्रम के अनुसार सायं 5 बजे होटल अशोका पहुंचे तो वहां पहले से ही कांग्रेसी विधायक राजेन्द्र गुढा मौजूद थे। निर्दलीय विधायकों ने गुढा की मौजूदगी में बैठक करने से इंकार कर दिया। आठों विधायक होटल अशोका को छोड़ कर जयपुर के सर्किट हाउस में आ गए।
बाद में शेष तीन विधायक संयम लोढ़ा, महादेव सिंह खंडेला और रामकेश मीणा को भी सर्किट हाउस आना पड़ा। भले ही इन विधायकों ने गहलोत सरकार के प्रति समर्थन दोहराया हो, लेकिन विधायकों में बिखराव साफ नजर आया। सवाल उठता है कि निर्दलीय विधायकों की सहमति के बगैर कांग्रेस के विधायक राजेन्द्र गुढा को बैठक स्थल पर किसने बुलाया।
जाहिर है कि सरकार के मैनेजर रणनीति बनाने में विफल रहे हैं। सीएम गहलोत भले ही राष्ट्रीय लोकदल के विधायक सुभाष गर्ग और निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा को निर्दलीय विधायकों का नेता मान रहे हों, लेकिन अधिकांश निर्दलीय विधायक गर्ग और लोढा का नेतृत्व स्वीकार नहीं करते हैं। यदि गर्ग और लोढा का प्रभाव होता तो 8 निर्दलीय विधायक होटल अशोका छोड़कर नहीं जाते।
असल में सभी निर्दलीय विधायक स्वयं को सबसे बड़ा नेता मानते हैं। जो निर्दलीय उम्मीदवार कांग्रेस और भाजपा को हरा कर विधायक चुना गया हो, वो किसे अपना नेता मानेगा? गहलोत का नेतृत्व भी इसलिए स्वीकार है कि उन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र में रुतबा चाहिए। निर्दलीय होने के बावजूद भी एसडीएम और डीएसपी जैसे अधिकारी उन्हीं की सिफारिश पर लग रहे हैं।
यदि अधिकारियों की नियुक्ति में उन विधायकों की सिफारिश न मानी जाए तो ये गहलोत को भी अपना नेता न माने। ऐसे में यदि संयम लोढ़ा और सुभाष गर्ग जैसे व्यक्ति निर्दलीय विधायकों का नेता बनने की कोशिश करेंगे तो गहलोत सरकार को नुकसान ही होगा। सवाल यह है कि जब सीएम गहलोत निर्दलीय विधायकों से सीधा संवाद करते हैं, तब लोढा और गर्ग को मध्यस्थ क्यों बनाया जा रहा है?
पायलट की आलोचना पर सहमति नहीं:-
संयम लोढ़ा और रामकेश मीणा जैसे निर्दलीय विधायकों ने भले ही कांग्रेस के असंतुष्ट नेता सचिन पायलट की आलोचना की हो, लेकिन अधिकांश निर्दलीय विधायक पायलट की आलोचना करने के पक्ष में नहीं है। विधायक अशोक गहलोत के प्रति अपना समर्थन जताने को तैयार है, लेकिन वे कांग्रेस के कद्दावर नेता पायलट की आलोचना नहीं करना चाहते हैं। ऐसे निर्दलीय विधायकों का मानना है कि पायलट की आलोचना से उनके क्षेत्र में नाराजगी बढ़ेगी।
वैसे भी गहलोत और पायलट की आपसी खींचतान का मामला कांग्रेस की आंतरिक राजनीति से जुड़ा हुआ है। ऐसे में अधिकांश निर्दलीय विधायक इस विवाद में उलझना नहीं चाहते हैं। निर्दलीय विधायकों का यह भी मानना है कि गांधी परिवार के दबाव के बाद गहलोत और पायलट का गुट एक हो सकता है।